बुधवार, 25 जून 2014

शंकराचार्य के बयान पर कोहराम क्यों ?

मैं पिछले दो दिन से मीडिया और सोसल मीडिया में देख रहा हु शिर्डी के साईं बाबा पर तरह तरह के समर्थन और बिरोध हो रहे है कुछ साईं भक्त तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पुतले भी फुक रहे है । मुझे तो मलेशिया की सर्वोच्च अदालत और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की सोच में कोई अंतर नजर नहीं आता। लगता है दोनों की सोच सामाजिक संरचना के ढांचे को अस्त-व्यस्त करती नजर आ रही है। मलेशिया की अदालत ने फैसला दे डाला कि ''अल्लाह'' मुसलमानों के लिए ही है, इस शब्द का दूसरे लोग इस्तेमाल नहीं करें। फैसला देने वाले जज शायद नहीं जानते कि "अल्लाह", "भगवान" अथवा "गॉड" ऎसे शब्द हैं जिन्हें किसी भी दायरे में नहीं बांधा जा सकता, बांधा जाना भी नहीं चाहिए। अल्लाह, भगवान और गॉड उन सबके हैं जो इन पर विश्वास करते हैं। इसी तरह शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साई बाबा को भगवान मानने से इंकार करते हुए उनकी पूजा नहीं किए जाने का आह्वान कर डाला। स्वामी स्वरूपानंद जिस पद पर आसीन हैं, वहां उनका दायित्व और बढ़ जाता है तथा उनसे उम्मीद की जाती है कि वे सबको साथ लेकर चलें।

किसी भी आराध्य की पूजा करना व्यक्ति की निजी आस्था से जुड़ा सवाल है और इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। ''क्या शंकराचार्य उन लोगों को रोक सकते हैं जो उन्हें पूजते हैं'' । देश में करोड़ों लोग ऎसे हैं जो सभी मंदिरों में जाकर भगवान को नमन करते हैं तो करोड़ों ऎसे भक्त भी होंगे जो एक ही भगवान की पूजा करते हैं। समझ में नहीं आता कि साई बाबा की पूजा करने से हिन्दू धर्म बंट कैसे जाएगा ? विदेशी ताकतों ने सदियों तक हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए क्या-कुछ नहीं किया लेकिन क्या हिन्दू धर्म खत्म हो गया ? गुलामी के काल में जब हिन्दू धर्म नहीं मिटा तो अब विदेशी ताकतों के इशारे पर कैसे बंट सकता है ? शंकराचार्य को साई के मंदिर बनाए जाने पर आपत्ति क्यों है ? उनका तर्क है कि मंदिरों के नाम पर कमाई की जा रही है।

साई मंदिर ही क्यों, देश के दूसरे ऎसे तमाम मंदिर हैं जहां हर साल करोड़ों-अरबों का चढ़ावा चढ़ता है। भगवान का दर्जा किसे दिया जाए, इसे लेकर शंकराचार्य के अपने तर्क हो सकते हैं और उन तर्को पर बहस भी हो सकती है। धार्मिक आस्था को विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। ऎसे विवाद समाज को कमजोर करने का ही काम करते हैं। खासकर शंकराचार्य और साधु-संतों को तो ऎसे विवादों से दूर ही रहना चाहिए। भारत धार्मिक आस्थाओं वाला देश है और यहां का व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, धार्मिक आस्था के बारे में उसके अपने तर्क हैं और उन्हीं के आधार पर वह अपने आराध्य को पूजता है ।
शंकराचार्य के उस कथन से मैं भी सहमत हु की साईं भगवान के अवतार नहीं है , साईं की पूजा नहीं की जानी चाहिए पर शंकराचार्य ये बतायेगे की उनके जैसे कई साधु संतो की पूजा क्यों की जाती है या करवाई जाती है ?

यदि संकराचार्य या साईं को गुरु मान लिया जाए तो फिर '''गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मय श्री गुरुव नम:' । और इस श्लोक के साथ तो सारा विवाद ही ख़त्म हो जाना चाहिए ।

भारतीय संस्कृति के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य ।

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने. ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. यही है हमारी संस्कृति की पहचान.

( ०१ ) दो पक्ष-

कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !

( ०२ ) तीन ऋण -

देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !

( ०३ ) चार युग -

सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !

( ०४ ) चार धाम -

द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !

( ०५ ) चारपीठ -

शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !

( ०६ ) चार वेद-

ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !

( ०७ ) चार आश्रम -

ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !

( ०८ ) चार अंतःकरण -

मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !

( ०९ ) पञ्च गव्य -

गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !

( १० ) पञ्च देव -

गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !

( ११ ) पंच तत्त्व -

पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !

( १२ ) छह दर्शन -

वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !

( १३ ) सप्त ऋषि -

विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!

( १४ ) सप्त पुरी -

अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !

( १५ ) आठ योग -

यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !

( १६ ) आठ लक्ष्मी -

आग्घ ,
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !

( १७ ) नव दुर्गा --

शैल पुत्री ,
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !

( १८ ) दस दिशाएं -

पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !

( १९ ) मुख्य ११ अवतार -

मत्स्य ,
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !

( २० ) बारह मास -

चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !

( २१ ) बारह राशी -

मेष ,
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !

( २२ ) बारह ज्योतिर्लिंग -

सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !

( २३ ) पंद्रह तिथियाँ -

प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !

( २४ ) स्मृतियां -

मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !