शुक्रवार, 30 मई 2014

भारत में अल्पसंख्यक कौन ?

'यह मुसलमानों के मामलों का मंत्रालय नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों का मंत्रालय है । मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं । पारसी अल्पसंख्यक हैं और उनकी संख्या लगातार घट रही है । उन्हें मदद की जरूरत है ताकि वे खत्म न हो जाएं ----: नजमा हेपतुल्ला 
                                   (अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री)
 

                         मुस्लिम समाज के लोग हेपतुल्ला के इस बयान की आलोचना कर रहे हैं । उनका कहना है कि मुसलमान धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक हैं । जमियत उलेमा हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी को उस बात पर आपत्ति है, जिसमें कहा जा रहा है कि चूंकि मुसलमानों की आबादी बहुत अधिक है, इसलिए वे अल्पसंख्यक नहीं हैं । मदनी का कहना है, 'आपको मुसलमानों की आबादी पूरे देश के अन्य कौम के लोगों की तुलना में देखनी चाहिए।'

गौरतलब है कि भारत में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का 13.4 फीसदी है ।  वहीं, यहूदी और पारसी समाज की आबादी बहुत कम है। देश में पारसी समाज की आबादी 69,000 और यहूदी समाज की आबादी 5000 बताई जाती है।

संख्या

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक भारत की कुल आबादी 1,028,610,328 थी। इसमें हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की तादाद करीब 827,578,868 यानी 80.5 फीसदी थी। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक हिंदू धर्म को मानने वाले लोग भारत में धार्मिक आधार पर बहुसंख्यक हैं। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि हिंदू समाज विभिन्न समुदायों, मत मतांतरों, भाषायी, सांस्कृतिक तौर पर बंटा हुआ है। इस समुदाय में लोग अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता वाले लोगों का कहना है कि हिंदू समाज को इन्हीं कारणों के चलते एक ईकाई के रूप में देखना मुश्किल है। साथ ही यह तर्क भी दिया जाता है कि जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत और पंजाब जैसे इलाकों में हिंदू समुदाय बहुसंख्यक नहीं है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश में ऐसे कई जिले हैं, जहां हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी तकरीबन आधी-आधी है।

आबादी कहां-कहां

मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, लक्षदीप, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर और पंजाब को छोड़कर देश के अन्य 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू बहुसंख्यक हैं।


मुस्लिम जनसंख्या

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक देश में मुसलमानों की आबादी 13.4 फीसदी यानी 138,188,240 थी। इसका मतलब यह हुआ कि संख्या के आधार पर मुसलमान भारत में अल्पसंख्यक हैं। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि देश के ऐसे कई इलाके हैं, जहां उनकी आबादी हिंदुओं के मुकाबले ज्यादा है। यही नहीं, अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो इंडोनेशिया के बाद भारत में मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है। भारत में मुसलमानों की तादाद पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुसलमानों की आबादी की तुलना में ज्यादा है।

आबादी कहां-कहां

तकरीबन पूरे देश में मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं। जम्मू-कश्मीर और लक्षदीप में मुसलमान आबादी बहुसंख्यक है। असम (30.9%), पश्चिम बंगाल (25.2%), केरल (24.7%), उत्तर प्रदेश (18.5%) और बिहार (16.5%) मुस्लिम आबादी है।

सिख जनसंख्या

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक देश में 1.9 फीसदी आबादी सिखों की है। सिखों की जनसंख्या 19,215,730 थी। यह अल्पसंख्यक समाज है।

आबादी कहां-कहां

सिख समुदाय के लोग मुख्य रूप से पंजाब में पाए जाते हैं। देश के कुल सिखों की 75 फीसदी आबादी पंजाब में रहती है। इसके अलावा चंडीगढ़ (16.1%), हरियाणा (5.5%), दिल्ली (4.0%), उत्तराखंड (2.5%), जम्मू-कश्मीर (2.0%) में भी सिखों की ठीक ठाक आबादी रहती है। 

ईसाई  जनसंख्या

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक देश में ईसाई समाज की आबादी कुल आबादी का 2.3 फीसदी यानी भारत में 24,080,016 ईसाई रहते हैं। भारत में ईसाई समाज को अल्पसंख्यक माना जाता है।

आबादी कहां-कहां

पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण के कुछ हिस्सों में ईसाई समाज की अच्छी खासी आबादी है। इसके अलावा शायद ही देश का कोई ऐसा जिला होगा जहां ईसाई समाज के लोग न हों। नागालैंड, मिजोरम, मेघालय में ईसाई बहुसंख्यक हैं। मणिपुर (34.0%), गोवा (26.7%), अंडमान और निकोबार (21.7%) और केरल (19.0%) और अरुणाचल प्रदेश (18.7%) में भी अच्छी तादाद में मुसलमान आबादी है।

बौद्ध जनसंख्या

देश में बौद्ध समाज के लोगों का कुल आबादी में प्रतिशत 0.8 है। यानी उनकी तादाद वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक 7,955,207 थी। बौद्ध समाज के लोग अल्पसंख्यक माने जाते हैं।

आबादी कहां-कहां

बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के अलावा पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में काफी तादाद में मिलते हैं। लेकिन भारत का शायद ही कोई ऐसा जिला हो, जहां बौद्ध धर्म का कोई अनुयायी न रहता हो।

जैन समाज जनसंख्या

देश में जैन समाज के लोगों की आबादी 0.4 फीसदी यानी 4,225,053 है।

आबादी कहां-कहां

जैन समाज के लोग हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात समेत देश के कई राज्यों में रहते हैं।


पारसी जनसंख्या
 
देश में पारसी समाज के लोगों की कुल आबादी करीब 69,000 है। पारसी समाज की आबादी अन्य धर्मों के लोगों के मुकाबले तेजी से घट रही है । 

आबादी कहां-कहां

पारसी समाज के लोग महाराष्ट्र, गोवा, दमन-दीव और गुजरात में सबसे ज्यादा रहते हैं।

यहूदीजनसंख्या 

भारत में यहूदियों की कुल आबादी 5000 बताई जाती है। पारसी समाज की तरह यहूदी समाज की आबादी भी भारत में अन्य धर्मों के लोगों के मुकाबले तेजी से घट रही है।  

आबादी कहां-कहां 

भारत में यहूदी समाज के लोग महाराष्ट्र के मुंबई और थाणे में रहते हैं ।




नोट---: इस ब्लॉग  के माध्यम  से हम सभी को एक सार्थक बहस करना चाहिए की '' अल्पसंख्यक'' का मापदंड क्या होना चाहिए ?

बुधवार, 28 मई 2014

कांग्रेसी मित्रो अभी भी वक्त है सम्हल जाए ।

मित्रो पूरी पोस्ट को पढ़े आपको जरूर अच्छा लगेगा ।

सोच रहा हु की मेरे कांग्रेसी मित्रो को आइना दिखा दू , पर मेरे कांग्रेसी मित्रो आइना नहीं तोड़ना । लोकसभा के 2014चुनाव में कांग्रेसियों के पास कोई मुद्दा नहीं था ये पुरे चुनाव में सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी जी को घेरने में लगे रहे और इस देश की जनता ने कांग्रेस को ऐसा घेरा की 44 सीट पर लाकर पटक दिया फिर भी कांग्रेसी मित्रो ने सीख नहीं लिया और अब स्मृत ईरानी जी के शिक्षा को लेकर बीजेपी को घेरने लगे परिणाम में गड़े मुर्दे उखाड़ गए और राष्टवादी मित्र इंद्रा गांधी जी से लेकर सोनिया गांधी जी और राहुल गांधी जी की डिग्री तक खंगाल लिया । कांग्रेसी मित्रो अभी भी वक्त है , अपने आपको सकरात्मकताकता में लगाए नहीं तो इससे भी बड़ी दुर्दशा होगी आने वाले समय में ।

एक सौ तीस बरस की कांग्रेस ने इतने बुरे दिन नहीं देखे होंगे जितने वो आज देख रही है। बेचारी के पास से मुख्य विपक्षी दल का तमगा तक छिन रहा है। अब वह इस बात के लिए सरकार पर ही आश्रित हो गई कि उसे मुख्य विपक्षी दल कहा जाए। तो क्या सचमुच कांग्रेस बूढ़ी हो गई ? सालेएक पहले नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि कांग्रेस अब बूढ़ी हो गई है। इसके जवाब में प्रियंका जी बोली थी कि क्या मैं बूढ़ी नजर आती हूं ।

प्रियंका जी ने सही कहा था कि कोई भी राजनीतिक दल उसके कार्यकर्ताओं के दम पर ही बूढ़ा और जवान होता है। किन्तु कहने और करने में फर्क होता है। प्रियंका जी ने कांग्रेस को जवान तो बता दिया लेकिन वे जवान लोगों को कांग्रेस की तरफ आकर्षित नहीं कर पाये। उल्टे ये काम किया नरेन्द्र मोदी जी ने।

उन्होंने युवाओं के सामने एक मजबूत भारत बनाने का वादा किया और नई पीढ़ी उनसे जुड़ गई। आज हालत ये है कि कांग्रेस के पास युवा कार्यकर्ताओं का टोटा है। अब वह सत्ता से बाहर बैठी स्यापा कर रही है। अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे, कौन-सी रणनीति बनाए और किस रास्ते पर चले? ले दे कर कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आ रही है।

दिग्गी राजा आह्वान कर रहे हैं- हे विश्व के समस्त कांग्रेसियो तुम सब वापस घर आ जाओ । हे पवारो, हे बनर्जिओ सब कांग्रेस में लौट आओ । पप्पू तुम्हारा इन्तजार कर रहा है। कुछ कांग्रेसी कह रहे हैं कि भैया को आजमा लिया अब दीदी को लाओ।

ऎसी दिग्भ्रम कांग्रेस अपने आपको कैसे खड़ा कर पाएगी, यह बहुत बड़ी चुनौती है। एक जमाना था जब कांग्रेस में हर एक प्रान्त के भीतर क्षत्रप थे लेकिन आलाकमान ने धीरे-धीरे सारे प्रान्तीय नेतृत्व को अपना दास बना लिया और आज कांग्रेस में सिर्फ तीन चेहरे नजर आते हैं सोनिया, राहुल और प्रियंका। गिरना कोई अपराध नहीं है लेकिन गिरकर संभल ना पाना और संभल कर आगे ना बढ़ना किसी के लिए भी परेशानी का सबब हो सकता है।

बहरहाल नरेन्द्र मोदी जी ने जैसी रणनीति बना रखी है और जैसे सपने दिखा रखे हैं उसके आधार पर कांग्रेस के पास तैयारी के लिए एक दो नहीं बल्कि दस बरस हैं और सत्ता से बाहर रहकर दस बरस तक दम बनाए रखना दम वालों के बस की बात है। आने वाले वर्षो में कांग्रेस कैसे चलती है यह देखना भी बड़ा दिलचस्प होगा।

सावरकर जी को सत सत नमन ।



आज सावरकर जी का जन्म दिन है । सावरकर जी को सत सत नमन ।

सावरकर कोई मामूली क्रांतिकारी नहीं थे। उन्हें 27 साल की आयु में 50-60 साल की सजाएं हुई थीं। अंडमान-निकोबार तथा रत्नागिरि में उन्होंने 27 साल की जेल और नजरबंदी भुगती। क्या दुनिया का कोई और क्रांतिकारी है , जिसने इतना लंबा कारावास भुगता हो ? अगर 25 साल जेल में रहने के कारण मंडेला विश्व-वंद्य हैं तो सावरकर को कौन सा स्थान मिलना चाहिए ? जब 1910 में सावरकर ने ब्रिटिश जहाज से समुद्र में कूदकर पलायन किया तो पहली बार संसार को पता चला कि भारत अंग्रेजों के चंगुल से छूटने को छटपटा रहा है। अभी गांधी और नेहरू स्वाधीनता संग्राम की मुख्यधारा में शामिल भी नहीं हुए थे , जबकि सावरकर इस संग्राम के विश्व विख्यात योद्धा की तरह पहचाने जाने लगे थे। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम का अन्तरराष्ट्रीयकरण किया। वे विश्व के पहले व्यक्ति थे , जिनकी रिहाई का मुकदमा हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में चला। सावरकर की तरह कोई क्रांतिकारी हो , नेता हो , विचारक हो और साथ-साथ महान साहित्यकार भी हो- ऐसा कोई दूसरा नाम दिखाई नहीं देता। जेल की दीवारों पर कील से कविता की 10 हजार पंक्तियां लिखने वाला और उन्हें याद रखने वाला क्या दुनिया का कोई और साहित्यकार हुआ है ? काले पानी की सजा काटते हुए सावरकर ने 11 साल तक जो कष्ट भुगते , उनकी तुलना अगर अन्य महान नेताओं के कष्टों से की जाए , तो सावरकर पहाडि़यों के बीच हिमालय की तरह दिखते हैं। ऐसे सावरकर के चित्र पर आपत्ति करने का आखिर कारण क्या है ?
तीन कारण बताए जाते हैं। एक , उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। दूसरा , वे हिंदू साम्प्रदायिकता के जनक हैं। हिन्दुत्व की धारणा उन्होंने ही दी है। तीसरा , गाँधीजी की हत्या में उनका हाथ था। इसमें शक नहीं कि गाँधीजी की हत्या का जिन ग्यारह लोगों पर आरोप था , उनमें सावरकर को भी फंसाया गया था। बाकायदा मुकदमा चला और जस्टिस खोसा ने उन्हें बरी करते हुए कहा था कि इतने बड़े आदमी को इतना सताया गया। आज जरूरत इस बात की है कि सावरकर को फँसाने वालों का पता लगाया जाए। सावरकर और गाँधी में कोई तुलना नहीं है। गाँधी जैसे लोग सदियों में एकाध ही होते हैं , लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सुभाष , सावरकर , आंबेडकर और भगत सिंह को भुला दिया जाए। लोहिया को भुलाने की भी कम कोशिश नहीं हुई , लेकिन उनके शिष्य रवि राय ने लोकसभाध्यक्ष बनते ही सेंट्रल हॉल में उनका चित्र लगवा दिया। अब भाजपा के प्रधानमंत्री और शिवसेना के लोकसभाध्यक्ष हैं। यदि सावरकर का चित्र अब भी नहीं लगता तो कब लगता ?
जहाँ तक हिन्दुत्व का सवाल है , सावरकर की वह छोटी सी किताब ' हिन्दुत्व ' मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणापत्र से कई गुना अधिक प्रभावशाली है। उसके तथ्य , तर्क , निष्कर्ष और शैली के आगे बीसवीं सदी के राजनीतिक दिग्गजों की रचनाएँ फीकी दिखाई पड़ती हैं। यह अलग बात है कि हिन्दुत्व के अनेक तर्क अब अप्रासंगिक हो गए हैं , लेकिन हमें उन हालात पर ध्यान देना चाहिए , जिनमें यह पुस्तक लिखी गई। अस्सी साल पहले जब खिलाफत आंदोलन शिखर पर था , भारत पर हुकूमत करने के लिए अफगान बादशाह अमानुल्लाह को मुसलमान होने के कारण आमंत्रित किया जा रहा था। मुस्लिम साम्प्रदायिकता फन फैला रही थी। गाँधी और अन्य नेता सदाशयता के कारण या मजबूरन उसी प्रवाह में बहे चले जा रहे थे , सावरकर ने ' हिन्दुत्व ' लिखकर हिन्दू समाज को झकझोर दिया। यद्यपि हिन्दू बहुमत गाँधी के साथ गया , लेकिन यदि सावरकर नहीं होते तो जरा सोचें कि क्या होता ? यदि भारत का विभाजन नहीं होता तो शायद भारत में दोबारा मुगलिया सल्तनत कायम हो जाती और यदि विभाजन होता तो अब से कई गुना बड़ा पाकिस्तान हमें देना पड़ता। सावरकर के विचारों ने तत्कालीन राजनीति पर गहरा असर डाला। यह कहना हास्यास्पद है कि जिन्ना की तरह सावरकर भी द्विराष्ट्रवाद में विश्वास करते थे। सावरकर तो अखंड भारत के पक्षधर थे। उन्होंने मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की बात कभी नहीं कही। उलटे उन्होंने अपने 1937 के हिन्दू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में मुसलमानों को अपनी भाषा , संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए विशेष गारंटियां देने की बात कही। उन्होंने कई बार दोहराया है कि , ' हिन्दू राष्ट्र में किसी के साथ धर्म , वंश या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। सबके साथ ' पूर्ण समानता का बर्ताव होगा और किसी एक को दूसरे पर अपना वर्चस्व स्थापित नहीं करने दिया जाएगा। ' उनका विरोध मुसलमानों से नहीं , ' मुस्लिम ब्लैकमेल ' से था। इसमें शक नहीं कि उनके लेखों और भाषणों से देश में गांधी-विरोधी वातावरण बना और भारत विभाजन की रेखाएं गहरी हुईं , लेकिन गांधी और नेहरू के मरहम को मुसलमानों ने छुआ तक नहीं। विभाजन की खाई तो सावरकर के मैदान में आने से बहुत पहले ही खुद चुकी थी। यदि सावरकर 27 साल जेल में नहीं रहते और बैरिस्टर बनकर 1890 में ही भारत लौटते तो पता नहीं भारत कौन सा हिन्दुत्व स्वीकार करता। गांधी का नरम हिन्दुत्व विफल हुआ और मुस्लिम तुष्टिकरण की कोख से पाकिस्तान जन्मा। लोहिया ने भी अपनी पुस्तक ' भारत विभाजन के दोषी ' में नेहरू तथा अन्य कांग्रेसी नेताओं को जिम्मेदार ठहराया है। सावरकर तो पाकिस्तान का बराबर विरोध करते रहे। देखें भाग्य की विडंबना कि आजादी के आखिरी दौर में गांधी और सावरकर का गंतव्य एक ही हो गया तथा जिन्ना और नेहरू के गंतव्य में कोई फर्क नहीं रह गया। मुस्लिम आक्रांताओं के बारे में भी सावरकर और लोहिया के विचार अनेक बिंदुओं पर एक जैसे दिखाई पड़ते हैं।
सावरकर जितने सेक्युलर और बुनियादी थे , उतने तो गांधी भी नहीं थे। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि हिन्दुत्व की अवधारणा का जनक कुछ खास परिस्थितियों में गोमांस-भक्षण की वकालत कर सकता है , वेदों की अपौरुषेयता और जन्मना वर्णाश्रम को रद्द कर सकता है और पुरोहिताई पाखंडों पर वज्र-प्रहार कर सकता है ? ऐसा क्रांतिकारी आरएसएस को कैसे स्वीकार हो सकता था ? हिन्दू महासभा और संघ में जैसी खींचतान 40 साल पहले तक चला करती थी , वैसी इन संगठनों की कांग्रेस के साथ भी नहीं चलती थी। सावरकर की प्रतिमा लगाने का अर्थ अगर यह है कि संघ परिवार किसी नए महानायक की तलाश में है , तो इससे प्रतिपक्ष को प्रसन्न ही होना चाहिए , क्योंकि सावरकर के सपनों का भारत जीवन की बुद्धिवादी दृष्टि पर आधारित है , किसी पुराण , कुरान , बाइबल या दास कैपिटल पर नहीं।

 


 जहां तक सावरकर द्वारा माफी मांगने का सवाल है , किसकी बात प्रमाणिक मानें ? अपने सर्वज्ञ नेताओं की या उस अंग्रेज अफसर की , जिससे माफी मांगी जा सकती थी ? 1913 में जब गवर्नर जनरल का प्रतिनिधि रेजिनॉल्ड क्रेडॉक पोर्ट ब्लेयर गया तो उसके सामने पांच कैदियों ने याचिकाएं पेश कीं। उनमें सावरकर भी थे। वे याचिकाएं थीं , माफीनामे नहीं। इन याचिकाओं में पांचों क्रांतिकारियों ने उन पर हो रहे जुल्मों का उल्लेख किया है और सरकार से सभ्य व्यवहार की आशा की है। अपनी रिहाई के लिए उन्होंने जरूरत से ज्यादा चाशनीदार शब्दावली का प्रयोग किया है। ठीक है कि सावरकर ने खूनी क्रांति का मार्ग छोड़कर संवैधानिक रास्ते पर चलने और राजभक्ति का आश्वासन दिया , लेकिन जरा गौर कीजिए कि सावरकर की याचिका पर क्रेडॉक ने क्या कहा। उसने अपनी गोपनीय टिप्पणी में लिखा कि सावरकर को अपने किए पर जरा भी पछतावा या खेद नहीं है और वह हृदय-परिवर्तन का ढोंग कर रहा है। इस याचिका के बाद भी सावरकर ने लगभग एक दशक तक काले पानी की महायातना भोगी। ऐसे सावरकर के चित्र पर भी आपको आपत्ति है । धन्य हैं , हमारे राजनेता।

सावरकर जी को बारम्बार सत सत नमन ।

मंगलवार, 27 मई 2014

अच्छे दिन आए तो कितने ?

नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में मंत्रिमंडल के शपथ लेने को मनमोहन सरकार की विदाई अथवा दस साल बाद भाजपा सरकार के फिर सत्ता संभालने के रूप में देखने की बजाय परिवर्तन के ऎसे रूप में देखने की जरूरत है जहां उम्मीदें परवान चढ़ी हों और जनता चुटकी बजाते ही समस्याओं का निदान देखना चाहती हो ।

लोकसभा चुनाव में जय-पराजय, आरोप-प्रत्यारोप और वादों का दौर खत्म हो चुका है और मोदी जी सरकार के सामने अब कुछ नहीं बहुत कुछ करके दिखाने का समय शुरू हो चुका है। सत्ता का यह दौर ऎसी जिम्मेदारियों का दौर है जहां सरकार को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाना होगा । बात महंगाई पर काबू पाने की हो या भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की अथवा विदेश नीति को चुस्त-दुरूस्त करने की । जनता की उम्मीदें बहुत हैं और यह जगाई भी स्वयं मोदी जी ने हैं । मोदी जी ने जनता से स्पष्ट बहुमत मांगा और उसने इतनी सीटें झोली में डाल दीं कि सरकार के पास अब बहाना भी नहीं बचा ।

मसलन, गठबंधन सरकार हो तो कहने का मौका मिल जाता है कि फलां दल नहीं मान रहा या फलां नेता काम में रोड़ा अटका रहा है । भाजपा की पिछली अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार रही हो या निवर्तमान मनमोहन जी की सरकार, सहयोगी दलों के दबाव में ही काम करती नजर आई । सरकारें बहुत से काम नहीं कर पाई तो उसकी वजह सहयोगियों का साथ नहीं देना भी माना जा सकता है लेकिन मोदी सरकार के सामने ऎसी कोई बाधा नहीं है। लिहाजा काम नहीं हो पाने के लिए जनता कोई बहाना सुनने को तैयार नहीं होगी । और अगले पांच सालो में फिर से बीजेपी को अर्श से फर्श पर पटक देगी ।

मोदी जी ने जो उम्मीदें जगाई, गुजरात मॉडल के सपने दिखाए, "मिनिमम गवर्नमेंट- मैक्सिमम गवर्नेस" का नारा दिया उसे पूरा करना असंभव नहीं तो आसान भी नहीं होगा। वर्षो से चल रहे सिस्टम को तोड़कर मोदी जी अपना नया तंत्र एकाएक विकसित कर पाएंगे, आसान नहीं है । फिर भी जो वादे किए हैं, न सिर्फ उन पर खरा उतरकर दिखाना होगा बल्कि कुछ ऎसा भी करके दिखाना होगा ताकि परवान पर चढ़ी उम्मीदों के पूरा होने में मदद मिले । मोदी जी ने अपनी टीम में किसे लिया और किसी नहीं, यह राजनीतिक बहस का विषय हो सकता है लेकिन इतना तय है कि नई सरकार के कामकाज के आकलन का समय शुरू हो चुका है और आने वाले दिन ही बता पाएंगे कि "अच्छे दिन आए या नहीं और आए तो कितने" ?

शनिवार, 17 मई 2014

श्री नरेंद्र मोदी जी के बारे में संक्षिप्त जानकारी ।


अपने प्रधानमंत्री के विषय में सबको जानकारी होनी चाहिए

पूरा नाम :- नरेन्द्र दामोदरदास मोदी
जन्म :- 17सितंबर, 1950
जन्म भूमि :- वड़नगर, मेहसाणा ज़िला, गुजरात
पद :- चौदहवें मुख्यमंत्री, गुजरात
कार्यकाल :- 7अक्टूबर, 2001से अब तक
विद्यालय :- गुजरात विश्वविद्यालय
शिक्षा :- एम.ए (राजनीति शास्त्र)
पुरस्कार उपाधि :- देशके सबसे श्रेष्ठ ई-गवर्न्ड राज्य का ELITEX 2007- पुरस्कार भारत की केन्द्र सरकार की ओर से प्राप्त।
जीवन परिचय:-
नरेंद्र मोदी को अपने बाल्यकाल से कई तरह की विषमताओं एवंविपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है,किन्तु अपने उदात्त चरित्रबल एवंसाहस से उन्होंने तमाम अवरोधों को अवसर में बदल दिया, विशेषकर जब उन्होने उच्च शिक्षा हेतु कॉलेज तथा विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उनदिनों वे कठोर संद्यर्ष एवंदारुण मन:ताप से घिरे थे,परन्तु् अपने जीवन- समर को उन्होंने सदैवएक योद्धा-सिपाही की तरह लड़ा है।आगे क़दम बढ़ाने के बाद वेकभी पीछे मुड़ कर नहीं देखते,साथ-साथ पराजय उन्हें स्वीकार्य नहीं है।अपने व्यक्तित्व की इन्हीं विशेषताओं के चलते उन्होंने राजनीति शास्त्र विषय के साथ अपनी एम.ए की पढ़ाई पूरी की।

राजनीतिक जीवन:-

1984में देशके प्रसिद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) के स्वयं सेवक के रूप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआतकी। यहीं उन्हें निस्वार्थता, सामाजिक दायित्वबोध, समर्पण और देशभक्ति के विचारों को आत्म सात करने का अवसर मिला। अपने संघ कार्य के दौरान नरेंद्र मोदी नेकई मौकों पर महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं।फिर चाहे वह 1974में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चलाया गया आंदोलन हो, या 19महीने (जून 1975से जनवरी 1977)चला अत्यंत प्रताडि़त करने वाला 'आपात काल'हो।

भाजपा में प्रवेश:-

1987में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) में प्रवेश कर उन्होंने राजनीति की मुख्यधारा में क़दम रखा। सिर्फ़ एक साल के भीतर ही उनको गुजरात इकाई के प्रदेश महामंत्री (जनरल सेक्रेटरी) के रूप में पदोन्नत कर दिया गया। तब तक उन्होंने एक अत्यंत ही कार्यक्षम व्यवस्थापक के रूप में प्रतिष्ठा हासिल कर ली थी। पार्टी को संगठित कर उसमें नईशक्ति का संचार करने का चुनौतीपूर्ण काम भी उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस दौरान पार्टी को राजनीतिक गति प्राप्त होती गईऔर अप्रैल, 1990में केन्द्र में साझा सरकार का गठन हुआ। हालांकि यह गठबंधन कुछही महीनो तक चला, लेकिन 1995में भाजपा अपने ही बलबूते पर गुजरात में दो तिहाई बहुमत हासिल कर सत्ता में आई।

व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी:-


नरेन्द्र मोदी की छवि एक कठोर प्रशासक और कड़े अनुशासन के आग्रही की मानी जाती है,लेकिन साथ ही अपने भीतर वेमृदुता एवंसामर्थ्य की अपार क्षमता भी संजोये हुए हैं।नरेन्द्र मोदी को शिक्षा-व्यवस्थामें पूरा विश्वास है। एक ऐसी शिक्षा-व्यवस्थाजो मनुष्य के आंतरिक विकास और उन्नति का माध्यम बने एवंसमाज को अँधेरे, मायूसी और ग़रीबी के विषचक्र से मुक्ति दिलाये। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नरेन्द्र मोदी की गहरी दिलचस्पी है।उन्होंने गुजरात को ई-गवर्न्ड राज्य बना दिया है और प्रौद्योगिकी के कई नवोन्मेषी प्रयोग सुनिश्चित किये हैं।'स्वागत ऑनलाइन' और 'टेलि फरियाद' जैसे नवीनतम प्रयासों से ई-पारदर्शिता आई है,जिसमें आम नागरिक सीधा प्रशासन के उच्चतम कार्यालय का संपर्क कर सकता है।जनशक्ति में अखण्ड विश्वास रखने वाले नरेन्द्र मोदी नेबखूबी क़रीब पाँच लाख कर्मचारियों की मज़बूत टीम की रचना की है।नरेन्द्र मोदी यथार्थवादी होने के साथ ही आदर्शवादी भी हैं।उनमें आशावाद कूटकूट कर भरा है।उनकी हमेशा एक उदात्त धारणा रही है कि असफलता नहीं, बल्कि उदेश्य का अनुदात्त होना अपराध है।वेमानते हैं कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए स्पष्ट दृष्टि, उद्देश्य या लक्ष्य का परिज्ञान और कठोर अध्यवसाय अत्यंत ही आवश्यक गुणहैं।

पुरस्कार:-

मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी नेकार्यकाल के दौरान राज्य के पृथक-पृथक क्षेत्रों में 60से अधिक पुरस्कार प्राप्त किये हैं।उनमें से कुछका उल्लेख नीचे किया जा रहा है-
16-10-2003आपदा प्रबंधन और ख़तरा टालने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र की ओर से सासाकावा पुरस्कार।
अक्टूबर-2004 प्रबंधन में नवीनता लाने के लिए 'कॉमनवेल्थ एसोसिएशन्स' की ओर से CAPAM गोल्ड पुरस्कार।
27-11-2004'इन्डिया इन्टरनेशनल ट्रेड फेयर-2004में इन्डिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर गुजरात्स एक्सेलन्स' की ओर से 'स्पेशल कमेन्डेशन गोल्ड मेडल' दिया गया।
24-02-2005भारत सरकार की ओर से गुजरात के राजकोट ज़िले में सेनिटेशन सुविधाओं के लिए 'निर्मल ग्राम' पुरस्कार दिया गया।
25-04-2005भारत सरकार के सूचना और तकनीकी मंत्रालय और विज्ञान-तकनीकी मंत्रालय द्वारा 'भास्कराचार्य इन्स्टिट्यूट ऑफ स्पेस एप्लिकेशन' और 'जिओ-इन्फर्मेटिक्स' गुजरात सरकार को "PRAGATI" के लिए 'एलिटेक्स' पुरस्कार दिया गया।
21-05-2005राजीव गांधी फाउन्डेशन नई दिल्ली की ओर से आयोजित सर्वेक्षण में देशके सभी राज्यों में गुजरात को श्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार मिला।
01-06-2005भूकंप के दौरान क्षतिग्रस्त हुए गुरुद्वारा के पुनःस्थापन के लिए यूनेस्को द्वारा 'एशिया पेसिफिक हेरिटेज' अवार्ड दिया गया।
05-08-2005'इन्डिया टुडे' द्वारा श्रेष्ठ निवेश पर्यावरण पुरस्कार दिया गया।
05-08-2005'इन्डिया टुडे' द्वारा सर्वाधिक आर्थिक स्वातंत्र्य पुरस्कार दिया गया।
27-11-2005नईदिल्ली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीयव्यापार मेलेमें गुजरात पेविलियन को प्रथम पुरस्कार मिला।
14-10-2005गुजराती साप्ताहिक चित्रलेखा के पाठकों नेश्री नरेन्द्र मोदी को 'पर्सन ओफ द इयर' चुना। इस में टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा दूसरे क्रम पर और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन तीसरे स्थान पर रहे। ये पुरस्कार दिनांक 18-05-2006को दिये गये।
12-11-2005इन्डिया टेक फाउन्डेशन की ओर से ऊर्जा क्षेत्र में सुधार और नवीनता के लिए इन्डिया टेक्नोलोजी एक्सेलन्स अवार्ड दिया गया।
30-01-2006इन्डिया टुडे द्वारा देशव्यापी स्तर पर कराये गये सर्वेक्षण में श्री नरेन्द्र मोदी देशके सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री चुनेगये।
23-03-2006सेनिटेशन सुविधाओं के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गुजरात के कुछगाँवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार दिये गये।
31-07-2006बीस सूत्रीय कार्यक्रम के अमलीकरण में गुजरात एक बार फिर प्रथम स्थान पर रहा।
02-08-2006सर्व शिक्षा अभियान में गुजरात देश के 35राज्यों (28+7)में सबसे प्रथम क्रमांक पर रहा।
12-09-2006अहल्याबाई नेशनलअवार्ड फंक्शन, इन्दौर की ओर से पुरस्कार।
30-10-2006चिरंजीवी योजना के लिए 'वोल स्ट्रीट जर्नल' और 30-10-2006 चिरंजीवी योजना के लिए 'वोल स्ट्रीट जर्नल' और 'फाइनान्सियल एक्सप्रेस' की ओर से (प्रसूति समय जच्चा-बच्चा मृत्यु दरकम करने ले लिए) सिंगापुर में 'एशियन इन्नोवेशन अवार्ड' दिया गया
04-11-2006भू-रिकार्ड्स के कम्प्यूटराइजेशनके लिए चल रही ई-धरा योजना के लिए ई-गवर्नन्स पुरस्कार।
10-01-2007देशके सबसे श्रेष्ठ ई-गवर्न्ड राज्य का ELITEX 2007-पुरस्कार भारत की केन्द्र सरकार की ओर से प्राप्त।
05-02-2007इन्डिया टुडे-ओआरजी मार्ग के देशव्यापी सर्वेक्षण में तीसरी बार श्रेष्ट मुख्यमंत्री चुनेगये। पाँच साल के कार्यकाल में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह अनोखी सिद्धि थी।

लोक सभा चुनाव 2014 के राज्यवार परिणाम (पार्ट 2)

हरियाणा    10 सीटें
१.     रतनलाल कटारिया, अंबाला, भाजपा
२.     धरमबीर, भिवानी-महेन्द्रगढ़, भाजपा
३.     कृष्णपाल, फरीदाबाद, भाजपा
४.     इंद्रजीत सिंह राव, गुड़गांव, भाजपा
५.     दुष्यंत चौटाला, हिसार, आईएनएलडी
६.     अश्विनी कुमार, करनाल, भाजपा
७.     राजकुमार सैनी, कुरुक्षेत्र, भाजपा
८.     दीपेन्द्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस, रोहतक
९.     चरणजीत सिंह रोरी, सिरसा, आईएनएलडी
१0.     रमेश चंद्र, सोनीपत, भाजपा
हिमाचल    ४ सीटें
१.     अनुराग सिंह ठाकुर, हमीरपुर, भाजपा
२.     शांता कुमार, कांगड़ा, भाजपा
३.     रामस्वरूप शर्मा, मंडी, भाजपा
४.     विरेन्द्र कश्यप, शिमला, भाजपा
जम्मू    ६ सीटें
१. मुजफ्फर हुसैन बैग, बारामूला, पीडीपी
२. तारिक हामिद करार, श्रीनगर, पीडीपी
३. मेहबूबा मूफ्ती, अनंतनाग, पीडीपी
४. थुपस्तान चेवांग, लदाख, भाजपा
५. डॉ. जितेंद्र सिंह, उधमपुर, भाजपा
६. जुगल किशोर, जम्मू, भाजपा
झारखंड    १४ सीटें
१. विजयकुमार हंसादक, राजमहल, झामुमो
२. शिबू सोरेन, दुमका, झारखंड मुक्ति मोर्चा
३. निशिकांत दुबे, गोड्डा, भाजपा
४. सुनील कुमार सिंह, चतरा, भाजपा
५. रवींद्र केआर रे, कोडारमा, भाजपा
६. रविंद्रकुमार पांडे, गिरडीह, भाजपा
७. पशुपतिनाथ सिंह, धनबाद, भाजपा
८. राममहल चौधरी, रांची, भाजपा
९. बीबी महतो, जमशेदपुर, भाजपा
१0. लक्ष्मण गिलुवा, सिंहभूम, भाजपा
११. करिया मुंडा, खूंटी, भाजपा
१२. सुदर्शन भगत, लोहारडगा, भाजपा
१३. विष्णु दयाल राम, पलामू, भाजपा
१४. जयंत सिन्हा, हजारीबाग, भाजपा
कर्नाटक    २८ सीटें
१. प्रकाश बबाना,  चिक्कोडी, कांग्रेस
२. एएस चिन्नाबसापा, बेलगाम, भाजपा
३. जीपी चंदनागोड, बगलकोट, भाजपा
४. रमेश जिगाजिनागी, बीजापुर, भाजपा
५. मल्लिकाजरुन खरगे, गुलबर्गा, कांग्रेस
६. बीवी नायक, रायचूर, कांग्रेस
७. भगवंत कुबा, बिडर, भाजपा
८. कराड़ी संधन्ना अमरप्पा, कोप्पल, भाजपा
९.  बीबी श्रीरामुलू, बेल्लारी, भाजपा
१0. उदासी शिवाकुमार, हावेरी, भाजपा
११. प्रहलाद जोशी, धारवाड़, भाजपा
१२. अनंत कुमार हेडगे, उत्तर कन्नड़, भाजपा
१३. जीएम सुदेश्वरा, देवनागीरी, भाजपा
१४. बीएस येद्दियुरप्पा, शिमोगा, भाजपा
१५. शोभा करंडलाजे, उडुपी चिकमंगलूर, भाजपा
१६. एचडी देवेगौड़ा, हासन, जेडीएस
१७. नलीन कुमार काटेल, दक्षिण कन्नड़, भाजपा
१८. बीएन चंद्रप्पा, चित्रदुर्ग, कांग्रेस
१९. मुड्डाहनुमे गोड़ा, तुमकुर, कांग्रेस
२0. सीएस पुत्ताराजू, मांड्या, जेडीएस
२१. प्रताप सिम्हा, मैसूर, भाजपा
२२. आर ध्रुवनारायण, चामराजनगर, कांग्रेस
२३. डीके सुरेश, बेंगलुरू रूरल, कांग्रेस
२४. डीवी सदानंद गौड़ा, बेंगलुरु नॉर्थ, भाजपा
२५. पीसी मोहन, बेंगलुरु सेंट्रल, भाजपा
२६. अनंत कुमार, बेंगलुरु साउथ, भाजपा
२७. एम विरप्पा मोइली, चिकबल्लापुर, कांग्रेस
२८. केएच मुनियप्पा, कोलार, कांग्रेस
केरल    20 सीटें
१. पी करुणाकरण, कसारगोड, सीपीआईएम
२. पीके श्रीमाटी टीचर, कुन्नूर, सीपीआईएम
३. एम रामचंद्रन, वेड्डाकारा, कांग्रेस
४. एमआई शनावास, वायांद, कांग्रेस
५. एमके राघवन, कोझीकोड, कांग्रेस
६. ई अहमद, मलाप्पुरम, आईयूएमएल
७. ईटी मोहम्मद बशीर, पोन्नानी, एआईएमएल
८. एमबी राजेश, पालाक्काड, सीपीआईएम
९. पीके बीजू, अलाथूर, सीपीआईएम
१0. सीएन जयदेवन, त्रिशूर, सीपीआई
११. इनोसेंट, चेलाकुडी, निर्दलीय
१२. प्रो. केवी थॉमस, एर्नाकुलम, कांग्रेस
१३. जोय जॉर्ज, इडुक्की, निर्दलीय
१४. जोस के मनी, कोट्टायम, केरल कांग्रेस(एम)
१५. केसी वेणुगोपाल, अलाप्पूझा, कांग्रेस
१६. के सुरेश, मावेलिक्कारा, कांग्रेस
१७. एंटो एंटनी, पथानामथिट्टा, कांग्रेस
१८. एनके प्रेमाचंद्रन, कोल्लम, आरएसपी
१९. डॉ. ए संपत, अटिंगल, सीपीआईएम
२0. डॉ. शशि थरूर, तिरुवनंतपुरम, कांग्रेस
महाराष्ट्र    48 सीटें
१. दिलीप कुमार गांधी, अहमदनगर, भाजपा
२. संजय शामराव धोत्रे, अकोला, भाजपा
३. आनंदराव अंशुल, अमरावती, शिवसेना
४. सीबी खरे, औरंगाबाद, शिवसेना
५. सुप्रिया सुले, बारामती, एनसीपी
६. गोपीनाथ मुंड़े, बीड, भाजपा
७. नानाबुआ पाटोले, भंडारा-गोंदिया, भाजपा
८. कपिल मोरेश्वर पाटील, भिवंडी, भाजपा
९. प्रतापराव जाधव, बुलढाना, भाजपा
१0. एएच गंगाराम, चन्द्रपुर, भाजपा
११. बी सुभाष रामराव, धुले, भाजपा
१२. हरिश्चंद चव्हाण, दिन्डोरी, भाजपा
१३. एएम नेट, गढ़चिरोली-चिमूर, भाजपा
१४. राजू शेट्टी, हटकांगले, स्वाभिमानी पक्ष
१५. आरएस साटव, हिंगोली, कांग्रेस
१६. एटी नाना पाटील, जलगांव, भाजपा
१७. डिया दादाराव, जालना, भाजपा
१८. डॉ. श्रीकांत शिंदे, कल्याण, शिवसेना
१९. धनंजय भीमाराव महाडीक, कोल्हापुर, एनसीपी
२0. सुनील बलीराम गायकवाड़, लातूर, भाजपा
२१. एमपीवी शंकराराव, माधा, एनसीपी
२२. शिरांग चंदू, मावल, शिवसेना
२३. गोपाल चिन्नाय शेट्टी, मुंबई उत्तर, भाजपा
२४. पूनम राव, मुंबई उत्तर मध्य, भाजपा
२५. किरीट सोमैया, मुंबई उत्तरपूर्व, भाजपा
२६. गजाननकीर्तिकर, मुंबई उत्तर-पश्चिम, शिवसेना
२७. अरविंद सावत, मुंबई  दक्षिण, शिवसेना
२८. राहुल शेवाले, मुंबई दक्षिण मध्य, शिवसेना
२९. नितिन गडकरी, नागपुर, भाजपा
३0. अशोक चव्हाण, नांदेड़, कांग्रेस
३१. गावित हीना विजयकुमार, नन्दुरबार, भाजपा
३२. हेमंत तुकाराम, नासिक, शिवसेना
३३. रवींद्र गायकवाड़, उस्मानाबाद, शिवसेना
३४. सीएन वांगा, पालघर, भाजपा
३५. संजय जादव, परभनी, शिवसेना
३६. अनिल शिरोले, पुणो, भाजपा
३७. अनंत गीते, रायगड, शिवसेना
३८. बालाजी कृपाल, रामटेक, शिवसेना
३९. विनायक रावत, रत्नागिरि-सिंधुदुर्ग, शिवसेना
४0. रक्षा खडासे, रावेर, भाजपा
४१. संजय काका पाटील, सांगली, भाजपा
४२. उदयराजे श्रीमंत, सतारा, एनसीपी
४३. सदाशिव लोखांडे, शिरडी, शिवसेना
४४. शिवाजी दत्तात्रेय, शिरूर, शिवसेना
४५. शरद बांसोडे, शोलापुर, भाजपा
४६. रंजन विचारे, ठाणो, शिवसेना
४७. चंद्रभांजी रामदास, वर्धा, शिवसेना
४८. भावना गवली, यवतमाल-वाशिम, शिवसेना
मणिपुर    2 सीटें
१. डॉ. थाक्चोंग मेनिया, इनर मणिपुर, कांग्रेस
२. थांग्सो बेटे, आउटर मणिपुर, कांग्रेस
मेघालय    2 सीटें
१. विंसेन पाला, शिलोंग, कांग्रेस  
२. पीए संगमा, तूरा, एनपीपी
मध्यप्रदेश    29 सीटें
१.  अनु मिश्रा, मुरैना, भाजपा
२. डॉ. भागीरथ प्रसाद, भींड, भाजपा
३. नरेन्द्र सिंह तोमर, ग्वालियर, भाजपा
४. ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुना, कांग्रेस
५. लक्ष्मीनारायण यादव, सागर, भाजपा
६. डॉ. वीरेन्द्र कुमार, टिकमगढ़, भाजपा
७. प्रहलाद पटेल, दमोह, भाजपा
८. नागेन्द्र सिंह, खजुराहो, भाजपा
९. गणोश सिंह, सतना, भाजपा
१0. जनार्दन मिश्रा, रीवा, भाजपा
११. रीति पाठक, सीधी, भाजपा
१२. दलपत सिंह परस्ते, शहडोल, भाजपा
१३. राकेश सिंह, जबलपुर, भाजपा
१४. फग्गन सिंह कुलस्ते, मंडला, भाजपा
१५. बोधसिंह भगत, बालाघाट, सीपीआईएम
१६. कमलनाथ, छिंदवाड़ा, कांग्रेस
१७. उदय प्रताप सिंह, होशंगाबाद, भाजपा
१८. सुषमा स्वराज,  विदिशा, भाजपा
१९. आलोक संजर, भोपाल, भाजपा
२0. रोडमल नागर, राजगढ़, भाजपा
२१. मनोहर ऊंटवाल, देवास, भाजपा
२२. प्रो. चिंतामणी मालवीय, उज्जैन, भाजपा
२३. सुधीर गुप्ता, मंदसौर, भाजपा
२४. दिलीप सिंह भूरिया, रतलाम, भाजपा
२५. सावित्री ठाकुर, धार, भाजपा
२६. सुमित्रा महाजन, इंदौर, भाजपा
२७. सुभाष पटेल, खरगोन, भाजपा
२८. नदंकुमार सिंह चौहान, खंडवा, भाजपा
२९. ज्योति धुर्वे, बैतूल, भाजपा
नागालैंड/ सिक्किम    1-1 सीट
१. नेफियू रियो, नागालैंड, एनपीपी
२. सी.एल. रूआला, मिजोरम, कांग्रेस
३. प्रेमदास राय, सिक्किम, एसडीएफ
ओडिशा    21 सीटें
१. प्रभाष कुमार सिंह, बारगढ़, बीजेडी
२. जुएल ओरम, सुंदरगढ़, भाजपा
३. एनके प्रधान, संबलपुर, बीजेडी
४. शकुंतला लागूरी, क्योंझर, बीजेडी
५. रमाचंद्र हंसदा, मयूरभंज, बीजेडी
६. रवीद्रकुमार जेना, बालासोर, बीजेडी
७. अर्जुन चरण सेठी, भद्रक, बीजेडी
८. रीता तराई, जाजपुर, बीजेडी
९. टी सत्थपथी, धेंकनाल, बीजेडी
१0. कलिकेश नारायण सिंह देव, बोलांगीर, बीजेडी
११. अरका केशरी देव, कालाहांडी, बीजेडी
१२. बी मांझी, नबरंगपुर, बीजेडी
१३. हेमेंद्रचंद्र सिंह, कंधमाल, बीजेडी
१४. भरतुहरी महताभ, कटक, बीजेडी
१५. बैजियंत पांडा, केंद्रापारा, बीजेडी
१६. कुलामनी समल, जगतसिंहपुर, बीजेडी
१७. पिनाकी मिश्रा, पुरी, बीजेडी
१८. प्रसन्ना कुमार पतासनी, भुवनेश्वर, बीजेडी
१९. लादुकिशोर स्वाइन, अस्का, बीजेडी
२0. सिद्धांत मोहपात्रा, बेरहमपुर, बीजेडी
२१. जिना हिकाका, कोरापुट, बीजेडी
पंजाब   13 सीटें
१. विनोद खन्ना, गुरदासपुर, भाजपा
२. कैप्टन अमरिंदर सिंह, अमृतसर, कांग्रेस
३. रणजीत सिंह, खदूर साहिब, अकाली दल
४. संतोख सिंह चौधरी, जालंधर, कांग्रेस
५. विजय संप्ला, होशियारपुर, भाजपा
६. प्रेम ¨सह, आनंदपुर साहिब, अकाली दल
७. रवनीत सिंह बिट्टू, लुधियाना, कांग्रेस
८. हरीदंर सिंह खालसा, फतेहगढ़ साहिब, आप
९. प्रो. सादुसिंह, फरीदकोट, आप
१0. शेर सिंह गुभाया, फिरोजाबाद, अकाली दल
११. हरसिमरत कौर बादल, बटिंडा, अकाली दल
१२. भगवंत मान, संगरूर, आप
१३. डॉ. धर्मवीर गांधी, पटियाला, आप
राजस्थान    25 सीटें
१. निहालचंद, गंगानगर, भाजपा
२. अजरुनराम मेघवाल, बीकानेर, भाजपा
३. राहुल कस्वां, चुरू, भाजपा
४. संतोष अहलावत, झुंझुनू, भाजपा
५. सुमेधानंद सरस्वती, सीकर, भाजपा
६. राज्यवर्धन सिंह राठौड़, जयपुर रूरल, भाजपा
७. रामचरण बोहरा, जयपुर, भाजपा
८. चांद नाथ, अलवर, भाजपा
९. बहादुर सिंह, भरतपुर, भाजपा
१0. मनोज राजोरिया, करौली-धौलपुर, भाजपा
११. हरिश्चंद्र मीना, दौसा, भाजपा
१२. सुखबीर सिंह, टोंक- सवाई माधोपुर, भाजपा
१३. सांवरलाल जाट, अजमेर, भाजपा
१४. सीआर चौधरी, नागौर, भाजपा
१५. पीपी चौधरी, पाली, भाजपा
१६. गजेन्द्र सिंह शेखावत, जोधपुर, भाजपा
१७. कर्नल सोनाराम, बाढ़मेर, भाजपा
१८. देवजी पटेल, जालौर, भाजपा
१९. अजरुन लाल मीणा, उदयपुर, भाजपा
२0. मनशंकर निनामा, बांसवाड़ा, भाजपा
२१. चंद्रप्रकाश जोशी, चित्तौड़गढ़, भाजपा
२२. हरीओम सिंह राठौड़, राजसमंद, भाजपा
२३. सुभाष मेहरिया, भीलवाड़ा, भाजपा
२४. ओम बिरला, कोटा, भाजपा
२५. दुष्यंत ¨सह, झालावाड़- बारां, भाजपा
  
तमिलनाडु    39 सीटें
१. हरी जी, अर्कोनम, एआईएडीएमके
२. वी. ईलुमलाई, अरानी, एआईएडीएमके
३. विजयकुमार, चेन्नई सेंट्रल, एआईएडीएमके
४. वेंकटेश बाबू, चेन्नई नार्थ, एआईएडीएमके
५. जे जयवर्धन, चेन्नई साउथ, एआईएडीएमके
६. चंद्राक्षी एम, चिदंबरम, एआईएडीएमके
७. नागराजन, कोयम्बटूर, एआईएडीएमके
८. अरुमोझथोवन एम, कुड्डालोर, एआईएडीएमके
९. अंबुमणी रामदास, धर्मपुरी, पीएमके
१0. एम उदयकुमार, डिंडीगुल, एआईएडीएमके
११. सेल्वाकुमारा चिन्नासन, इरोड, एआईएडीएमके
१२. के कामराज, कल्लाकुरिची, एआईएडीएमके
१३. के माराघाटम, कांचीपुरम, एआईएडीएमके
१४. पी राधाकृष्णन, कन्याकुमारी, भाजपा
१५. एम थबींदुराई, करूर, एआईएडीएमके
१६. के अशोक कुमार, कृष्णागिरि, एआईएडीएमके
१७. आर गोपालकृष्णन, मदुरै, एआईएडीएमके
१८. आरके मोहन, मयिलादुथुरई, एआईएडीएमके
१९. के गोपाल, नागापट्टिनम, एआईएडीएमके
२0. पीआर सुंदरमा, नामाक्कल, एआईएडीएमके
२१. सी गोपालाकृष्णन, नीलगिरि, एआईएडीएमके
२२. आरपी मरूथाराजा, पैरम्बलूर, एआईएडीएमके
२३. सी महेन्द्रन, पोल्लाची, एआईएडीएमके
२४. ए अनवर, रामनाथपुरम, एआईएडीएमके
२५. वी पन्नीसेल्वम, सेलम, एआईएडीएमके
२६. पीआर सेंथनाथन, शिवगंगा, एआईएडीएमके
२७. केएन रामचंद्रन, श्रीपेरूम्बुदूर, एआईएडीएमके
२८. एम वसंथी, तेनकासी, एआईएडीएमके
२९. के परासूरामन, तंजावूर, एआईएडीएमके
३0. आर पार्थीपन, थेनी, एआईएडीएमके
३१. जेटीएन जयासिंह, थूथुकुडी, एआईएडीएमके
३२. पी कुमार, तिरुचिरापल्ली, एआईएडीएमके
३३. के प्रभाकरन, तिरुनेलवेली, एआईएडीएमके
३४. वी सात्याबामा, तिरूप्पुर, एआईएडीएमके
३५. डॉ पी वेणुगोपाल, तिरुवल्लूर, एआईएडीएमके
३६. आरवानारोजा, तिरुवन्नामलाई, एआईएडीएमके
३७. बी सेगुथुवन, वेल्लौर, एआईएडीएमके
३८. एस राजेंद्रन, विलुपुरम, एआईएडीएमके
३९. टी राधाकृष्णन, विरुधुनगर, एआईएडीएमके
त्रिपुरा    2 सीटें
१. जितेंद्र चौधरी, त्रिपुरा ईस्ट, सीपीआईएम
२. शंकर प्रसाद दत्ता, त्रिपुरा वेस्ट, सीपीआईएम
उत्तराखंड    5 सीटें
१. माला राज्यालक्ष्मी, टिहरी- गढ़वाल, भाजपा
२. बीसी खंडूरी, गढ़वाल, भाजपा
३. अजय तमता, अल्मोड़ा, भाजपा
४. भगत सिंह कोश्यारी, नैनीताल, भाजपा
५. रमेश पोखरियाल, हरिद्वार, भाजपा
केंद्र शासित प्रदेश
किरण खेर, चंडीगढ़, भाजपा

बिष्णुपदा राय, अंडमान निकोबार, भाजपा

आर राधाकृष्णन, पुडुचेरी, एआईएनआर कांग्रेस

नातूभाई पटेल, दादरा-नगर हवेली, भाजपा

लालूभाई पटेल, दमन और दीव, भाजपा

मोहम्मद फैजल, लक्षद्वीप, एनसीपी
 दिल्ली    ७ सीटें


१. डॉ. हर्षवर्धन, चांदनी चौक, भाजपा

२. मनोज तिवारी, उत्तरी पूर्वी दिल्ली, भाजपा

३. महेश गिरी, पूर्वी दिल्ली, भाजपा

४. मीनाक्षी लेखी, नई दिल्ली, भाजपा

५. उदित राज, उत्तर पश्चिम दिल्ली, भाजपा

६. प्रवेश वर्मा, पश्चिम दिल्ली, भाजपा

७. रमेश विधुड़ी, दक्षिण दिल्ली, भाजपा

गोवा    २ सीटें

१.     श्रीपाद  येशो नायक, नॉर्थ गोवा, भाजपा


२.     नरेन्द्र केशव सावरीकर, साउथ गोवा, भाजपा

गुजरात    २६ सीटें

१. परेश रावल, अहमदाबाद पूर्व, भाजपा

२. डॉ. किरीट सोलंकी, अहमदाबाद पश्चिम, भाजपा

३. नारायण भाई कछाड़िया, अमरेली, भाजपा

४. दिलीप पटेल, आणंद, भाजपा

५. हरिभाई चौधरी, बनासकांठा, भाजपा

६. प्रभुभाई वसावा, बारडोली, भाजपा

७. मनसुख भाई वसावा, भरूच, भाजपा

८. डॉ. भारतीबेन, भावनगर, भाजपा

९. रामसिंह राठवा, छोटा उदयपुर, भाजपा

१0. जसवंत ¨सह भभोर, दाहोद, भाजपा

११. लालकृष्ण आडवाणी, गांधीनगर, भाजपा

१२. पूनमबेन हेमलभाई, जामनगर, भाजपा

१३. राजेशभाई चूडास्मा, जूनागढ़, भाजपा

१४. विनोद चावड़ा, कच्छ, भाजपा

१५. देवूसिंह चौहान, खेड़ा, भाजपा

१६. जयश्रीबेन पटेल, मेहसाना, भाजपा

१७. सीआर पाटील, नवसारी, भाजपा

१८. प्रभात सिंह चौहान, पंचमहल, भाजपा

१९. लीलाधरभाई वाघेला, पाटन, भाजपा

२0. विट्ठलभाई रादड़िया, पोरबंदर, भाजपा

२१. मोहनभाई खंडारिया, राजकोट, भाजपा

२२. दीपसिंह राठौड़, साबरकांठा, भाजपा

२३. दर्शना विक्रम जरदोश, सूरत, भाजपा

२४. देवजीभाई फतेपारा, सुरेन्द्रनगर, भाजपा

२५. नरेन्द्र मोदी, वडोदरा, भाजपा

२६. डॉ. केसी पटेल, वलसाड, भाजपा

  

दिल्ली    ७ सीटें


१. डॉ. हर्षवर्धन, चांदनी चौक, भाजपा

२. मनोज तिवारी, उत्तरी पूर्वी दिल्ली, भाजपा

३. महेश गिरी, पूर्वी दिल्ली, भाजपा

४. मीनाक्षी लेखी, नई दिल्ली, भाजपा

५. उदित राज, उत्तर पश्चिम दिल्ली, भाजपा

६. प्रवेश वर्मा, पश्चिम दिल्ली, भाजपा

७. रमेश विधुड़ी, दक्षिण दिल्ली, भाजपा



लोकसभा चुनावों में कुल 543 सीटों में से बीजेपी+ ने 337, कांग्रेस+ ने 58, आम आदमी पार्टी ने 4 और बाकी पार्टियों ने 144 सीटों पर जीत दर्ज की है।

कांग्रेस+ में कांग्रेस को 43, एनसीपी को 5, आरजेडी को 4, आईयूएमएल को 2, जेएमएम को 2, केसी (एम) और आरएसपी को 1-1 सीटें मिली हैं। एनसी और आरएलडी को कोई सीट नहीं मिली है।

बीजेपी+ में बीजेपी को 283, शिवसेना को 19, टीडीपी को 16, लोक जनशक्ति पार्टी को 6, शिरोमणि अकाली दल को 4, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 3, अपना दल को 2 और एआईएनआरसी, एनपीएफ, एनपीपी, पीएमके को 1-1 सीटें मिली हैं। डीएमडीके, एचजेसी (बीएल), एमडीएमके, एमएनएस और आरपीआई (ए) को कोई सीट नहीं मिली है।




लोक सभा चुनाव 2014 के राज्यवार परिणाम (पार्ट 1)

उत्त्तरप्रदेश     80 सीटें

1. डॉ. रामशंकर कठेरिया, आगरा
2. देवेन्द्र सिंह, अकबरपुर, भाजपा
3. सतीश कुमार, अलीगढ़, भाजपा
4. श्यामाचरण गुप्ता, इलाहाबाद, भाजपा
5. हरिओम पांडेय, अम्बेडकर नगर, भाजपा
6. राहुल गांधी, अमेठी, कांग्रेस
7. कुंवर सिंह तंवर, अमरोहा, भाजपा
8. धर्मेद्र कुमार, आंवला, भाजपा
9. मुलायम सिंह यादव, आज़मगढ़, सपा
10. धर्मेद्र यादव, बदायूं, सपा
11. सत्यपाल सिंह, बागपत, भाजपा
12. साध्वी सावित्री बाई, बहराइच, भाजपा
13. भरत सिंह, बलिया, भाजपा
14. भैरोंप्रसाद मिश्रा, बांदा, भाजपा
15. कमलेश पासवान, बांसगांव, भाजपा
16. प्रियंका सिंह रावत, बाराबंकी, भाजपा
17. संतोष कुमार गेंगवार, बरेली, भाजपा
18. हरीश चंद्र, बस्ती, भाजपा
19. वीरेंद्र सिंह, भदोही, भाजपा
20. कुंवर भारतेंद्र, बिजनौर, भाजपा
21. भोला सिंह, बुलंदशहर, भाजपा
22. डॉ. महेन्द्र नाथ पांडे, चंदौली, भाजपा
23. कलरात मिश्रा, देवरिया, भाजपा
24. रेखा, धौरहरा, भाजपा
25. जगदंबिका पाल, डुमरियागंज, भाजपा
26. राजवीर सिंह, एटा, भाजपा
27. अशोक कुमार दोहारे, इटावा, भाजपा
28. लल्लू सिंह, फैजाबाद, भाजपा
29. मुकेश राजपूत, फरुखाबाद, भाजपा
30. निरंजन ज्योति, फतेहपुर, भाजपा
31.  बाबूलाल, फतेहपुर सीकरी, भाजपा
32. महेश शर्मा, गौतम बुद्ध नगर, भाजपा
33. वीके सिंह, गाजि़याबाद, भाजपा
34. मनोज सिन्हा, गाजीपुर, भाजपा
35. हरिनारायण राजभर, घोसी, भाजपा
36. कीर्तिवर्धन सिंह, गोंडा, भाजपा
37. आदित्यनाथ, गोरखपुर, भाजपा
38. कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह, हमीरपुर, भाजपा
39. अंशुल वर्मा, हरदोई, भाजपा
40. राजेश कुमार दिवाकर, हाथरस, भाजपा
41. भानुप्रताप सिंह वर्मा, जालौन, भाजपा
42. कृष्णप्रताप ¨सह, जौनपुर, भाजपा
43. उमा भारती, झांसी, भाजपा
44. हुकुम सिंह, कैराना, भाजपा
45. बृजभूषण शरण ¨सह, कैसरगंज
46. डिंपल यादव, कन्नौज, समाजवादी पार्टी
47. मुरली मनोहर जोशी, कानपुर, भाजपा
48. विनोद कुमार सोनकर, कौशांबी, भाजपा
49. अजय कुमार, खीरी, भाजपा
50. राजेश पांडेय, कुशीनगर, भाजपा
51. नीलम सोनकर, लालगंज, भाजपा
52. राजनाथ सिंह, लखनऊ, भाजपा
53. रामचंद्र निशाद, मछलीशहर, भाजपा
54. पंकज, महाराजगंज, भाजपा
55. मुलायम सिंह यादव, मैनपुरी, सपा
56. हेमा मालिनी, मथुरा, भाजपा
57. राजेन्द्र अग्रवाल, मेरठ, भाजपा
58. अनुप्रिया सिंह पटेल, मिर्जापुर, अपना दल
59. अंजुबाला, मिसरिख, भाजपा
60. कौशल किशोर, मोहनलाल गंज, भाजपा
61. कुवर सर्वेस कुमार, मुरादाबाद, भाजपा
62. संजीव कुमार, मुजफ्फरनगर, भाजपा
63. यशवंत सिंह, नगीना, भाजपा
64. केशव प्रसाद मौर्या, फूलपुर, भाजपा
65. मेनका संजय गांधी, पीलीभीत, भाजपा
66. कुंवर हरिवंश सिंह, प्रतापगढ़, अपना दल
67. सोनिया गांधी, रायबरेली, कांग्रेस
68. डॉ. नेपाल सिंह, रामपुर, भाजपा
69. छोटेलाल, रॉबर्ट्सगंज, भाजपा
70. राघव लखनपाल, सहारनपुर, भाजपा
71. रविंद्र कुशवाहा, सलेमपुर, भाजपा
72. सत्यपाल सिंह, संभल, भाजपा
73. शरद श्रीपाठी, संत कबीर नगर, भाजपा
74. कृष्णा राज, शाहजहांपुर, भाजपा
75. दद्न मिश्रा, श्रावस्ती, भाजपा
76. राजेश वर्मा, सीतापुर, भाजपा
77. फिरोज वरुण गांधी, सुल्तानपुर, भाजपा
78. स्वामी सच्चिदानंद हरिसाक्षी, उन्नाव, भाजपा
79. नरेन्द्र मोदी, वाराणसी, भाजपा
80. अक्षय यादव, फिरोजाबाद, सपा 
आंध्र प्रदेश    ४२ सीटें

१. गोदम नागेश, अदीलाबाद, टीआरएस

२. बालका सुमन, पेड्डापल्ले, टीआरएस
३. विनोद कुमार, करीमनगर, टीआरएस
४. के कविता, निजामाबाद, टीआरएस
५. बीबी पाटील, जहीराबाद, टीआरएस
६. के.चंद्रशेखर राव, मेडक, टीआरएस
७. सीएस मल्लारेड्डी, मल्काजगिरी, टीडीपी
८.बंदारू दत्तात्रेय, सिकंदराबाद, भाजपा
९. असासुद्दीन औवेसी, हैदराबाद, एमआईएम
10. केवी रेड्डी, चेवेल्ला, टीआरएस
११. जितेंद्र रेड्डी, महबूबनगर, टीआरएस
१२. येल्लीयाह नंदी, नगर कुरनूल, कांग्रेस
1३. जीएस रेड्डी, नालगोंडा, कांग्रेस
१४. बीएन गौड़, भोंगीर, टीआरएस
१५. के श्रीहरी, वारंगल, टीआरएस
१६. अजमेरा एस नायर, महबूबाबाद, टीआरएस
१७. पीएस रेड्डी, खम्मम, वायएसआरसी
१८. बुटा रेणुका, कुरनूल, वायएसआरसी
१९. राममोहन नायडू, श्रीकाकुलम, टीडीपी
20. एजीआर पूसापति, विजियानगरम, टीडीपी
२१. के हरिबाबू, विशाखापत्तनम, भाजपा
२२. एमएसराव, अनकापल्ली, टीडीपी
२३. थोथा नरसिम्हा, काकीनाड़ा, टीडीपी
२४. पीआर बाबू, अमलापुरम, टीडीपी
२५. मुरली मोहन मगंती, राजमुन्दरी, टीडीपी
२६. जी गंगा राजू, नरसापुरम, भाजपा
२७. मगंती वी राव, एलूरू, टीडीपी
२८. के नारायण राव, मछलीपत्तनम, टीडीपी
२९. के श्रीनिवास, विजयवाड़ा, टीडीपी
३क्. जयदेव गल्ला, गुंटूर, टीडीपी
३१. एसआर रायपति, नरसारावपेट, टीडीपी
३२. मलयाद्री श्रीराम, बापतला, टीडीपी
३३. वायवीएस रेड्डी, ओंगोले, वायएसआरसी
३४. एसपीवाय रेड्डी, नांदयाल, वायएसआरसी
३५. बुटा रेणुका, कुरनूल, वायएसआरसी
३६. जेसीडी रेड्डी, अनंतपुरम, टीडीपी
३७. के निर्मला, हिंदुपुर, टीडीपी
३८. वायएसए रेड्डी, कडापा, वायएसआरसी
३९. एमआर रेड्डी, नेल्लौर, वायएसआरसी
४क्. वाराप्रसाद राव, तिरुपति, वायएसआरसी
४१. पीवीएम रेड्डी, राजमपेट, टीडीपी
४२. एन. शिवप्रसाद, चित्तूर, टीडीपी
अरुणाचल प्रदेश 02 सीटें

१. किरण रिज्जू, अरुणाचल पश्चिम, भाजपा 

२. निनोंग एरिंग, अरुणाचल पूर्व, कांग्रेस
असम    १४ सीटें
१. राधेश्याम बिस्वास, करीमगंज,  एआईयूडीएफ
२. सुष्मिता देव, सिलचर, कांग्रेस
३. बीरेन सिंह अंगती, स्वायत्तशासी जिला, कांग्रेस
४. बद्रुदीन अजमल, धुबरी, एआईयूडीएफ
५. नाभा कुमार, कोकराझार, निर्दलीय
६. सिराजुद्दीन अजमल, बारपेटा, एआईयूडीएफ
७. बिजोया चक्रवर्ती, गुवाहाटी, भाजपा
८. रमेन डेका, मंगलदोई, भाजपा
९. रामप्रसाद शर्मा, तेजपुर, भाजपा
१0. राजेन गोहैन, नौगांव, भाजपा
११. गौरव गोगाई, कलियाबोर, कांग्रेस
१२. केपी तासा, जोरहाट, भाजपा
१३. रामेश्वर तेली, डिब्रूगढ़, भाजपा
१४. एस सोनोवल, लखीमपुर, भाजपा
प. बंगाल ४२ सीटें
१. दशरथ टिर्की, अलीपुरद्वार, टीएमसी
२. अप्पारूपा पोद्दार, आरामबाग, टीएमसी
३. बाबुल सुप्रियो, आसनसोल, भाजपा
४. ए आर चौधरी, बहरामपुर, कांग्रेस
५. अर्पिता घोष, बलूरघाट, टीएमसी
६. केके ठाकुर, बनगांव, टीएमसी
७. श्रीमति देव वर्मा, बांकुरा, टीएमसी
८. डॉ. काकली, बारासात, टीएमसी
९. सुनील कुमार मुंडल,बर्धमान-पूर्बा, टीएमसी
१0. डॉ. ममताज, बर्धमान-दुर्गापुर, टीएमसी
११. दिनेश त्रिवेदी, बैरकपुर, टीएमसी
१२. इदरीश अली, बसीरहाट, टीएमसी
१३. शताब्दी रॉय, बीरभूम, टीएमसी
१४. सौमित्र खान, विष्णुपुर, टीएमसी
१५. अनुपम हजरा, बोलपुर, टीएमसी
१६. रेणुका सिन्हा, कूचबिहार, टीएमसी
१७. एसएस आहलुवालिया, दार्जिलिंग, टीएमसी
१८. अभिषेक बनर्जी, डायमंड हार्बर, टीएमसी
१९. सोगत रॉय, दमदम, टीएमसी
२0. दीपक अधिकारी, घाटल, टीएमसी
२१. डॉ. रत्ना डे, हुगली, टीएमसी
२२. प्रसून बनर्जी, हावड़ा, टीएमसी
२३. सोगाता बोस, जादवपुर, टीएमसी
२४. बिनय चंद्र बर्मन, जलपाईगुड़ी, टीएमसी
२५. अभिजीत मुखर्जी, जंगीपुर, कांग्रेस
२६. प्रतिमा मुंडाल, जयनगर, टीएमसी
२७. उमा सारेन, झारग्राम, टीएमसी
२८. शिशिर अधिकारी, कांथी,टीएमसी
२९. सुब्रता बक्षी, कोलकाता दक्षिण, टीएमसी
३0. सुदीप बंधोपाध्याय, कोलकाता उत्तर, टीएमसी
३१. तपस पाल, कृषनगर, टीएमसी
३२. एएचके चौधरी, माल्दा दक्षिण, टीएमसी
३३. मौसम नूर, मालदह उत्तर, कांग्रेस
३४. मोहन जटुआ, मथुरापुर, टीएमसी
३५. संध्या राय, मेदिनीपुर, टीएमसी
३६. बद्रूदोजा खान, मुर्शिदाबाद, सीपीआईएम
३७. एम महतो, पुरुलिया, टीएमसी
३८. एमडी सलीम, रायगंज, सीपीआईएम
३९. तपस मंडल, राणाघाट, टीएमसी
४0. कल्याण बनर्जी, श्रीरामपुर, टीएमसी
४१. एस अधिकारी, तामलुक, टीएमसी
४२. सुल्तान अहमद, उलबेरिया, टीएमसी
बिहार    40 सीटें

१. सतीश चंद्र दुबे, वाल्मीकि नगर, भाजपा
२. संजय जायसवाल, पश्चिम चंपारण, भाजपा
३. राधामोहन सिंह, पूर्वी चंपारण, भाजपा
४. रमा देवी, शिवहर, भाजपा
५. रामकुमार शर्मा, सीतामढ़ी, आरएलएसपी
६. हुकुम देव नारायण सादव, मधुबनी, भाजपा
७. बिरेन्द्र कुमार चौधरी, झंझारपुर, भाजपा
८. रंजीत रंजन, सुपौल, कांग्रेस
९. तस्लीम उद्दीन, अररिया, आरजेडी
१0. मोहम्मद अस्रारूल हक, किशनगंज, कांग्रेस
११. तारिक अनवर, कटिहार, एनसीपी
१२.संतोष कुमार, पूर्णिया, जेडीयू
१३. राजेश रंजन, मधेपुरा, आरजेडी
१४. कीर्ति आजाद, दरभंगा, भाजपा
१५. अजय निषाद, मुजफ्फरपुर, भाजपा
१६. रामकिशोर सिंह, वैशाली, लोजपा
१७. जनक राम, गोपालगंज, भाजपा
१८. ओम प्रकाश यादव, सीवान, भाजपा  
१९. जनार्दन सिंह, महाराजगंज, भाजपा
२0. राजीव प्रताप रूड़ी, सारण, भाजपा
२१. रामविलास पासवान, हाजीपुर, लोजपा
२२. नित्यानंद राय, उजियारपुर, भाजपा
२३. रामचंद्र पासवान, समस्तीपुर, लोजपा
२४. भोला सिंह, बेगूसराय, भाजपा
२५. महबूब अली केसर, खगड़िया, लोजपा
२६. शैलेन्द्र कुमार, भागलपुर, आरजेडी
२७. जयप्रकाश नारायण यादव, बांका, भाजपा
२८. मीना देवी, मुंगेर, जनलोक शक्ति पार्टी
२९. कौशलेंद्र कुमार, नालंदा, जेडीयू
३0. शत्रुघ्न सिन्हा, पटना साहिब, भाजपा
३१. रामकृपाल यादव, पाटलिपुत्र, भाजपा
३२. राज कुमार सिंह, आरा, भाजपा
३३. अश्विनी कुमार चौबे, बक्सर, भाजपा
३४. छेदी पासवान, सासाराम, भाजपा
३५. उपेन्द्र कुशवाहा, काराकाट, रालोसपा
३६. डॉ. अरुण कुमार, जहानाबाद, रालोसपा
३७. सुशील कुमार सिंह, औरंगाबाद, भाजपा
३८. हरि मांझी, गया, भाजपा
३९. गिरीराज सिंह, नवादा, भाजपा
४0. चिराग कुमार पासवान, जमुई, लोजपा
छत्तीसगढ़    ११ सीटें
१.     दिनेश कश्यप, बस्तर, भाजपा
२.     लखनलाल साहू, बिलासपुर, भाजपा
३.     टी साहू, दुर्ग, कांग्रेस
४.     कमला पटेल, जांजगीर-चंपा, भाजपा
५.     विक्रम देव, कांकेर, भाजपा
६.     डॉ. बंशीलाल महमो, कोरबा, भाजपा
७.     चंदूलाल साहू, महासमुंद, भाजपा
८.     विष्णुदेव, रायगढ़, भाजपा
९.     रमेश बैंस, रायपुर, भाजपा
10.     अभिषेक सिंह, राजनंदगांव, भाजपा
११.     कमलभान सिंह, सरगुजा, भाजपा

 


मंगलवार, 13 मई 2014

रिक्सा खीचने वाले आज 70 लाख का टैक्स देते है ।


 
मैं कभी रिक्शा खींचता था, पर अब 70 लाख टैक्स देता हूँ---: धरमवीर काम्बोज । 


पेशे से किसान, 51 वर्षीय धरमवीर काम्बोज कुछ वर्षों पहले तक दिल्ली की गलियों में साइकिल रिक्शा चलाते थे. ग़रीबी इतनी थी कि न पैडल पर से पांव हटे, न गांव जाने का मौक़ा मिला. फिर एक हादसा हुआ, घर लौटना पड़ा  ।  मुश्किल दिन थे. धरमवीर बताते हैं, “ग़रीबी सोने नहीं देती थी. काम के लिए इधर-उधर घूमता रहता था. फिर कहीं देखा कि लोग आंवले के जूस, मिठाइयों के लिए पैसे देने को तैयार हैं. हमने बाग़वानी विभाग से मदद मांगी. हमें 25 हज़ार रुपए की सब्सिडी भी मिली. साल 2007 में हमने आंवले की खेती शुरू की, उसका रस निकालते थे और पैकेटों में भरकर बेचते थे. इसकी मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी, नए ग्राहक मिलने लगे. हरिद्वार में कुछ बड़े व्यापारी भी मिले.”
“कई बार आंवला कसने में हाथ छिल जाते थे, तो मैंने और मेरी पत्नी ने एक ऐसी मशीन बनाई, जिसमें आंवला, एलोवेरा, दूसरी सब्ज़ियों और जड़ी-बूटियों के सत्व निकाले जा सकते थे और वो भी बिना बीज तोड़े.”
इस मशीन को बनाने में कई मित्रों ने धरमवीर काम्बोज की मदद की और कुछ ने मुंह पर न भी कह दिया. बहरहाल काफ़ी मेहनत के बाद मशीन ने एक शक्ल अख्तियार कर ली.। 

    इस मशीन की चर्चा सुनकर नेशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन के लोग भी काम्बोज के गांव पहुंचे और उन्हें सम्मानित करने के लिए दिल्ली बुलाया, जहां राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया.


(हरियाणा के एक किसान ने अपनी कहानी से सैकड़ों लोगों को एक बार फिर सपने देखने को मजबूर किया है )

नोट---: BBC हिंदी से साभार 

गुरुवार, 8 मई 2014

हममे (भारत) में कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

सदियों से भारत और भारत के बाहर के लोग भारत और उसकी अमूल्य धरोहर यानी इसकी संस्कृति के बारे में जानने की कोशिश करते रहे हैं। इसी क्रम में कुछ जान पायें और कुछ बिना जाने ही स्वर्ग सिधार गये। जिन्होंने जाना, उन्होंने जीने की कला सीख ली और खुद को धन्य करा दिया और जिन्होंने नहीं जाना, वे आज भी आवागमन में लगे हैं। क्या है भारत, क्यों ये आज भी जीवित है जबकि इसी दरम्यान कई देश जीवित हुए और मृत भी हो गये, पर भारत आज भी साकार खड़ा है। इसकी सीमाएं कालांतराल में फैली, सिकुड़ती गयी, पर इसके अस्तित्व पर कभी संकट नहीं आया और न आ पायेगा । शायद इसीलिए सुप्रसिद्ध शायर इकबाल ने आखिर लिख ही डाला कि 

यूनान मिस्र रोमां, सब मिट गये जहां से,
अब तक मगर है बाकी, नामो निशां हमारा,
कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा हैं, दुश्मन दौरे जहां हमारा.

 
कमाल है, विश्व में कौन ऐसा देश है, जिस पर भारत जितने हमले हुए, और फिर इन हमलों से पार पाकर, वो देश फिर शान से खड़ा हो गया हो। इसका मतलब ही है कि भारत, अन्य देशों से कहीं भिन्न है, ये भोगभूमि नहीं, ये त्यागभूमि है। इसका कण-कण धर्म और देवत्व की परिभाषा कहता हैं, जरुरत हैं इसे समझने की। पर आज इसे समझने की फुरसत किसे है, गर नहीं हैं, तो समय का इंतजार करिये, प्रकृति खुद ऐसी लीलाएं करेगी कि आप को समझना आवश्यक पड़ जायेगा।
विष्णु पुराण कहता है

.
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्षम् तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।

 
अर्थात् हिमालय के दक्षिण और सागर के उत्तर में जो भूखण्ड है वो भारत के नाम से जाना जानेवाला हैं और उसकी संतान भारती कहलाती है।
भा का अर्थ होता है – प्रकाश, प्रभा, कांति, शोभा और रत का अर्थ है – उसमें रम जानेवाला। यानी प्रकाश की ओर सदैव गमन करनेवाले देश का नाम भारत है। कैसा प्रकाश तो उसका सीधा अर्थ है – ज्ञान का प्रकाश। सर्वप्रथम ज्ञानोदय यहीं हुआ, सभ्यता यहीं आयी और फिर इस ज्ञान के प्रकाश के आधार पर सारा विश्व आलोकित हुआ। सारा विश्व भी अब मान चुका है कि विश्व की पहली पुस्तक ऋग्वेद है और इससे ज्यादा वर्तमान में प्रमाणिक आधार दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
 

भारत और भारत का धर्म
 

बार-बार धर्म को लोग, अपने अपने चश्मे से देखते हैं, कोई कहता है – हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, सिक्ख धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और पता नहीं कितने सारे धर्म आज विश्व में पैदा हो चुके हैं, जो अनगिनत हैं, हम कह सकते हैं कि जितने लोग, उतने धर्म। पर धर्म क्या है, उसका शाश्वत स्वरुप क्या है, उसका आधार क्या है, शायद ही इन धर्मों की वकालत अथवा इस पर गर्व करनेवालों को मालूम हो, पर सही में धर्म की व्याख्या बहुत पहले स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में कर दी थी – ये कहकर कि गर पूरे विश्व से हिन्दू धर्म समाप्त हो जाये और उसके जगह पर इस्लाम धर्म का बोलबाला अथवा ईसाई या अन्य किसी भी प्रकार के धर्मों का बोलबाला हो जाये तो उसके धर्म ध्वज अथवा उसके उपदेशों में क्या लिखा होगा – ये लिखा होगा कि झूठ बोलो, अमर्यादित आचरण करों, सज्जनों को दुख पहुंचाओं, नहीं तो फिर क्या लिखा होगा – यहीं न, कि सच बोलो, अमर्यादित आचरण न करों, सज्जनों को आनन्द पहुंचाओ, यहीं तो धर्म है। भारत तो सदियों से यहीं कहता आया है। यहीं धर्म का मूल स्वरुप हैं, आधार है। ऐसे भी धर्म शब्द की उत्पति ही संस्कृत के धृ धातु से हुई है। धृ का अर्थ है – धारण करना। क्या धारण करना तो सत्य धारयति धर्मः अर्थात् सत्य को धारण करना ही धर्म है। धर्म शाश्वत है यह प्रकृति के अधीन है। प्रकृति स्वयं सत्य आचरण करा लेती है कोई इसके विपरीत चल ही नहीं सकता। गर चलेगा तो प्रकृति उसे दंड देगी, ये पूर्णतः सत्य है। ठीक उसी प्रकार कि गर्मी के दिनों में कोई कंबल नहीं ओढ़ सकता, कंबल तभी ओढ़ेगा जब जाड़े का मौसम आयेगा। ये धर्म का सार है। किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा चलाया गया पंथ या मत – कदापि धर्म का स्वरुप नहीं ले सकता। क्योंकि धर्म उक्त व्यक्ति के पूर्व में नहीं रहने के बावजूद भी था और उक्त व्यक्ति के नहीं रहने पर भी रहेगा। वह मृत नहीं हो सकता। किसी व्यक्ति के पंथ अथवा मत को माननेवाले पंथी अथवा मतावलंबी हो सकते है। धर्मावलंबी नहीं, धर्मावलंबी तभी होंगे जब वो प्रकृति के अनुरुप चलेंगे, भारत और भारत की वैदिक परंपराएं अथवा उपनिषद् यहीं कहती है, गर आप इसे नकारेंगे तो भला, वेदों अथवा उपनिषदों को क्या होनेवाला है, ठीक उसी प्रकार गर कोई आकाश पर थूकने का प्रयास करें तो क्या होगा, उत्तर उस व्यक्ति को खुद ही पता हैं, इस पर विवेचना की आवश्यकता नहीं।
 

भारत भोगभूमि नहीं, त्यागभूमि है
 
ज्यादातर लोग आज पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति से अनुप्राणित हो रहे है, उन्हें लगता हैं कि उनका जीवन पश्चिम की तरह सुखों का उपभोग करने के लिए हुआ हैं, इसलिए जमकर प्रकृति का दोहन करों, आनन्द पाओं और दुनिया से विदा हो जाओ, पर भारत के इतिहास को देखें तो यहां वहीं व्यक्ति जीवित रहा, जिसने त्याग को अपनाया, बाकी सभी मृतात्माओं की श्रेणी में आ गये। ये क्रम सदियों से चलता आ रहा है और चलता रहेगा, कोई इसे काटना भी चाहे तो नहीं काट पायेगा। कितने प्रमाण दूं।
जरा गोस्वामीतुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस अथवा वाल्मीकि रामायण का पृष्ठ उल्टे. प्रसंग अयोध्याकांड का है। राजा दशरथ अति प्रसन्न है। वे अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते है। सारी तैयारियां हो चुकी हैं, पर ऐन मौके पर कैकेयी, महाराज दशरथ से दो वर मांगती हैं, जिसमें राम को वनवास और भरत को राज्याभिषेक की मांग शामिल है। दशरथ किंकर्तव्यविमूढ़ है। क्या करें क्या न करें। पर श्रीराम मर्यादा का पालन करते हुए पुरुषार्थ के प्रथम सोपान त्याग को अपनाते हैं, धर्म की रक्षा करते हुए, पिता और रघुकुल की रीति प्रभावित न हो, वे वनगमन को स्वीकार करते हुए, जंगल की ओर निकल पड़ते है। राम चाहते तो आजकल की पीढ़ियों के अनुसार वे अपने पिता दशरथ से कह सकते थे कि पिताजी आपने माता कैकेयी को वर दिया था, मैंने नहीं, रघुकुल के नियमानुसार अयोध्या का राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है, ऐसे में, मैं ही अयोध्या का असली उत्तराधिकारी हूं और मैं ही राजा बनुंगा। अब आप बताईये, जब श्रीराम इस प्रकार की मांग दशरथ के पास रखते तो वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते। उत्तर होगा – नहीं। तो ये है धर्म और ये है भारत। श्रीराम ने पिता के वचन को साकार करने के लिए, सारे सुखों का त्याग कर दिया, यहीं नहीं इसके बाद सीता और लक्ष्मण ने श्रीराम के लिए, महलों के सुख का परित्याग कर दिया। और अब आगे, श्रीराम के भाई भरत को पता चलता है कि उनकी माता कैकेयी, उनके लिए राज्याभिषेक और श्रीराम के लिए वनगमन की मांग कर दी है, तो वे अपनी माता कैकेयी तक का परित्याग करते हुए, अपने ज्येष्ठ भ्राता श्रीराम को वन से लौटाने के लिए, जंगल की ओर चल पड़ते है, यहीं नहीं 14 वर्षों तक अयोध्या में रहते हुए, भरत ने सारे सुखों का त्याग कर दिया और वनवासियों की तरह रहे, ये है त्याग की परिभाषा यानी भारत की परिभाषा का सुंदर उदाहरण।
एक और प्रसंग पर ध्यान दें.


प्रसंग श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकांड का है
बालि श्रीराम के बाण से घायल है। घायल बालि ने कहा –


धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि व्याध की नाई।।
मैं वैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।।

श्रीराम ने कहा


अनुज बधु भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।।
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकई जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई।।

 
यहां भी धर्म की व्याख्या हो गयी, गर आप चौपाईयों पर ध्यान दें तो भारत और भारत के धर्म की परिभाषा स्वतः प्राप्त हो जाती है।
ये तो भारत के महाकाव्यों में से एक की बात कही, हो सकता है कि कई मित्र इन उदाहरणों को धार्मिक कथा कहकर, इसे प्रमाण मानने से इनकार कर दें। उनके लिए भी भारत के कई उदाहरण जो समसामयिक है। मेरे पास मौजूद है।
जरा ध्यान दे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का काल खंड महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत आते है, भारत आते ही स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई जारी करने की घोषणा करते है। तभी उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले से होती है, गोपाल कृष्ण गोखले, उन्हें कहते है कि मिस्टर गांधी ( उस वक्त तक गांधी को महात्मा का खिताब, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नहीं दिया था) जिस भारत की परिकल्पना वे अभी कर रहे है, वैसा भारत अभी नहीं हैं, स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को ठीक ढंग से चलाने के लिए पहले, उन्हें यानी महात्मा गांधी को, भारत दर्शन का कार्यक्रम बनाना चाहिए, उसके बाद गांधी जी ने भारत दर्शन का कार्यकम बनाया। उसी दौरान, उन्होंने जो भारत की तस्वीर देखी, उनका हृदय विदीर्ण हो उठा। भारत और भारतीयों की दयनीय दशा देख उन्होंने सारे सुखों का त्याग करने का संकल्प लिया और उसके बाद जो उन्होंने सामान्य जन की वेष भूषा अर्थात् लंगोटी पहनी तो उसे आजीवन धारण किये रहे। फिर उन्होंने सामाजिक सुधार आंदोलन के साथ साथ देश की स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी, और उन्होंने खुद अपने आंखों से भारत की स्वतंत्रता को देखा। इसके बदले में, उन्होंने अपने लिए कुछ भी देश से नहीं मांगा, सिर्फ और सिर्फ देश को दिया। त्याग की ऐसी मिसाल किस देश में मिलती है। इसी त्याग के कारण तो गांधी अपनी मृत्यु के साठ साल बीत जाने के बाद भी, जीवित है। यहीं नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने इनके जन्म दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर दिया।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी को लीजिए, इन्होंने इंदिरा गांधी के गर्व को चूर चूर कर दिया। संपूर्ण क्रांति की बात की। 1974 के छात्र आंदोलन और उसके बाद उपजे जनता के क्रोधाग्नि का सही नेतृत्व कर, उन्होंने 1977 में जनता पार्टी की सरकार बना दी, चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने सत्ता से दूरी बनाये रखी, और कभी सत्ता की कामना ही नहीं की। मर गये, पर सामान्य जन की तरह जीवन जिया, और इसी जीवन के द्वारा, उन्होंने भारत की अमूल्य संस्कृति को बता दिया की, जीना इसी का नाम है।


भारतीय उपनिषद् तो स्पष्ट कहता है कि


नत्वामहं कामये राज्यं, न स्वर्गं न पुर्नभवं।
कामये दुखतप्तानां, प्राणिणां आर्तनाशनम्।।

 
गर कोई सच्चा भारतीय है, तो वो न तो राज्य की कामना करेगा, न स्वर्ग की कामना करेगा, वो तो बस यहीं चाहेगा की सारे सुखों का त्याग कर, दुखियों और पीड़ितों के शोक को शमन करने के लिए, इस धरा पर बार बार आता रहे । कौन सच्चा भारतीय अथवा पुरुषार्थ से भरा प्राणी रहा है, उसकी परीक्षा उसके पूरे जीवनकाल खंड के मूल्याकंण से हो जाती हैं कि उस व्यक्ति में कितना पुरुषार्थ रहा, जैसे चाणक्य ने कहा.
 

यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते।
निर्घषणतापछेदनेताडनैः।।
तथा चतुर्भिः पुरुषं परीक्ष्यते।
त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।

 
जैसे सोने को चार प्रकार से परखा जाता है, घिसकर, तापकर, छेदकर और पीटकर। ठीक उसी प्रकार किसी पुरुष की पुरुषार्थ की परीक्षा, उसके अंदर त्याग, मर्यादा, गुण और कर्म की परीक्षा लेकर की जाती हैं। जो इसमें खड़ा उतरा वो सच्चा भारतीय और भारत माता का लाल, नहीं तो बस उसी प्रकार आये गये, जैसे इस श्लोक का भावार्थ


येषां न विद्या, न तपो, न दानं, न ज्ञान शीलं, न गुणो न धर्मः
ते मृत्युलोके भूविभारभूता, मनुष्यरुपेणमृगाश्चरन्ति।।

 
जो आज विज्ञान पर्यावरण की संकट के बारे में आगाह कर रहा है, उस संकट को लाया किसने खुद विज्ञान ने, और ऐसा होगा, इसके बारे में आगाह तो हमारे मणीषियों ने आज से हजारों वर्ष पहले कह दिया था कि एक दिन ऐसा आयेगा कि विज्ञान के नाम पर ही लोग, अपने जीवन के कालखंड को सदा के लिए बुझा देंगे। कमाल है, आज के जैसी टेक्नॉलॉजी तो, उनके पास थी ही नहीं, फिर भी वे कैसे जान गये। वो इसलिए जान गये, क्योंकि उन्होंने परमज्ञान की प्राप्ति के पीछे ही समय गवायां, व्यर्थ के पचड़े में नहीं पड़े, प्रकृति ने जैसा संदेश दिया, उस अनुरुप आचरण करते गये, खुद को बनाया, भारत को बनाया, भारत की संस्कृति को अनुप्राणित किया, अपने इस आचरण को और बेहतर और आनेवाले पीढ़ियों को संदेश देने के लिए उपनिषद और अनेक ग्रंथ उपलब्ध करा दिये, और इसे धर्म का स्वरुप दिया, कि शायद लोग समझेंगे और गर आप आज नहीं समझ रहे, तो उनमें उनका क्या दोष। फिर भी मैं मानता हूं कि आनेवाला समय भारत का हैं, निराशावादी होना, अज्ञानता का परिचायक होता है, जो ज्ञानवान हैं वे आशावादी होते हैं, परिवर्तन चक्र चलता रहता है। भारत का ध्येय वाक्य है – सत्यमेव जयते। एक दिन सत्य की जीत होगी, धर्म का वर्चस्व बढ़ेगा, प्रकृति सभी को आगोश में लेगी, भारत फिर खिल उठेगा, त्याग की भूमि फिर इठलायेगी, चिंता की कोई आवश्यकता नहीं।


अंत में, कबीर की पंक्ति मुझे याद आ रही है, जो उन्होंने बहुत पहले कहा था

मन लागा, मेरा यार फकीरी में, जो सुख पाउं, राम भजन में
वो सुख नाही, अमीरी में, भला – बुरा, सब का सुन लीजै,
कर गुजरान, गरीबी में, मन लागा मेरा यार फकीरी में,
आखिर ये तन, खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरुरी में,
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले, सबूरी में,
मन लागा मेरा यार, फकीरी में