सोमवार, 9 जून 2014

उत्तरप्रदेश का यादवीकरण क्यों ?

जानकारों एवं आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में बढ़ते और बेलगाम होते अपराधों के पीछे अगर सबसे अहम कारण कुछ है तो वो है उग्र जातिवाद। पिछले दो सालों में उत्तर प्रदेश सरकार का अपने सबसे प्रतिबद्ध वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिये किया गया  पोलिस का पूरी तरह यादवीकरण ही समस्या की जड़ है। पोलिस वाले अपने जाति के अपराधी के खिलाफ कम्पलेंड नहीं लिखते, कार्यवाही नहीं करते जिससे अपराधियों के हौसलें बुलंद हैं।
उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग की संख्या लगभग 35 % है जिसमे यादव लगभग 10 % जोकि हर परिस्थिति में पूरी तरह सपा के साथ हैं। 2014 की प्रचंड मोदी लहर में भी कुछ जगहों और अपवादों को छोड़ दिया जाये तो यादवों ने पूरी तरह एकजुट होकर सपा को ही वोट किया है। सपा के पीछे हर स्थिति में लामबद्ध रहने का मुलायम -अखिलेश ने उन्हें इनाम भी दिया है।  आज पुलिस महकमे का पूरी तरह याद्वीकरण किया जा चूका है।  यादवों को पुलिस एवं प्रशासन में ऊँचे ओहदों पर बिठाया गया है।

उत्तर प्रदेश के ग्रह विभाग के आंकड़ों के अनुसार यादव  परिवार के अंतर्गत आने वाली लोकसभा सीटों के लगभग 60 %  थानों के थाना इंचार्ज यादव हैं। धर्मेंदर यादव के क्षेत्र बदायूं में जहाँ दो नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार करके हत्या कर दी गयी है वहां 22 में से 16 थाना इंचार्ज यादव हैं। कानपुर में 36 में से 25, लखनऊ में लगभग आधे से ज्यादा, कन्नौज में 9 में से 5, फर्रुखाबाद में 14 में से 7, इटावा में 20 में से 9 थाना इंचार्ज यादव हैं।  ये एक अघोषित नियम बन चूका है कि हर जिले में लगभग 50 % यादव थाना इंचार्ज होंगे चाहे इसके लिये नियमकायदों को भी ताक पर रखना पड़े या योग्य लोगों के प्रमोशन रोकने पड़े।    

ये पुलिस वाले भी नियम कायदे ताक पर रखकर अपने स्वाजातिये  लोगों का साथ देते हैं और अपराधों को नहीं रोकते। इसीलिए उत्तर प्रदेश आज अपराध प्रदेश बन गया है। लोकसभा चुनावों में हुई करारी हार से भी सपा के नेता एवं समर्थक बुरी तरह बौखला गये हैं और गरीबों और दलितों पर कहर बन कर टूट रहे हैं।