मंगलवार, 28 जनवरी 2014

राहुल गांधी और टाइम्स नॉउ के अरनब गोस्वामी से टीवी इंटरव्यू

आजादी के बाद देश में सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेसी सरकारों की 'ऐतिहासिक भूलों' से लेकर मौजूदा 'पॉलिटिकल सिनेरिओ' पर राहुल ने टाइम्स नॉउ के एडिटर इन चीफ अरनब गोस्वामी से अपने पहले टीवी इंटरव्यू में खुलकर बात की । पेश हैं, इस खास इंटरव्यू के चुनिंदा अंश:-

अरनब: राहुल, आपका बहुत धन्यवाद। सांसद के तौर पर आपको 10 साल हो गए हैं, आपने पहला चुनाव 2004 में लड़ा था और यह आपका पहला इंटरव्यू है।

राहुल: यह मेरा पहला इंटरव्यू नहीं है, हां इस तरह अनौपचारिक तौर पर पहली बार इंटरव्यू दे रहा हूं।

अरनब: इतनी देर क्यों लग गई।

राहुल : मैंने इससे पहले भी थोड़ा मीडिया इंटरेक्शन किया है, प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं और बातचीत भी की है। लेकिन मेरा जोर खासतौर पर पार्टी के अंदरूनी काम पर रहा है और इसी काम में मेरी ज्यादा एनर्जी लगी।

अरनब: या फिर आप सीधे किसी के साथ बातचीत करने से हिचकते रहे हैं।

राहुल: बिल्कुल नहीं। मैंने कई प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं, ऐसी कोई बात नहीं है।

अरनब: या फिर ऐसा तो नहीं है कि आप कठिन मुद्दों पर बात करने से हिचक रहे थे?

राहुल: मुझे कठिन मुद्दे अच्छे लगते हैं, मैं उनका सामना करना चाहता हूं।

अरनब: राहुल गांधी, पहला पॉइंट तो यह है कि आप प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के सवाल को टालते रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि राहुल कठिन मुकाबले से डरते हैं?

राहुल: आप अगर कुछ दिन पहले की एआईसीसीसी में मेरी स्पीच को सुनें, तो साफ मुद्दा है कि इस देश में प्रधानमंत्री किस तरह चुना जाता है। यह चयन सांसदों के जरिए होता है। हमारे सिस्टम में सांसद चुने जाते हैं और वे प्रधानमंत्री चुनते हैं। एआईसीसी की स्पीच में मैंने साफ कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी मुझे किसी भी जिम्मेदारी के लिए चुनती है तो मैं तैयार हूं। यह इस प्रक्रिया का सम्मान है। चुनाव से पहले ही पीएम उम्मीदवार का ऐलान का मतलब है कि आप सांसदों से पूछे बिना ही अपने प्रधानमंत्री को चुन रहे हैं, और हमारा संविधान ऐसा नहीं कहता।

अरनब: लेकिन आपने पीएम उम्मीदवार का ऐलान 2009 में किया था।

राहुल: हमारे पास सरकार चला रहे पीएम थे और उन्हें बदलने का सवाल ही नहीं था।

अरनब: क्या आप नरेंद्र मोदी का सीधा आमना सामना करने से बच रहे हैं। क्या यह डर है कि कांग्रेस के लिए यह चुनाव बेहतर नहीं लग रहा है और राहुल गांधी को हार का डर है? साथ ही यह सोच भी कि राहुल गांधी चुनौती के हिसाब से तैयार नहीं हो पाए हैं और हार का डर है। इसलिए वह नरेंद्र मोदी के साथ सीधे टकराव से बच रहे हैं? आपको इसका जवाब देना चाहिए।

राहुल: इस सवाल को समझने के लिए आपको यह भी समझना होगा कि राहुल गांधी कौन है और राहुल गांधी के हालात क्या रहे हैं और अगर आप इस बात को समझ पाते हैं तो आपको जवाब मिल जाएगा कि राहुल गांधी को किस बात से डर लगता है और किस बात से नहीं लगता। असली सवाल यह है कि मैं यहां क्यों बैठा हूं? आप एक पत्रकार हो, जब आप छोटे रहे होगे तो आपने सोचा होगा कि मैं कुछ करना चाहता हूं, किसी एक पॉइंट पर आपने जर्नलिस्ट बनने का फैसला किया होगा, आपने ऐसा क्यों किया?

अरनब: इसलिए, क्योंकि मुझे पत्रकार होना अच्छा लगता है। यह मेरे लिए एक प्रफेशनल चैलेंज है। मेरा सवाल है कि आप नरेंद्र मोदी से सीधा आमना-सामना करने से क्यों बच रहे हैं?

राहुल: मैं इसी सवाल का जवाब देने जा रहा हूं, लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि जब आप छोटे थे और पत्रकार बनने का फैसला किया तो क्या वजह थी?

अरनब: जब मैंने पत्रकार बनने का फैसला किया तो मैं आधा पत्रकार नहीं बन सकता था। जब एक बार आपने राजनीति में आने का फैसला कर लिया और पार्टी को आप नेतृत्व भी दे रहे हैं तो आप यह आधे मन से नहीं कर सकते हैं। अब मैं आपसे वही सवाल वापस पूछता हूं, नरेंद्र मोदी तो आपको रोज चैलेंज कर रहे हैं?

राहुल: आप मेरे सवाल का सीधा जवाब नहीं दे रहे हैं। लेकिन मैं आपको जवाब देता हूं, जिससे आपको मेरे सोचने के बारे में कुछ झलक मिल पाएगी। जैसे अर्जुन के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सिर्फ अपना निशाना दिखाई देता था। आपने मुझसे नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा, आप मुझसे कुछ और भी पूछ लो। लेकिन मुझे जो बस एक चीज दिखाई देती है वह यह कि इस देश का सिस्टम बदलना चाहिए। मुझे कुछ और नहीं दिखाई देता, मैं और कुछ नहीं देख सकता। मैं बाकी चीजों के लिए अंधा हूं, क्योंकि मैं अपनों को सिस्टम से तबाह होते हुए देखा है, क्योंकि सिस्टम हमारे लोगों के लिए भेदभाव करता है। मैं आपसे पूछता हूं, आप असम से हैं और मुझे यकीन है कि आप भी अपने कामकाज में सिस्टम का यह भेदभाव महसूस करते होंगे। सिस्टम रोज रोज लोगों को दुख देता है और मैंने इसे महसूस किया है। यह दर्द मैंने अपने पिता के साथ महसूस किया, उन्हें रोज इससे टकराते हुए देखा। इसलिए यह सवाल कि क्या मुझे चुनाव हारने से डर लगता है या मैं नरेंद्र मोदी से डरता हूं, कोई पॉइंट ही नहीं है। मैं यहां एक चीज के लिए हूं, हमारे देश में बहुत ज्यादा ऊर्जा है, किसी भी देश से ज्यादा, हमारे पास अरबों से युवा हैं और यह ऊर्जा फंसी है।

अरनब: मैं आपका ध्यान फिर से अपने सवाल की तरफ लाता हूं। जो आप कह रहे हैं वह मैं समझता हूं। लेकिन सीधे तौर पर लेते हैं, नरेंद्र मोदी आपको शहजादा कहते हैं, इस बारे में आपकी क्या राय है? क्या आपको मोदी से हारने का डर है? राहुल इसका प्लीज सीधा जवाब दीजिए।

राहुल: देश के लाखों युवा यहां के सिस्टम में बदलाव लाना चाहते हैं, राहुल गांधी ये चाहता है कि देश की महिलाओं का सशक्तिकरण हो। हम सुपर पावर बनने की बात करते हैं...

अरनब: मेरा सवाल है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष का बीजेपी के पीएम कैंडिडेट पर क्या नजरिया है।

राहुल: मुझे लगता है कि हम बीजेपी को अगले चुनाव में हरा देंगे।

अरनब: आपके प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाते हैं कि उनके दौर में अहमदाबाद की सड़कों पर मासूमों का नरसंहार हुआ। इस पर आपका क्या नजरिया है? क्या आप इससे सहमत हैं।

राहुल: प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं, वह एक तथ्य है। गुजरात में दंगे हुए और लोग मारे गए। लेकिन असली सवाल है...

अरनब: लेकिन मोदी कैसे जिम्मेदार?

राहुल: जब वह सीएम थे, तब दंगे हुए।

अरनब: लेकिन मोदी को क्लीन चिट मिल चुकी है। क्या ऐसे में कांग्रेस उन पर हमले जारी रख सकती है?

राहुल: कांग्रेस और बीजेपी अलग सोच पर काम करती है। हमारा बीजेपी पर हमला इस पर आधारित है कि देश को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। इसमें गांवों का, महिलाओं का युवाओं का सशक्तिकरण जरूरी है।

अरनब: लेकिन नरेंद्र मोदी दंगों के लिए कैसे जिम्मेदार हैं, जब उन्हें दंगों के लिए क्लीनचिट मिल चुकी है?

राहुल: हमारी पार्टी विचारधारा के आधार पर बीजेपी पर हमले कर रही है। हमारी पार्टी का मानना है कि महिलाएं सशक्त हों, लोकतंत्र हर घर तक पहुंचे। बीजेपी की सोच है कि ताकत केंद्रित रहे और कुछ लोग देश को चलाएं।

अरनब: लेकिन नरेंद्र मोदी 2002 के दंगों के लिए कैसे जिम्मेदार हैं, जब उन्हें कोर्ट और एसआईटी से क्लीनचिट मिल चुकी है। इसलिए राहुल जी आप नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों पर निजी तौर पर कैसे घसीट सकते हैं? आपको नहीं लगता कि कांग्रेस की यह रणनीति मूलभूत तौर पर गलत है?

राहुल: हमारी पार्टी की रणनीति साफ है। हमने जो कुछ पिछले पांच-दस सालों में किया है और जैसे लोगों को अधिकार दिए हैं, उसको आप आजादी के आंदोलन से अब तक जोड़ सकते हैं। हमने किसानों को हरित क्रांति दी। लोगों को टेलिकॉम क्रांति दी। सूचना का अधिकार दिया। जो चीजें बंद होती थीं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता था। उनके बारे में अब लोग जान सकते हैं।

अरनब: लेकिन आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया? गुजरात दंगों पर आपकी पार्टी मोदी को घेरती रही है। और वह कहते हैं कि मुझे कोर्ट से क्लीन चिट मिल चुकी है। मैं आपसे यह पूछ रहा हूं कि कोर्ट से क्लीन चिट के बाद क्या दंगों पर मोदी को घेरने की रणनीति गलत है?

राहुल: प्रधानमंत्री ने दंगों पर अपनी स्थिति रखी है। गुजरात में दंगे हुए। लोग मरे। मोदी उस समय राज्य के मुखिया थे। अब असली विचारधारा की लड़ाई यह है और जिसे हम जीतने जा रहे हैं, वह लोगों के सशक्तिकरण की बात है। गुजरात दंगों पर आपका नजरिया अपनी जगह पर है और यह भी जरूरी है कि जो इनके कसूरवार हैं, उन्हें सजा मिले। लेकिन असली सवाल देश की महिलाओं को ज्यादा अधिकार देने का है। हम अभी सुपरपावर बनने की बात करते हैं। लेकिन जब तक औरतों को हक नहीं मिलेगा, हम आधी सुपर पावर ही रहेंगे। मैं चाहता हूं कि देश के युवा पार्टी में लोकतंत्र को आगे बढ़ाएं। मैं चाहता हूं कि हम सब मिलकर सबको साथ लेते हुए भारत निर्माण करें। मैं चाहता हूं कि हम भारत को दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बनाएं। कम से कम चीन की तरह।

अरनब: आप कहते हैं कि गुजरात दंगों के समय मोदी सत्ता में थे, यूपी में दंगों के दौरान अखिलेश रहे। और 1984 के दंगे के दौरान कांग्रेस सत्ता में थी। आपने अपने भाषण में दादी की मौत और उससे उपजे गुस्से का जिक्र किया था। और आपने कहा था कि गुस्से को काबू में रखकर उसे ताकत बनाना चाहिए। उसके बाद नरेंद्र मोदी ने आपकी खूब आलोचना की थी और कहा था कि वह अपनी दादी की मौत पर तो आंसू बहा रहे हैं, लेकिन क्या 1984 के दंगों में मारे गए लोगों के लिए आंसू बहाए? वह आपको बार-बार शहजादा कहते हैं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या आपकी पार्टी के लोग 1984 के दंगों में शामिल थे? क्या आप इन दंगों के लिए माफी मांगेंगे जैसे कि मोदी से आप गुजरात दंगों के लिए माफी चाहते हैं?

राहुल: 1977 में हार के बाद हमें कई लोग छोड़कर चले गए। लेकिन सिख समुदाय हमारी दादी के साथ जुड़ा रहा। सिख इस देश के सबसे उद्यमी लोगों में से हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं। हमारे पीएम भी सिख हैं। मेरा अपने विरोधियों जैसा नजरिया नहीं है। जिन लोगों ने दादी की हत्या की वे दो लोग थे। मैं पीछे मुड़कर उस गुस्से को नहीं देखता हूं। वह मेरे लिए खत्म हो चुका है।

अरनब: तो फिर आप 84 के दंगों के लिए माफी क्यों नहीं मांगते? 2009 में तो जगदीश टाइटलर कांग्रेसी उम्मीदवार बनने जा रहे थे, जिनकी उम्मीदवारी को मीडिया में उठे विवाद के बाद वापस लेना पड़ा।

राहुल: 1984 के दंगों में मासूम लोग मारे गए थे और उनका मारा जाना बहुत भयानक था, जैसा नहीं होना चाहिए। 1984 और गुजरात दंगों में फर्क यह है कि गुजरात दंगों में सरकार शामिल थी।

अरनब: आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? उन्हें क्लीन चिट मिली है।

राहुल: 84 के दंगों के दौरान सरकार दंगे रोकने की कोशिश कर रही थी। मैं तब बच्चा था और मुझे याद है कि सरकार पूरी कोशिश कर रही थी। गुजरात में इसके उलट हुआ। सरकार दंगों को भड़का रही थी। इन दोनों में बहुत फर्क है। मासूम लोगों का मरना कतई सही नहीं है।

अरनब: आरटीआई करप्शन से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार है। जैसा कि आपने एआईसीसी की स्पीच में कहा था। आपकी पार्टी के 2008 से 2012 के फंड का 90 फीसदी कैश से आया है। जिसमें से 89.11 फीसदी हिस्सा बेनामी स्रोतो से है। आप अपने घर से शुरुआत क्यों नहीं करते? क्यों कांग्रेस पार्टी के फंड को आरटीआई के तहत नहीं लाते?

राहुल: मुझे लगता है कि राजनीतिक दल अगर ऐसा मानते हैं तो उन्हें आरटीआई के तहत आना चाहिए। मेरा नजरिया है कि ज्यादा खुलापन हो तो अच्छा है। कानून संसद से बनता है। और राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए ऐसा ही करना होगा। मेरा यह निजी नजरिया है। ...असली सवाल हमारे सिस्टम के अलग-अलग स्तंभों का है। अगर आप किसी एक को आरटीआई में लाते हैं और बाकियों को मसलन जुडिशरी और प्रेस इससे बाहर रहते हैं तो असंतुलन हो सकता है। मैं आरटीआई के दायरे में ज्यादा से ज्यादा चीजों को लाने के पक्ष में हूं और ऐसा करने से असंतुलन नहीं बनेगा।

अरनब: आपकी महाराष्ट्र सरकार ने आदर्श पर बने जुडिशल कमिशन की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। यह सब लोगों के सशक्तिकरण का हिस्सा तो नहीं था। अफसरों को दोषी ठहरा दिया गया, लेकिन नेता बचते दिखे। क्या आप अशोक चव्हाण को बचा रहे हैं?

राहुल: कांग्रेस पार्टी में जब भी भ्रष्टाचार का मामला आता है तो हम एक्शन लेते हैं। हम लोग ही आरटीआई लाए थे, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है। प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मैंने इस मामले में अपनी स्थिति साफ कर दी थी। कांग्रेस पार्टी में जो भी करप्शन का हिस्सा है, सजा दी जाएगी। मैं कहता हूं कि संसद में जो 6 विधेयक फंसे हैं, उन्हें पास किया जाए।

अरनब: लेकिन आपके बोल आपके काम से मेल नहीं खाते राहुल? अशोक चव्हाण की तरह सारे नेता बच जाते हैं। इस मामले में कई एनसीपी के मंत्री भी हैं। अपने फायदे के लिए इन्होंने करगिल के नाम तक का इस्तेमाल किया।

राहुल: मैंने अपनी स्थिति प्रेस के सामने साफ कर दी है। चाहे जो भी हो उस पर कार्रवाई जरूर होगी। हमने अपने मंत्रियों को भी सजा दी है।

अरनब : यह भी आरोप है कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं। आप आलोचना से प्रभावित होते हैं। सुब्रमण्यम स्वामी आपकी डिग्री पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं कि कैंब्रिज में आपकी एमफिल डिग्री की कोई थीसिस ही नहीं है। किसी ने 110 लाख डॉलर हार्वर्ड मेडिकल स्कूल को देकर आपका एडमशिन कराया। उन्होंने आपकी दोनों डिग्रियों पर सवाल उठाए हैं।

राहुल : क्या आप कैंब्रिज में थे?

अरनब : मैं ऑक्सफर्ड में था?

राहुल : लेकिन, आपने कैंब्रिज में भी कुछ वक्त बिताया।

अरनब : मैं कैंब्रिज में कुछ समय के लिए विजिटिंग फेलो था।

राहुल : क्रैंब्रिज में कहां?

अरनब : सिडनी ससेक्स कॉलेज...

राहुल : मैं कैंब्रिज में ट्रिनिटी में था। मैंने एक साल वहां गुजारा और मैंने वहीं एमफिल किया। आप मेरी डिग्री देखना चाहते हैं तो मैं दिखा सकता हूं।

अरनब : क्या आप सुब्रमण्यम स्वामी को डिग्री दिखाना चाहेंगे? क्या आप उन्हें चैलेंज करेंगे?

राहुल : उन्होंने शायद मेरी डिग्री देखी है। मैंने हलफनामे दाखिल किए हैं कि मेरे पास ये डिग्रियां हैं। अगर मैं झूठ बोल रहा हूं तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। इससे ज्यादा मैं क्या करूं? मैं क्यों उन्हें चैलेंज करूं। वह मेरे परिवार पर 40 साल से हमले कर रहे हैं। मैं क्यों उन्हें चुनौती दूं?

अरनब : क्या आप नरेंद्र मोदी के साथ बहस के लिए तैयार होंगे। अगर वह भी तैयार होते हैं? मैं आपसे सीधा सवाल पूछ रहा हूं। क्यों बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों के बीच सीधी बहस नहीं होनी चाहिए।

राहुल : मैं कांग्रेस पार्टी का ढांचा बनाकर यह बहस ही कर रहा हूं। बहस के लिए आप का स्वागत है। जहां तक मेरा सवाल है तो बहस शुरू हो चुकी है।

अरनब : मैं यह पूछ रहा हूं कि क्या आप तैयार हैं? ताकि मैं मोदी से पूछ सकूं कि वह भी तैयार हैं।

राहुल : आप बहस शुरू करो, लेकिन असली मुद्दा पार्टी मशीनरी है। और हम ही यह कर रहे हैं। हम 15 सीटों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से उम्मीदवार चुनेंगे। राष्ट्रीय बहस शुरू हो चुकी है। एक तरफ कांग्रेस पार्टी है, जो खुलेपन में विश्वास रखती है और दूसरी तरफ विपक्ष है जो सत्ता को केंद्रित रखता है। यह बहस शुरू हो चुकी है और इसी के बारे में सारा चुनाव है।

अरनब : मोदी कहते हैं कि आपको 60 साल दिए। हमें 60 महीने दो...

राहुल : मेरा जवाब है कि पिछले 10 साल में हमने देश को सबसे तेज आर्थिक तरक्की दी है। हमने किसी भी सरकार से ज्यादा खुला सिस्टम दिया है। हमने मनरेगा, आधार जैसी व्यवस्थाएं दी हैं। कांग्रेस की सरकार 60 साल से है, इसलिए हम इस रफ्तार से तरक्की कर रहे हैं।

अरनब : आम आदमी पार्टी पर आपकी क्या राय है? आपका नजरिया आम आदमी पार्टी की ओर क्यों बढ़ रहा था? अचानक ऐसा क्यों लगता है कि अब आप उनकी आलोचना कर रहे हैं? जब आपने ऐसा कहा था कि कुछ लोग गंजों को भी कंघी बेच देते हैं, तो क्या आप आम आदमी पार्टी की ओर इशारा कर रहे थे?

राहुल : कांग्रेस और मैंने युवाओं के बीच जो काम किया है। उससे पार्टी में नई पीढ़ी आएगी। उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया मजबूत होगी। आम आदमी पार्टी के बारे में मैंने यह कहा कि हम उससे कुछ सीख सकते हैं, किस तरह लोगों तक पहुंचा जाए, यह उनसे समझा जा सकता है। लेकिन कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जो उनसे नहीं लेनी चाहिए। हमारे पास कांग्रेस की मजबूत बातें हैं और हम उन पर तीन-चार साल से काम कर रहे हैं। हमारी पार्टी की गहरी जड़ें उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं और बदलाव के नाम पर हम उन्हें खत्म नहीं कर सकते।

अरनब : पिछले दिनों चिदंबरम ने कहा कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना जरूरी नहीं था? क्या आप उससे सहमत हैं, क्या आपको लगता है कि आपने गलत किया। कृपया सच्चा जवाब दीजिए।

राहुल : जहां तक मेरा नजरिया है, आप ने दिल्ली में चुनाव जीता और मुझे लगता है कि हमें उनकी मदद करनी चाहिए। हमारी पार्टी को लगा कि उनको अपने को साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए। अब हम देख सकते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और उन्होंने अपने को किस हद तक साबित किया है।

अरनब : अरविंद केजरीवाल के बारे में आपकी क्या राय है?

राहुल : वह विपक्ष के कई नेताओं की तरह हैं। हमें बतौर कांग्रेस पार्टी तीन चीजें करनी हैं। पहला, हमें खुद को बदलना होगा, ज्यादा युवाओं को लाना होगा और उन्हें जगह देनी होगी। इसके अलावा हमें मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देना होगा। हमने नॉर्थ, साउथ, ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर बनाए हैं और भारत को मैन्युफैक्चरिंग सुपर हाउस बनाना होगा।

अरनब : क्या आप आम आदमी पार्टी को एंटी कांग्रेस वोट बैंक काटने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं?

राहुल : आपका मतलब है कि क्या हम आप को लेकर आए हैं। मुझे लगता है कि आप कांग्रेस की ताकत को कम करके आंक रहे हैं। यह पार्टी अगर ऐसा चाहे तो भी असर नहीं करेगी। कांग्रेस बहुत पावरफुल सिस्टम है और हमें चुनावों में नए चेहरों को लाने की जरूरत है, जो हम करने जा रहे हैं और हम चुनाव जीतेंगे।

अरनब: क्या आप चुनाव जीतेंगे? अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसकी पूरी जिम्मेदारी लेंगे?

राहुल: हां हम चुनाव जीतेंगे। अगर नहीं जीते तो पार्टी उपाध्यक्ष होने के नाते मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी लूंगा।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और धारा 370(आरएसएस की मुस्लिम साखा)

आठ दशकों से भी अधिक समय से राष्ट्रीय हित में कार्यरत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने विरुद्ध किए जाने वाले तमाम दुष्प्रचार के बाद भी राष्ट्र-निर्माण के अपने कार्य में लगा हुआ है | इसी का एक अनुपम उदाहरण सामने आया है आतंकवाद के साये में जी रहे मुस्लिम बहुल कश्मीर के सन्दर्भ में | ज्ञात हो कि संघ से १९५९ से (५२ वर्षों से) जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता इन्द्रेश कुमार ने कुछ वर्षों पहले घाटी के मुस्लिमों को राष्ट्र की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की थी | इन्द्रेश कुमार पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में सर्वाधिक अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए थे परन्तु १० वर्ष की आयु से ही संघ से जुड़े होने के कारण उनका राष्ट्र-निर्माण में ही स्वयं को समर्पित करने का मन था | उनके घोर साहस एवं सपर्पित कर्मयोग का परिणाम तब भी सामने आया था जब मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने लगभग १० लाख मुस्लिम लोगों के हस्ताक्षर  गो-हत्या के विरोध में करवा के दिखलाये | मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय एकीकरण के इतने बड़े प्रयास को मीडिया ने कभी दिखाने का प्रयास नहीं किया | यदि कभी दिखलाया भी तो इस रूप में जैसे संघ भी तथाकथित राजनैतिक दलों की तरह तुष्टिकरण के खेल खेल रहा है | यहाँ तक कि राष्ट्र को जोड़ने के इस यज्ञ की सफलता से घबराए सत्ताधारी राजनैतिक गठबंधन की सरकार ने मक्का मस्जिद धमाकों के सिलसिले में सीबीआई को भी इन्द्रेश कुमार के पीछे लगा दिया | परन्तु संघ के प्रत्यक्ष योगदान से एवं इन्द्रेश कुमार के सतत प्रयासों से बने इस संगठन का चमत्कार अब छुपाये नहीं छुप रहा |
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच विगत ३ माह से “हम हिन्दुस्तानी, कश्मीर हिंदुस्तान का”, नाम से एक सशक्त अभियान चलाये हुए था | इस अभियान के अंतर्गत राष्ट्रवादी मुस्लिमों से मस्जिदों में प्रार्थनाएं की, व्याख्यान आयोजित किए एवं देश भर में सभाएं की | अभियान का समापन इस रविवार को दिल्ली में हुआ जिसमें इतनी सर्दी के बाद भी देश के २३ राज्यों के १७५ जनपदों से आये १० हज़ार राष्ट्रवादी मुस्लिमों ने भाग लिया | समापन समारोह में कश्मीर को शेष भारत से अलग संविधान देने वाली धारा ३७० को स्थायी रूप से समाप्त करने, कश्मीरी युवाओं को रोजगार दिलवाने, एवं पाकिस्तान एवं चीन द्वारा हड़प लिए गए कश्मीर के भूभागों को वापस लेने की मांगें उन १० हज़ार मुस्लिमों द्वारा एक स्वर में उठायी गयी |
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In Eng : RSS' Magic - Kashmiri Muslims call for revoking article 370, taking
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चर्चा का प्रारंभ श्रीनगर के मुहम्मद फारूक ने किया | उन्होंने स्पष्ट कहा कि कश्मीर समस्या की जद धारा ३७० ही है और इसे यथाशीघ्र हटाया जाना चाहिए | उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ही नहीं, घाटी के आम मुस्लिम भी यही चाहते हैं | उन्होंने सीधे सीधे शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरु को कश्मीर समस्या के लिए उत्तरदायी ठहराया |
बारामूला से आये मुश्ताक अहमद पीर ने कहा कि अलगाववाद की राजनीति करने से या लाल चौक पर तिरंगा लहर देने से कश्मीर कि समस्याएं हल नहीं होंगी एवं उसके लिए राज्य की प्रगति में बाधक कारणों के उन्मूलन की आवश्यकता है | बशीर अहमद, जिन्होंने अपना मत “भारत माँ की जय” के नारे के साथ देना आरम्भ किया, उन्होंने कहा कि कश्मीर के विस्थापितों को ६ दशक से मत डालने तक का अधिकार नहीं है जो उन्हें मिलना चाहिए | इंजिनियर गुलाम अली जो बक्करवाल समाज से आते हैं, उन्होंने भी शेख अब्दुल्लाह और नेहरु को ही कश्मीर समस्या का दोषी माना | उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर के राजनैतिक दलों ने जम्मू के निवासियों के साथ अन्याय किया है | उन्होंने ये भी कहा कि धारा ३७० कुछ स्वार्थी नेताओं के हाथ का खिलौना रही है और इसने कभी जनता का भला नहीं किया | गुलाम अली ने भारतीय संसद को पाकिस्तान और चीन से अपना कश्मीर वापस लेने की उसकी वर्षों पुरानी प्रतिज्ञा को पूरा करने को भी कहा |
कश्मीर से आई हालिमा ने आम लोगों की आर्थिक दशा सुधारने वाले प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया | नजीर मीर, जिन्होंने आतंकवाद में अपने तीन भाई गँवा दिए, उन्होंने आजादी की मांग की भर्त्सना करते हुए कहा कि जब हम पहले ही आज़ाद है तो ऐसी मांग के पीछे क्या औचित्य रह जाता है? मुफ्ती मौलाना अब्दू सामी ने हसरत मोहानी, आंबेडकर एवं रफ़ी अहमद किदवई का नाम लेकर कहा कि ये लोग भी ३७० के विरोध में थे परन्तु नेहरु की जिद के कारण ३७० आई और कश्मीरियों का जीवन बर्बाद कर गयी | तब से अब तक सभी राजनैतिक दलों ने इसका दुरूपयोग भारत के विरोध में ही किया है | उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की प्रशंसा की और भरोसा दिलाया कि उनका संगठन इन्द्रेश कुमार के नेतृत्व में काम करता रहेगा |
जमात-ए-हिंद के अध्यक्ष ने इस अवसर पर कहा कि यह अभियान राष्ट्र हित में चलाया गया क्योंकि भारत के सीमावर्ती भागों में स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्थितियाँ विकट हैं | उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहला मुस्लिम संगठन है जिसने सीमा सुरक्षा का विषय उठाया है | बंगलूरू से आये अब्बास अली बोहरा ने कहा कि दक्षिण भारत के मुस्लिम कश्मीर के राष्ट्रवादी मुस्लिमों के साथ हैं |
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छत्तीसगढ़ हज समिति के सभापति डॉ. सलीम राज ने कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिमों को बदनाम करवाया है | भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष तनवीर अहमद ने कश्मीर समस्या का इतिहास लोगों को स्मरण करवाया | उन्होंने कहा कि जब महाराज हरि सिंह ने २६ अक्टूबर १९४७ को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए तो कश्मीर का भारत में विलय पूर्ण एवं अंतिम था परन्तु नेहरु की हठधर्मिता एवं एकतरफा युद्धविराम और मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के कारण ये समस्या अस्तित्व में आई | उन्होंने रफ़ी अहमद किदवई के कथन का स्मरण करवाया कि कांग्रेस ने कश्मीर की सभ्यता नष्ट कर देने का काम किया है |
दिल्ली के इमरान इस्माइल ने कहा कि वो इन्द्रेश कुमार ही थे जिन्होंने कश्मीरी विधवाओं की विनती पर ७२४ सिलाई मशीनें कश्मीर भिजवाई थी | भूकंप के समय भी उन्होंने ही पीड़ितों को सहायता उपलब्ध करवाई थी जबकि एक भी मुस्लिम नेता सहायता करने आगे नहीं आया था | इमरान ने कड़े शब्दों में इन्द्रेश कुमार को आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ने के कांग्रेसी हथकंडों की निंदा की और कहा कि ये लोग भारत के मुस्लिमों को संघ के विरूद्ध भड़काते हैं ताकि डरा दिखा कर वोट लिए जा सकें |
भाजपा के डॉ. डी के जैन ने कहा कि कश्मीर की स्वायत्तता की मांग निराधार है | कांग्रेस और दूसरे दल झूठ पे झूठ फैला कर देश को बांटने के षड़यंत्र कर रहे हैं और संदेह का माहौल देश में पैदा कर रहे हैं | इन्द्रेश कुमार जो कोहरे के कारण ट्रेन के देरी से चलने के कारण सभा में नहीं पहुच पाए, उन्होंने मोबाइल फोन से अपना संबोधन दिया | उन्होंने कहा कि सरकार निर्दोषों को आतंकवादी बनाने का कुत्सित खेल खेल रही है और भारत विरोधी तत्त्व एवं राजनैतिक दल कश्मीर के लोगों को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं | उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच शान्ति, सौहार्द एवं आपसी सद्भाव से भरपूर भारत के निर्माण का सात्विक प्रयास है और उन्हें विश्वास है कि यह अवश्य सफल होगा |
एक ओर तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए मुस्लिम समाज को वोट बैंक मान कर उन्हें आरक्षण की अफीम पिलाने में जुटे हैं ताकि समाज को धर्म के नाम पर बाँट सकें | तथाकथित पिछडों के अधिकार की बात करने वाले जातियों में समाज को पहले ही बाँट चुके हैं | वही दूसरी ओर हिंदू-मुस्लिम का भेद मिटा कर मुस्लिमों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास में एवं जातियों के भेद मिटा कर हिंदू समाज को एक करने में लगे संघ के संगठन जुटे हुए हैं | जो लोग संघ के स्वयंसेवकों से परिचित हैं, अथवा संघ की पचासों अनुसांघिक संस्थाओं में से किसी से जुड़ कर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं, उनके लिए संघ सम्मान का विषय है | कितनी ही बड़ी संख्या में परिवार होंगे जिनके बच्चे संघ के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर राष्ट्र निर्माण में जुटे हैं |
सच्चाई दिखलाना मीडिया का काम होता है, परन्तु जब मीडिया स्वयं कोयले की दलाली में (नीरा राडिया के टेपों में) मुँह काला कर चुका हो, तो राष्ट्रवादी मीडिया की कमी जनता को खलती है | समाज और देश को तोड़ने वाले लोग, वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग, तथाकथित बुद्धिजीवी व मीडिया के लोगों ने मिल कर दुष्प्रचार का जो एक गहरा जाल संघ के इर्द-गिर्द बुना है, भारत की जनता को इसके आर पार देखने की आवश्यकता है |

शनिवार, 25 जनवरी 2014

जब तक ''गण'' सोये हुए है तंत्र सफल नहीं होगा ।

कल पूरा देश गणतंत्र दिवस उल्लास के साथ मनाने जा रहा हैं । 26 जनवरी, 1950 को हमने अपने देश का संविधान लागू किया था । जनता के द्वारा, जनता के लिये, जनता के शासन की व्यवस्था इस संविधान में की गयी थीं । समस्त कार्यों के सुचारु रूप से संचालन के लिये कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ-साथ पारदर्शी प्रशासन के मूल उद्देश्य से प्रेस को चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गयी थी ।

संविधान में सभी स्तंभों के कार्यक्षेत्र का स्पष्ट विवरण दिया गया हैं। लेकिन कई बार ऐसे मौके भी आये जब इनमें यह होड़ मच गयी कि कौन सर्वोच्च हैं? ऐसे अवसर भी आये जब कभी विधायिका और न्यायपालिका आमने सामने दिखी तो कभी कार्यपालिका और विधायिका में टकराहट के स्वर सुनायी दिये तो कभी प्रेस पर स्वच्छंदता के आरोप लगे। ऐसे दौर में कुछ ऐसे अप्रिय वाकये भी हुये जो कि निदंनीय रहे।

‘गण’ को शिक्षित कर जागृत करने के अभियान को गति देने के प्रयास किये गये। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इतने अधिक प्रयोग किये गये कि यह लक्ष्य हमसे आज साठ साल भी दूर ही दिखायी दे रहा हैं। वर्तमान में सरकार शिक्षा की गारंटी देने के उसी प्रकार प्रयास कर रही है जैसा कि रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार की गारंटी दी गयी हैं। शिक्षा को प्रोत्साहन देकर जागृति लाने की महती आवश्यकता आज भी महसूस की जा रही हैं। ताकि ‘गण’ चुस्त हो सके।

‘तंत्र’ को नियंत्रित रखना अत्यंत आवयक हैं। ‘तंत्र’ यदि निरंकुश हो जाये तो ‘गण’ के अधिकारो को सुरक्षित रख पाना एक दुष्कर कार्य हो जाता हैं। एक समस्या यह भी हैं कि यदि देश में कोई ईमानदार हैं तो वो बाकी पूरे देश को बेइमान मानने लगता हैं। ऐसी घारणा हैं कि तंत्र को नियंत्रित रखने के लिये पारदर्शी प्रशासन होना अत्यंत आवश्यक हैं। इस दिशा में सरकार द्वारा लागू किया गया सूचना का अधिकार कानून कारगर साबित हो सकता हैं। लेकिन कानूनी बारिकियों और प्रशासनिक अमले की हठधर्मिता कई मामलों में आड़े आते दिखायी दे रही हैं। राजनेता भी तंत्र से राजनैतिक काम लेकर उन्हें नियंत्रित करने में असहाय दिख रहें हैं। जिससे तंत्र अनियंत्रित ही दिखायी दे रहा हैं।

‘गण’ यदि सुस्त हो और ‘तंत्र’ अनियंत्रित हो भला ‘गणतंत्र’ कैसे सफल हो पायेगा ?
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमारी यही कामना हैं कि ‘गण’ जागृत हो, ‘तंत्र’ नियंत्रित हो और राजनेता इस दुष्कर कार्य को कर सकें ताकि ‘गणतंत्र’ सफल हो सके।

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

जानिये कैसी बनी जातियाँ

आज के समाज में कुछ लोग पाये जाये है जो अपने नाम के आगे डाक्टर लिखते है । मैने अक्सर देखा है की ये आजकल के डाँक्टर लोग का सामाजिक संपर्क डाँक्टर लोगो से साथ ही होता है ये लोग सब मिलकर सेमिनार करते रहते है और उन सेमिनार में डाँक्टर ही होते है । आजकल ने डाँक्टर किसी डाक्टरनी से ही शादी करते है और इनके बच्चे भी बडे होके अक्सर डाँक्टर बनते है ।

अच्छा ये बाताओ, मैने जो उपर लिखा कुछ गलत लिखा ? नही ना ? अच्छा ये बताओ की सनी देयोल क्या इन डाक्टर के सर पर बंदूक रख कर बोल रहा है की भाई तुझे डाक्टर लडकी से ही शादी करनी है ? या अपने बच्चे को भी डाक्टर बनाना है? नही ना ?? ये सब आटोमेटिक होता है ! अपने आप , सही बोला ना 
। 

 अब गौर करे । हमारे यहाँ जो जातियाँ होती है वो भी तो कुछ ऐसी ही है , जैसे दर्जी के बच्चे दर्जी बनते है, दर्जी लोगो अपने नाम के पीछे दर्जी लिखते है और उनका सामाजिक संबंध दर्जीयों से होता है और वो किसी दूसरी दर्जी की लडकी से ही शादी करते है ताकि पोलका बनाने की कला, नही तो कम से कम काँच-बटन लगाने तो सीख कर ही आये ।
जब आज के डाँक्टर लोगो ने एक तरह की डाँक्टर जात बना कर कुछ गलत नही किया तो हमारे पूर्बजो ने "कर्म" आधारित जातियाँ बना ली तो कौन ना गुनाह किया । क्या आपको लगता है डाँक्टरों के इस अलगाव से समाज टूटा है ? क्या समाज बटाँ हुआ है ? नही ना, फिर आप कैसे बोल सकते है की भारत जाती धर्मो में बँटा था । सब जातियाँ समाज का हिस्सा ही और रहेंगी । हाँ ४०० साल से उँची नीची जात की कुधारणा आ गई लेकिन मुझे नही लगता की वाकई में हिंदू समाज जातियों में बँटा था ।
               आज हमने अपनी सुविधा के अनुसार राज्य बना दिये । फिर उनको भी जिले और तहसील लेवल पर बाँट दिया । लेकिन हम ये थोडे ने बोल सकते है की भारत तो हजारों जिलो में बँटा हुआ देश है । सुविधानुसार बँटा होने के बाद भी एक देश है , इसी प्रकार हम हिंदू "कर्म" आधारित जातियों में बँट कर भी एक थे । ना वो कल गलत था और ना आज गलत है । आपने देखने का तरीका कुत्सित वामपंथीयों द्वारा बदल दिया है । अगर फिर भी आपको लगता है की जातीयाँ बुरी थी तो आप डाँक्टर लोगो को, वकील लोगो को, रईस लोगो को, समझाओं ये सब लोग अपने अपने हैसियत और काम से अनुसार समूह बना ही तो रहे है | एक और बात, आज भी सरकार , नगर निगम, नगर पालिका के द्वारा कई लोगो को कचरा उठाने जैसे काम में लगा रही है । क्या आपको लगता है की सरकार उन लोगो का शोषण कर रही है ? अगर ये लोग भी अपने नाम के पीछे अचानक से कचरादार (जैसे सुनील कचरादार) लगाने लग जाये तो कुछ १०० साल बाद अपने बच्चे भी ये बोलेंगे की मोदी सरकार ने कचरादार जाति का खूब शोषण किया ।


लेख लिखने का मतलब साफ है की हम चाहे जो भी कर ले लेकिन अर्थव्यवस्था अपने हिसाब से नये नये "कर्मचारी समूह" बनाती है इनको जाती बोल दो या कुछ और , लेकिन ये सब चलता आ रहा है और नये नये रूपो में चलता रहेगा । इसलिये आप हिंदू धर्म को कम से कम ये कोसना बंद करों की समाज जातियों में बटाँ था और इससे बहुत नुकसान आया ।

बुधवार, 15 जनवरी 2014

मायावती जी 58 वां जन्मदिन पर विशेष



ये रिस्ता क्या कहलाता है ?
58 वां जन्मदिन मना रही यूपी की पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती के पास भले ही अब सत्‍ता न हो, लेकिन उनके ठाठ आज भी शाही हैं । बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और यूपी में चार बार मुख्‍यमंत्री रहीं मायावती की लाइफ स्‍टाइल देखकर कोई भी कह उठेगा कि वह देश के राष्‍ट्रपति की तरह ही जीती हैं । मायावती की इस शाही लाइफ स्‍टाइल के बारे में पहले भी कई खुलासे हो चुके हैं । 
 कुछ समय पहले ही यूपी की सत्‍ता से हटने के बाद राज्‍यसभा की सदस्‍य बनने वाली मायावती के लिए दिल्‍ली के पॉश इलाके लुटियन जोन में आवंटित तीन बंगलों को 'सुपरबंगला' बनाया गया है। दलितों के दिलों पर राज करने वाली बहन जी की शाही लाइफ यहीं खतम नहीं होती, सत्ता में न होने के बावजूद उनसे मिलने से पहले खास अप्‍वॉइंटमेंट ली जाती है। इनके खाने को भी दर्जन भर लोग चेक करते हैं। इन्होंने घर में ही एक मिनी सचिवालय बना रखा है। वहां सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक का पूरा शेड्यूल तय होता है।
कास गरीब दलितो को दो वक्त कि रोटी दिला सकती ?

वहीं, यदि इनकी संपत्ति की बात करें तो मायावती के पास दिल्ली के कनॉट प्लेस में दो व्यावसायिक अचल संपत्ति है, जिसकी कीमत लगभग 18 करोड़, 84 लाख रुपए है। यही नहीं, उनके नाम नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर एक बंगला है, जिसकी कीमत 61 करोड़, 86 लाख रुपए है। उनके प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 9 माल एवेन्यू के बंगले की कीमत 15 करोड़, 68 लाख रुपए है। उनके पास 1 किलो, 34 ग्राम सोना और 380 कैरेट हीरे के जवाहरात हैं। सोने और हीरे के आभूषणों की कीमत 96 लाख, 53 हजार रुपए है।मायावती ने अपनी सुरक्षा व्‍यवस्‍था को हमेशा ही प्राथमिकता दी है, लिहाजा देश के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुख्‍यमंत्री रहा हो, जिसकी सुरक्षा इस तरह की जाती हो। बंगले में 20 फीट से ज्‍यादा ऊंची बाउंड्री पर कांटों के तार लगाए गए हैं। यही नहीं, चौबीसों घंटे निगरानी के लिए वॉच टॉवर भी बनाए गए हैं। मेन इंट्रेंस से लेकर कई कॉमन जगहों पर सीसीटीवी इंस्‍टॉल किए गए हैं। ये सीसीटीवी सिर्फ आगंतुकों पर नजर रखने के लिए ही नहीं हैं। इनका काम आवास में तैनात कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों पर भी नजर रखने के लिए किया जाता है। बंगले में कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की पूरी फौज तैनात की गई है।

मायावती को जेड प्‍लस सिक्‍योरिटी मिली हुई है। करीब एक दर्जन जवानों के अलावा बंगले पर पूर्व मुख्‍यमंत्री के तौर पर करीब दो दर्जन सरकारी कर्मचारी हैं। यही नहीं, पार्टी गतिविधियां भी यहीं से चलती हैं। इसलिए संगठन के करीब तीन दर्जन लोग यहां तैनात किए गए हैं। इनमें कुछ बहन जी के बेहद करीबी माने जाते हैं, जो उनकी पार्टी और घर की हर खबर उन तक पहुंचाते हैं। बंगले पर मायावती के लिए फाइव स्‍टार होटल स्‍तर के कुक तैनात किए गए हैं। ये किसी भी तरह के खाने या नाश्‍ते की मांग मिनटों में पूरी करने में सक्षम हैं। मायावती नॉनवेज नहीं खातीं। इन कुक पर चौबीसों घंटे निगाह रखने के लिए भी कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इसके अलावा खाना चेक करने के लिए दो लोग अलग से तैनात हैं।
ये है दलितों की मसीहा

बहनजी से मिलने का अधिकार सिर्फ उनके पर्सनल स्‍टाफ को ही है। उसके अलावा चाहे वह पार्टी का ही कितना ही बड़ा नेता हो, बिना अनुमति के मुलाकात नहीं कर सकता। पिछले साल जब प्रणब मुखर्जी राष्‍ट्रपति चुनाव के सिलसिले में लखनऊ आए तो उनका मायावती के बंगले पर भी आगमन हुआ। यहां की भव्‍यता देख उन्‍होंने भी इसकी जमकर तारीफ की।
        लखनऊ की ही तरह मायावती का नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर बंगला है, जिसमें करीब-करीब ऐसी ही सुविधाएं दी गई हैं। इस प्राइवेट बंगले में सिक्‍योरिटी की व्‍यवस्‍था के लिए सरकारी खर्च पर फोटो स्‍कैनर, सीसीटीवी, वायरलेस हैंडसेट आदि खरीदे जाने का आरोप लगा। वहीं, अगर मायावती के पैतृक आवास गौतमबुद्धनगर के बादलपुर गांव की बात करें तो यहां से मायावती का नाता तभी टूट गया था, जब वे महज ढाई साल की थीं। मायावती के पिता प्रभुदयाल दिल्ली में तार विभाग में क्लर्क थे। उनका पुश्तैनी मकान गांव में महज 22 गज जमीन पर था। यह एक कमरे का मकान था। बाद में उसे उनके पिता ने किसी बाहरी आदमी को बेच दिया। उसने उस पर दोबारा मकान का निर्माण कराया। लेकिन जैसे ही मायावती मुख्यमंत्री बनीं, उन्होंने उस मकान को वापस ले लिया।
        मायावती का परिवार अब इसी गांव में 96 बीघे में बने शानदार महल में रहता है। 100 करोड़ से भी ज्‍यादा कीमत के इस महल में दो भव्य मकान और एक बौद्ध मंदिर बनाया गया है। 96 में से 50 बीघा जमीन महल के बाहर हरित पट्टी के लिए छोड़ी गई है। जिस जमीन पर महल और मंदिर का निर्माण किया गया, वह मायावती के पिता प्रभुदयाल के नाम है। बाकी 50 बीघा जमीन के दस्तावेज उनके कुछ खास लोगों के नाम पर हैं। महल में पत्थर राजस्थान, महोबा, अरावली और इटली से मंगवाकर मार्बल लगाए गए हैं। खास बात यह है कि महल के चारों तरफ बहुजन समाज पिकनिक स्पॉट बनाने के लिए बादलपुर, सादोपुर, अच्छैजा और विश्नुली गांवों की 670 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण उत्तर प्रदेश सरकार ने किया था।
         महल में करीब 2000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का एक भवन आंगतुकों के लिए ही बनाया गया है। बाकी 24,000 वर्गमीटर में एक भव्य मकान है। महल की सुरक्षा भी किसी किले से कम नहीं है। चौबीसों घंटे हाइटेक सिक्‍योरिटी सिस्टम से इसकी निगरानी रखी जाती है। बाहर तो बाहर, गांव का भी कोई व्‍यक्ति बिना इजाजत के महल में दाखिल नहीं हो सकता। इस महल का पूरा काम मायावती के छोटे भाई आनंद ने करवाया है। मायावती के महल तक पहुंचने के लिए दिल्ली-कानपुर जीटी रोड से सीधे आरसीसी की सड़क बनाई गई है। यह महल के आगे नहर के रास्ते पर जाकर खत्म होती है।

        बात अगर संपत्ति की करें तो मायावती जब 13 मई, 2007 को उत्तर प्रदेश की चौथी बार मुख्यमंत्री बनी थीं, तब उनकी संपत्ति 52 करोड़ 27 लाख रूपए थी। 2012 में राज्‍यसभा में पर्चा दाखिल करते समय तक यह बढ़कर 111 करोड़ 64 लाख रुपये हो गई। 2010 में बसपा सुप्रीमो के पास 87 करोड़ रुपये की संपत्ति हो गई थी। उन्‍होंने बताया कि उनके पास 2 लाख, 20 हजार रुपये नकद है, जबकि 14 करोड़, 94 लाख रूपये बैंक में जमा हैं। इसके बावजूद उनके पास अपनी कोई कार या गाड़ी नहीं है, न ही कोई कृषि भूमि है। सुरक्षा को लेकर हमेशा गंभीर रहने वाली मायावती जीवन बीमा में विश्‍वास नहीं रखतीं। शायद इसीलिए उनके पास एक भी बीमा पॉलिसी नहीं है।
 
जो इन्हे हिन्दू समझ कर वोट देते है कास ओ इनका धर्म पूछ लेते ?

अचल संपत्ति की बात करें तो मायावती के पास दिल्ली के कनॉट प्लेस में दो व्यावसायिक संपत्ति है, जिसकी कीमत उन्‍होंने 18 करोड़, 84 लाख रुपये बताई है। यही नहीं, उनके नाम नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर एक बंगला है, जिसकी कीमत 61 करोड़, 86 लाख रूपये है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 9 माल एवेन्यू के बंगले की कीमत 15 करोड़, 68 लाख रुपये हैं। उनके पास 1 किलो, 34 ग्राम सोना और 380 कैरेट हीरे के जवाहरात हैं। सोने और हीरे के आभूषण की कीमत 96 लाख, 53 हजार रुपये है ।

बहन जी को जन्म दिन कि बहुत बहुत शुभ कामनाये । ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे । पर इस लम्बी उम्र  साथ  साथ एक बड़ा ह्रदय दे जिससे दलितो कि ब्यथा को समझ सके । दलित आज भी दो वक्त कि रोटी और झोपड़ी कि तलास में इधर उधर भटक रहा है पर बहन जी के पास इतने वर्ष में अकूत सम्पत्ति आ गई और दलित आज भी भूखा है ।  
 

कांग्रेश चाहे कुछ भी कर ले मोदी का रथ नहीं रोक सकती

कांग्रेश ने केजरीवाल सरकार बनवाकर उसने मोदी को ब्रेक लगाये हैं ? 

लोकपाल बिल पास कराने का दांव हो या कुकिंग गैस के सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या 9 से बढ़ाकर 12 करने पर विचार का मामला कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार दिन-ब-दिन अलोकप्रिय होती जा रही है। भाजपा ने जब से मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित किया है, तब से कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस कशमकश में है कि वह मोदी के जवाब में राहुल को अपनी ओर से पीएम पद का कैंडिडेट बनाये या ना बनाये। सियासत की दीवार पर लिखा सच तो यह है कि अब देश की जनता का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस से भ्रष्टाचार और महंगाई की वजह से नफ़रत करने लगा है और उसने मोदी को पीएम बनाकर एक मौका देने का मन लगभग बना लिया है।
अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों को अगर छोड़ भी दिया जाये तो हिंदुओं का वह सेक्यूलर और सहिष्णु वर्ग जो भाजपा की कट्टर हिंदुत्ववादी और मोदी की 2002 के दंगों को लेकर बनी अलगाववादी दंगाई छवि को पसंद नहीं करता था, धीरे-धीरे कांग्रेस ही नहीं भ्रष्ट और जनविरोधी क्षेत्रीय दलों से भी किनारा करता नज़र आ रहा है। मिसाल के तौर पर यूपी में कांग्रेस ना केवल संसदीय चुनाव में साफ़ हो जायेगी, बल्कि सपा और बसपा भी हाफ हो सकती हैं और बीजेपी पहले के मुकाबले दो तीन गुना सीट जीत सकती है। जनवरी 2013 में इंडिया टुडे-नीलसन के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में ही संकेत मिल गया था कि चुनाव में एनडीए यूपीए पर भारी पड़ेगा। मई आते आते सर्वे कहने लगे कि चुनाव में कांग्रेस हारने जा रही है।
       इसके बाद भी यह दावे से नहीं कहा गया कि भाजपा सत्ता में आ जायेगी लेकिन जुलाई में सीएसडीएस के सर्वे में तस्वीर और साफ हुयी कि देश के 10 अहम राज्यों में से कांग्रेस 8 में पिछड़ रही है। यूपी की 80, महाराष्ट्र 48, बंगाल 42, बिहार 40, कर्नाटक 28, गुजरात 26, राजस्थान 25, ओडिशा 21, केरल 20, असम 14, झारखंड 14, पंजाब 13, छत्तीसगढ़ 11 और हरियाणा 10 सीट हैं। इन दस राज्यों की कुल 399 सीटों में से 2009 में कांग्रेस ने 164 जीतीं थीं लेकिन इस बार वह 83 पर सिमट सकती है। इसकी एक और वजह भी है। एक साल के अंदर यूपीए के दो महत्वपूर्ण घटक डीएमके और तृणमूल कांग्रेस ने उसका साथ नाराज़ होकर छोड़ा है जिससे उनकी वापसी के आसार कम हैं।

       प्रणब मुखर्जी को प्रेसीडेंट बनाकर कांग्रेस ने बंगाल में अपना आधार बढ़ाने की बजाये कम ही किया है, क्योंकि बंगाली मानुष उनको पीएम पद का सही हक़दार मानता था जो उनको ना देकर वंशवाद के कारण अयोग्य और अक्षम राहुल को दिया जा रहा है। फिलहाल कांग्रेस के पास बड़े घटकों में एनसीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ही बचे हैं जबकि 33 सीटें जिताने वाला आंध्र तेलंगाना बनाकर वह खोने जा रही है। वाईएसआर के बेटे जगनमोहन से पंगा लेकर कांग्रेस ने वहां अपनी क़ब्र राजीव गांधी के ज़माने में एनटी रामाराव के उभार की तरह खुद ही खोद ली है। उधर बिहार में कांग्रेस पहले नीतीश कुमार की जदयू के करीब बढ़ रही थी लेकिन जेल से बाहर आते ही सहानुभूति वोट की आस में वह फिर बदनाम लालू यादव की गोद में ही अपनी जगह तलाश रही है, लेकिन पासवान ने अपना रास्ता अलग बनाने की बात कहकर गठबंधन की हवा निकाल दी है।
         2004 के चुनाव में इस गठबंधन को 29 सीट मिलीं थीं तो 2009 में अलग अलग लड़ने पर कांग्रेस को मात्र दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ऐसे ही यूपीए गठबंधन को झारखंड में पहले 8 तो अकेले लड़ने पर बाद में मात्र एक सीट मिली थी। विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस की हालत इतनी पतली हो गयी कि उसे 243 में से सिर्फ 4 सीट मिली। अकेले चुनाव लड़ने का लाभ कांग्रेस को यूपी में हुआ था, जहां सपा के भाजपा के पूर्व सीएम कल्याण सिंह से गठबंधन करने पर उसने मुसलमानों का रूख़ भांपकर 22 सीटें जीत लीं थीं लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं है। यूपी में कांग्रेस सपा की बजाये बसपा से जुड़ना चाहती है लेकिन मायावती का कहना है कि कांग्रेस के पास कोई वोटबैंक तो बचा ही नहीं है, इसलिये वह दलित वोट वापस उसकी झोली में नहीं डालेगी।
अजीब बात यह है कि जिस लोकदल से कांग्रेस का पैक्ट है, उसका एकमात्र जाट मतदाता अजीत के बजाये इस बार मुज़फ्फरनगर दंगा होने से पूरी तरह भाजपा के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। ले-देकर कांग्रेस कर्नाटक में इस बार अपनी स्थिति सुधर सकती थी लेकिन वहां भाजपा का येदियुरप्पा के 18 फीसदी लिंगायत वोट साथ लेने को तालमेल बन जाने से यह उम्मीद भी कमज़ोर पड़ गयी है। कांग्रेस में इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि पार्टी के वोट बैंक में लगातार सेंध लग रही है और पार्टी सत्ता में होने के बावजूद उसको रोक नहीं पा रही है। यह एक तरह से बिल्कुल उल्टी स्थिति है क्योंकि जो दल भी सरकार चलाता है उसके पास जनहित की योजनायें चलाकर लोगों का दिल जीतने की संभावनायें और अवसर अधिक होते हैं ।ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की यूपीए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून और भूमि अधिगृहण कानून जैसे जनहिति के काम नहीं किये हैं, लकिन घोटालों से उसकी बदनामी सब कामों पर भारी पड़ रही है। कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को बिना मांगे सपोर्ट देकर केजरीवाल की सरकार बनवाकर एक तीर से दो शिकार किये हैं। उसने मोदी की विजययात्रा को ब्रेक लगाया है। साथ ही उसने अपने प्रति बढ़ रहा लोगों का आक्रोश कुछ कम करने का प्रयास भी किया है लेकिन यह सच है कि आप अगर तीन सौ सीटों पर भी लोकसभा का चुनाव लड़ती है तो कांग्रेस का तो सफाया करेगी ही साथ ही चार में से तीन राज्यों का भारी भरकम बहुमत से चुनाव जीती भाजपा को भी वोटों का समीकरण बिगाड़कर खुद जीते या ना जीते, लेकिन भाजपा की 50 सीट दिल्ली की तरह कम ज़रूर कर देगी क्योंकि येदियुरप्पा को पार्टी में लेकर और उदारवादी पूंजीवादी नीतियां अपनाकर व कारपोरेट सैक्टर की पैरवी कर के बीजेपी ने आप को अपने खिलाफ प्रचार का बहुत बड़ा हथियार थमा दिया है ।

खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले । 
खुदा बंदे से यह पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है ॥

साभार --- : इक़बाल हिंदुस्तानी

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

भूली बिसरी यादे -- भाग 1

मेरी पढ़ाई में क्लास पहली से आठवी तक मेरे छोटे चाचा जी ''श्री मथुरा सिंह जी'' का बहुत योगदान रहा है उनके डंडे के प्यार भरी फटकार आज भी याद है । इसके बाद क्लास 9 से 11 वी तक ''श्री के पी गुप्ता जी'' का बहुत बड़ा योगदान रहा गुप्ता सर जी के डर के कारण मैंने '' हायर मैथमेटिक्स '' से 11 वी पास किया । इसके बाद डिप्लोमा में '' मोहन मुर्तज़ा खान '' सर का बहुत बड़ा योगदान रहा खान सर ने कभी नहीं डाटा , बड़े प्यार से समझाते थे दुनिया दारी उनकी सीख आज भी बहुत काम आ रही है ।
सभी सोच रहे होगे कि मैंने पिता जी का कही नाम नहीं लिया तो बता दू कि पिता जी शिक्षक थे और जब तक मैं रीवा में रहा तब तक ओ बाहर सहडोल ,और सीधी में रहे इस कारण पिता जी कि मार कभी नहीं खाई जीवन में सिर्फ एक बार एक चाटा मारा था पिता जी ने ।

नोट---: लाल घेरे में छोटे चाचा जी है । पढ़ाई करने के बाद गुप्ता सर जी और खान सर जी से कभी मुलाकात नहीं हुई ।

सोमवार, 13 जनवरी 2014

मुलायम जी का झकाझोर समाजवाद ?


कहीं पढ़ा था की लोहिया जी ने कहा था की क्रांति जिसके कंधे पर चढ़ कर आती है, सबसे पहले उसी का शिकार करती है । लोहिया जी तो अब नहीं रहे लेकिन खुद को लोहिया के लोग कहने वाले समाजवादी टाईप के कुछ लोग बच गए हैं ।

उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप ?
कुछ लोग कहने में भी उन लोगों की तौहीन होगी साहब, पूरा एक कुनबा है ऐसे लोगों का जो लोग समाजवादी होने के प्रोसेस में लगता है कि समाजवाद पर ही चढ़ बैठे हैं, साथ ही हाथी की पार्किंग से उकताए जितने भी लोगों ने समर्थन दिया उस क्रांति में, उनके ऊपर भी ये चढ़े हुए लगते हैं क्योंकि टीवी वाले लगातार बता रहे हैं कि मुजफ्फरनगर में तमाम लोग अभी भी कराह रहे हैं। खुदा करे कि टीवी वाले जो बता रहे हैं वो झूठ साबित हो क्योंकि हम इक्कीसवीं सदी के भारत में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश में जिनके पास हुकूमत है उनके खुद के गाँव में भी एक साथ आधा दर्जन हेलीकाप्टर और जहाज उतर सकते हैं। जब गाँव में ये सुविधा है तो पूरे सूबे में कितना विकास हुआ होगा ये कोई अमेरिका वाला भी असानी से समझ सकता है। जुलियन असान्जे ने बहिन जी के सैंडिल के बारे में न जाने क्या लीक किया था, भला हो दुनिया के मुक्तिदाता अमेरिका का जो असान्जे अभी एक दूतावास में बंद है वरना उसको समाजवाद पर भी नई स्टडी करने का मौका मिल जाता और दुनिया भर में समाजवाद के इण्डियन वर्जन का डंका बजता।
झकाझोर समाजवाद

January 9, 2014
कहीं पढ़ा था की लोहिया जी ने कहा था की  क्रांति जिसके कंधे पर चढ़ कर आती है, सबसे पहले उसी का शिकार करती है। लोहिया जी तो अब नहीं रहे लेकिन खुद को लोहिया के लोग कहने वाले समाजवादी टाईप के कुछ लोग बच गए हैं।

उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप?
उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप?
कुछ लोग कहने में भी उन लोगों की तौहीन होगी साहब, पूरा एक कुनबा है ऐसे लोगों का जो  लोग समाजवादी होने के प्रोसेस में लगता है कि समाजवाद पर ही चढ़ बैठे हैं, साथ ही हाथी की पार्किंग से उकताए जितने भी लोगों ने समर्थन दिया उस क्रांति में, उनके ऊपर भी ये चढ़े हुए लगते हैं क्योंकि टीवी वाले लगातार बता रहे हैं कि मुजफ्फरनगर में तमाम लोग अभी भी कराह रहे हैं। खुदा करे कि टीवी वाले जो बता रहे हैं वो झूठ साबित हो क्योंकि हम इक्कीसवीं सदी के भारत में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश में जिनके पास हुकूमत है उनके खुद के गाँव में भी एक साथ आधा दर्जन हेलीकाप्टर और जहाज उतर सकते हैं। जब गाँव में ये सुविधा है तो पूरे सूबे में कितना विकास हुआ होगा ये कोई अमेरिका वाला भी असानी से समझ सकता है। जुलियन असान्जे ने बहिन जी के सैंडिल के बारे में न जाने क्या लीक किया था, भला हो दुनिया के मुक्तिदाता अमेरिका का जो असान्जे अभी एक दूतावास में बंद है वरना उसको समाजवाद पर भी नई स्टडी करने का मौका मिल जाता और दुनिया भर में समाजवाद के इण्डियन वर्जन का डंका बजता।

मुलायम सिंह जैसे नेता कभी कभार पैदा होते हैं इसलिए आज के दौर में यूपी में किसी को नेताजी कहा जाता है तो वो मुलायम सिंह जी हैं, इनके बारे में मशहूर रहा है की एक एक कार्यकर्ता को कभी नाम से पहचानते थे और गर्मियों में भी बिना एसी की गाड़ी में पूरे प्रदेश के घनघोर दौरे किया करते थे। बहुत योद्धा स्वभाव के रहे हैं नेता जी लेकिन अब उम्र बढ़ने के साथ इनमें प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता आगई और इन्होने अपनी पूरी कमाई कुनबे के नाम कर दी और खुद दिल्ली की तरफ फोकस कर दिया जो जरुरी भी है क्योंकि प्रधानमंत्री पद के जितने भी दावेदार हैं उनमें सबसे काबिल हमारे यूपी वाले नेता जी ही हैं। उत्तर प्रदेश ने आजकल प्रधानमंत्री देना बंद कर दिया है, राहुल जी का भले ही नाम उछले लेकिन वो हैं तो आखिर दिल्ली वाले ही, ऐसे में औसत के कानून के हिसाब से या डकवर्थ लुईस नियम से भी अबकी बार मुलायम सिंह जी का प्रधानमंत्री बनना तय है, डकवर्थ लुईस नियम क्रिकेट में लागू होता है जब कुछ देर का खेल होने के बाद बारिश के चलते मैच रद्द हो जाता है, तब फैसला करते वक्त इस नियम का सहारा लिया जाता है। दिल्ली में भी जब मोदी जी और राहुल जी में मैच फंसेगा तब अगर लालूजी ने अम्पायर के फैसले पर आपत्ति न की तो जिन लोगों के चांस बनेंगे उनमें से नेताजी पहले नंबर पर होंगे, भले ही अभी आप इस बात को गप्प समझें।

तो भईया जैसे अभी दिल्ली की जनता शीला जी  के भ्रष्टाचार से त्रस्त थी वैसे ही बताया जाता है की बहिन जी के हाथी पार्क से भी जनता दुखी हो गई थी, बाकी भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा होता तो आप फिर काँग्रेस के साथ कैसे आती। बहिन जी के समय सबसे बड़े खलनायक बन कर उभरे थे बाबू कुशवाहा जी, बताया जाता है कि उन्होंने अरबों रुपयों का घोटाला किया था जिससे छवि खराब हो गई और जनता बसपा के खिलाफ हो गई। कुशवाहा जी चुनाव के वक्त भाजपा में आ गए, फिर जेल गए और वर्तमान में उनकी पत्नी का नाम समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट में हैं वो भी सिटिंग एमपी का टिकट काट कर दिया गया है। अगर ये कैंडिडेट पाक साफ़ है तो फिर बहन जी के समय किस भ्रष्टाचार का हल्ला मचा भाई? जो भी हो लेकिन दुखी जनता ने मुलायम सिंह जी की अपील पर युवा सनसनी अखिलेश जी को हाथों हाथ लिया और लगा की उत्तर प्रदेश की तक़दीर बदल गई, बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि राहुल जी के खानदान और दिल्ली की मीडिया के सहारे काँग्रेस ने भी जोरदार अभियान चलाया था कि मायावती-मुलायम  को जवाब दिया जाएगा लेकिन जनता ने भारी बहुमत से चुना समाजवाद को।

बाकी सबका सूपड़ा साफ़ और आया झकाझोर समाजवाद। वैसे तो प्रदेश में पहले भी आ चुका है लेकिन इस बार अकेले अपने दम पर आया, खांटी समाजवाद, जिसके साथ अमर सिंह भी नहीं थे और अमिताभ बच्चन भी नहीं ,था एक रिफ्रेशिंग नया चेहरा। लेकिन चेहरे का युवा होना पुराने समाजवादियों को पचा नहीं और लोग बदनाम करने में लग गए, कहाँ गर्व की बात थी की प्रदेश का मुख्यमंत्री ऐसा युवा है जो तीस किलोमीटर साईकिल चला सकता है, मैराथन दौड़ सकता है वहीं लोग लगे मुलायम सिंह जी की सारी कमाई को डुबोने। लगातार कोशिश की जाती रही कि नव समाजवाद फ्लॉप हो जाए लेकिन उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप? बहिन जी के कार्यकाल में धकाधक विधायक लोग बलात्कार करते थे जबकि इस सरकार में ऐसा एकदम नहीं है, कभी भूले भटके किसी पर आरोप लगा और दबाव में मुकदमा-सुकदमा भी हुआ तो जनहित में क्लीनचिट लखनऊ से दे दी गई क्योंकि जो लोग सरकार में हैं उनको तो पता है कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है सेवा में, अपने घर जाने, बच्चों के साथ खाना खाने का मौका तो मिलता नहीं, चले हैं बलात्कार का काण्ड करने। सरकार को बदनाम करने वाले भी न जाने क्या क्या करते रहते हैं? न शीला जी न बहिन जी चाहती थीं की उनके राज में बलात्कार हो तो क्या फारेन रिटर्न अखिलेश जी ऐसा चाहेंगे? ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है साहब।

कभी मुलायम सिंह जी ने अंग्रेजी और कंप्यूटर का विरोध किया था, लेकिन देखिये सुधरे हुए समाजवाद ने हर बच्चे के हाथ में लैपटॉप पकड़ा दिया, इतनी बड़ी कंप्यूटर क्रांति का सपना तो देश को आईटी-वाईटी की गिफ्ट देने वाले राजीव जी ने भी नहीं देखा रहा होगा वरना काँग्रेस कभी का पूरा कर चुकी होती क्योंकि कोई अपने बाप के घर से थोड़े न बांटना होता है। लैपटॉप से सूबे में बड़ी क्रांति हुई है, शुरुआत में बच्चे वही करेंगे जो आपने पहली बार किया था लेकिन अगर बिजली मिले और सीखते रहे तो एकदिन देश में यूपी के बच्चों का नाम होगा, वैसे परीक्षाएं अभी वैसे ही होती हैं जैसे होती रही हैं। इस बार भी हाईस्कूल में संस्कृत की तैयारी करने वाले तमाम छात्र अंग्रेजी में पास हो गए क्योंकि जहाँ इम्तेहान का ठेका था वहाँ फार्म पर संस्कृत की जगह अंग्रेजी भर दिया गया था और कांट्रेक्ट पास कराने का था तो जो भी पर्चा आये उसे हल तो करवाना ही था। अब ये सब मामूली बातें हैं जो मुख्यमंत्री तक तो कोई बताने जाएगा नहीं। हाँ कानून व्यवस्था ऐसा मामला है जो लखनऊ को देखना चाहिए और जहाँ तक दिखता है वहाँ तक लोग देखते ही हैं लेकिन पता नहीं, शायद नाम में ही दोष है क्योंकि लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास जिस रस्ते पर है उसे कालिदास रोड कहा जाता है और दुनिया शादी से पहले वाले कालिदास को अधिक जानती है।

बीच में कोई जियाउल हक़ का भी मामला हुआ रहा जिसमें जितनी बदनामी उस मरहूम के परिवार को उठानी पड़ी वैसा ड्रामा खुदा किसी के साथ न करवाए, हाँ इस चक्कर में हिन्दू ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले राजा भईया को न जाने क्यों फँसा लिया गया था और उनको इस्तीफा देना पड़ गया था लेकिन सीएम साहब के बचपन के चचा और काफी जहीन मनिस्टर आजम खान ने भईया को मना लिया और उनकी मंत्रिमंडल में वापसी हो गई। इसी के साथ जिन ठाकुर वोटों के बिखरने  का खतरा था वो फिर साईकिल पर आगये।

हाँ जैसा की राहुल जी ने बताया की बीजेपी वाले दंगे कराते हैं और फिर आईएसआई वाले आ जाते हैं, वैसा भी किसी मुजफ्फरनगर में हुआ लेकिन दंगे कहाँ हो रहे थे, चचा जी लोगों ने बताया कि वहाँ कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी, केवल मामूली बात थी जिसका सियासत के चलते कुछ लोगों ने बतंगड़ बना दिया।सच ही तो है, जब फौज आई तो बाहर के लोगों को पता चला की वहाँ कुछ हो रहा है। फौज भेजने में भी लगता है की केंद्र सरकार की कोई चाल रही होगी वरना कोई भी काबिल सरकार आतताईयों पर काबू करना चाहे तो कर सकती है लेकिन समाजवाद को बदनाम करने के लिए फौज भेज दी गई। कई महीने बाद भी लोग वहाँ की हालत पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं, जबकि सरकार, जिसकी जिम्मेदारी है की अमन चैन कायम रहे और सब सुकून से रहें,बहुत पहले ही कह चुकी है की वहाँ आल इज वेल है और राहत शिविरों में जो थे वो बच्चे और बूढ़े सब भाजपा-काँग्रेस के एजेंट थे, जाहिर है की दोनों बड़ी पार्टियाँ नहीं चाहतीं की कोई समाजवादी प्रधानमंत्री बने इसलिए ऐसी साजिशें चल रही होंगी, सियासत में हम कुछ भी कह नहीं सकते, बोलिए जय समाजवाद। और अगर गड़बड़ हो रही होती तो मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री जी वहाँ न जाकर विदेश स्टडी टूर पर जाते? जबकि उनसे जहीन कोई है नहीं, कौम के लिए जितना वो सोचते हैं वहाँ तक किसी की सोच जा ही नहीं सकती। हाँ बीच-बीच में जनाब बुखारी और तौकीर रजा साहब जैसे लोग भी सोचते हैं लेकिन उन लोगों की सोच खांटी समाजवादी आजम खान साहब से छोटी ही पड़ जाती है।

इन सबके बीच मायावती के दौर में समाजवाद के गढ़ सैफई में जो घनघोर लापरवाही बरती गई उसको ठीक करने की भी जिम्मेदारी भी आगई, आखिर काँग्रेस के नेता पटेल जी के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री जी बेचैन हो सकते हैं तो समाजवाद के पुरोधा मुलायम सिंह जी के जन्म स्थान की चिंता समाजवादी सरकार नहीं करेगी तो कौन करेगा? लोग कह रहे हैं की लगभग सवा सात हजार की आबादी वाले गाँव के लिए इस सरकार ने 300 करोड़ से ऊपर की योजनायें दी हैं, क्या गलत है साहब? आखिर नव समाजवाद का तीर्थ स्थल है सैफई। लोग सोचते थे की अमर सिंह के जाने के बाद अब गाँव के सालाना जलसे में बंबई के नचनिये नहीं आयेंगे, अरे भाई अमर सिंह लाते थे क्या? बसंती को गब्बर से क्या मतलब, जहाँ पइसा मिलेगा वहाँ नाचेगी, चाहे दुबई हो या सैफई। बड़े बड़े सितारे बड्डे पार्टी से लेकर न्यू ईयर के जलसे में नाचते हैं की नहीं? आखिर उनका पेशा है, जहाँ नोट मिलेगी वहाँ लोट जायेंगे। साहब इस बार तो जबरदस्त जलसा हुआ, जनवरी के महीने में इतनी गर्मी चढ़ी की लोग पसीना-पसीना हो गए और तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सरकार का वहाँ रहना बताता है की समाजवादी सरकार गाँव-गिराँव की हितैषी है और अभी भी इसमें धरती पुत्र की आभा बची हुई है क्योंकि ये लोग अपने तीर्थों को भूले नहीं हैं। अब आप लोग बदनामी कितना भी कर लीजिये लेकिन हार्ड कोर ने जब मंच से चुटकी ली की सीएम साहेब बहुत सेक्सी हैं और उन्हें एक्टिंग की भी सीखनी चाहिए तो आप मान लीजिये की प्रदेश  धन्य हो गया ऐसा सीएम पाकर, हार्ड कोर को जो न जानते हों वो लोग गूगल करें क्योंकि उनको तो अब सैफई का बच्चा बच्चा भी पहचान चुका है।

‘बीइंग ह्यूमन’ वाले सलमान ने जब ‘पांडेय जी सीटी बजावें’ पर अपने ही अंदाज में जोरदार नृत्य किया तो अखबार वाले न जाने क्यों आईजी, पांडे जी की फोटो छापते हैं जिनको की दिखाया गया है की वो सीएम के चरणों में बैठे हैं जबकी सबको पता है की पाण्डेय जी प्रदेश के बहुत काबिल अफसर हैं। अरे जब मुख्यमंत्री जी बैठे हैं और अगल बगल जगह खाली नहीं है तो कोई बात करनी हो तो अफसर खुद सीएम को उठाकर तो बैठेंगे नहीं, नाहक ही समाजवाद से जलने वाले लोग एक काबिल अफसर और सीएम की जोड़ी को बदनाम कर रहे हैं। ‘राम चाहे लीला, लीला चाहे राम’ से झूमते लोगों का आनंद उस समय चरम पर पहुँच गया जब मुलायम सिंह जी की छोटी बहु खुद मंच पर पहुँच गईं और साजिद के साथ ‘नेता जी को दिल्ली पहुंचाना है’ गाने लगीं। ये नया समाजवादी गाना इसी मंच पर लांच किया गया, इस गाने के दौरान खुद सीएम साहब और उनके भाई प्रतीक भी मंच पर पहुँच गए। आप लोगों को भी नाहक आलोचना करने की जगह समाजवाद की जय बोलनी चाहिए और साम्प्रदायिकता के नाश का संकल्प लेना चाहिए। जिस गाने के साथ महान समाजवादी महोत्सव का समापन हुआ उसे एक बार तो सुर में गाकर देखिये और ऑंखें बंद करके सोचिएगा — नेता जी को दिल्ली पहुँचाना है।

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मुलायम सिंह जैसे नेता कभी कभार पैदा होते हैं इसलिए आज के दौर में यूपी में किसी को नेताजी कहा जाता है तो वो मुलायम सिंह जी हैं, इनके बारे में मशहूर रहा है की एक एक कार्यकर्ता को कभी नाम से पहचानते थे और गर्मियों में भी बिना एसी की गाड़ी में पूरे प्रदेश के घनघोर दौरे किया करते थे। बहुत योद्धा स्वभाव के रहे हैं नेता जी लेकिन अब उम्र बढ़ने के साथ इनमें प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता आगई और इन्होने अपनी पूरी कमाई कुनबे के नाम कर दी और खुद दिल्ली की तरफ फोकस कर दिया जो जरुरी भी है क्योंकि प्रधानमंत्री पद के जितने भी दावेदार हैं उनमें सबसे काबिल हमारे यूपी वाले नेता जी ही हैं। उत्तर प्रदेश ने आजकल प्रधानमंत्री देना बंद कर दिया है, राहुल जी का भले ही नाम उछले लेकिन वो हैं तो आखिर दिल्ली वाले ही, ऐसे में औसत के कानून के हिसाब से या डकवर्थ लुईस नियम से भी अबकी बार मुलायम सिंह जी का प्रधानमंत्री बनना तय है, डकवर्थ लुईस नियम क्रिकेट में लागू होता है जब कुछ देर का खेल होने के बाद बारिश के चलते मैच रद्द हो जाता है, तब फैसला करते वक्त इस नियम का सहारा लिया जाता है। दिल्ली में भी जब मोदी जी और राहुल जी में मैच फंसेगा तब अगर लालूजी ने अम्पायर के फैसले पर आपत्ति न की तो जिन लोगों के चांस बनेंगे उनमें से नेताजी पहले नंबर पर होंगे, भले ही अभी आप इस बात को गप्प समझें।

तो भईया जैसे अभी दिल्ली की जनता शीला जी के भ्रष्टाचार से त्रस्त थी वैसे ही बताया जाता है की बहिन जी के हाथी पार्क से भी जनता दुखी हो गई थी, बाकी भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा होता तो आप फिर काँग्रेस के साथ कैसे आती। बहिन जी के समय सबसे बड़े खलनायक बन कर उभरे थे बाबू कुशवाहा जी, बताया जाता है कि उन्होंने अरबों रुपयों का घोटाला किया था जिससे छवि खराब हो गई और जनता बसपा के खिलाफ हो गई। कुशवाहा जी चुनाव के वक्त भाजपा में आ गए, फिर जेल गए और वर्तमान में उनकी पत्नी का नाम समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट में हैं वो भी सिटिंग एमपी का टिकट काट कर दिया गया है। अगर ये कैंडिडेट पाक साफ़ है तो फिर बहन जी के समय किस भ्रष्टाचार का हल्ला मचा भाई? जो भी हो लेकिन दुखी जनता ने मुलायम सिंह जी की अपील पर युवा सनसनी अखिलेश जी को हाथों हाथ लिया और लगा की उत्तर प्रदेश की तक़दीर बदल गई, बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि राहुल जी के खानदान और दिल्ली की मीडिया के सहारे काँग्रेस ने भी जोरदार अभियान चलाया था कि मायावती-मुलायम को जवाब दिया जाएगा लेकिन जनता ने भारी बहुमत से चुना समाजवाद को।

बाकी सबका सूपड़ा साफ़ और आया झकाझोर समाजवाद। वैसे तो प्रदेश में पहले भी आ चुका है लेकिन इस बार अकेले अपने दम पर आया, खांटी समाजवाद, जिसके साथ अमर सिंह भी नहीं थे और अमिताभ बच्चन भी नहीं ,था एक रिफ्रेशिंग नया चेहरा। लेकिन चेहरे का युवा होना पुराने समाजवादियों को पचा नहीं और लोग बदनाम करने में लग गए, कहाँ गर्व की बात थी की प्रदेश का मुख्यमंत्री ऐसा युवा है जो तीस किलोमीटर साईकिल चला सकता है, मैराथन दौड़ सकता है वहीं लोग लगे मुलायम सिंह जी की सारी कमाई को डुबोने। लगातार कोशिश की जाती रही कि नव समाजवाद फ्लॉप हो जाए लेकिन उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप? बहिन जी के कार्यकाल में धकाधक विधायक लोग बलात्कार करते थे जबकि इस सरकार में ऐसा एकदम नहीं है, कभी भूले भटके किसी पर आरोप लगा और दबाव में मुकदमा-सुकदमा भी हुआ तो जनहित में क्लीनचिट लखनऊ से दे दी गई क्योंकि जो लोग सरकार में हैं उनको तो पता है कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है सेवा में, अपने घर जाने, बच्चों के साथ खाना खाने का मौका तो मिलता नहीं, चले हैं बलात्कार का काण्ड करने। सरकार को बदनाम करने वाले भी न जाने क्या क्या करते रहते हैं? न शीला जी न बहिन जी चाहती थीं की उनके राज में बलात्कार हो तो क्या फारेन रिटर्न अखिलेश जी ऐसा चाहेंगे? ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है साहब।

कभी मुलायम सिंह जी ने अंग्रेजी और कंप्यूटर का विरोध किया था, लेकिन देखिये सुधरे हुए समाजवाद ने हर बच्चे के हाथ में लैपटॉप पकड़ा दिया, इतनी बड़ी कंप्यूटर क्रांति का सपना तो देश को आईटी-वाईटी की गिफ्ट देने वाले राजीव जी ने भी नहीं देखा रहा होगा वरना काँग्रेस कभी का पूरा कर चुकी होती क्योंकि कोई अपने बाप के घर से थोड़े न बांटना होता है। लैपटॉप से सूबे में बड़ी क्रांति हुई है, शुरुआत में बच्चे वही करेंगे जो आपने पहली बार किया था लेकिन अगर बिजली मिले और सीखते रहे तो एकदिन देश में यूपी के बच्चों का नाम होगा, वैसे परीक्षाएं अभी वैसे ही होती हैं जैसे होती रही हैं। इस बार भी हाईस्कूल में संस्कृत की तैयारी करने वाले तमाम छात्र अंग्रेजी में पास हो गए क्योंकि जहाँ इम्तेहान का ठेका था वहाँ फार्म पर संस्कृत की जगह अंग्रेजी भर दिया गया था और कांट्रेक्ट पास कराने का था तो जो भी पर्चा आये उसे हल तो करवाना ही था। अब ये सब मामूली बातें हैं जो मुख्यमंत्री तक तो कोई बताने जाएगा नहीं। हाँ कानून व्यवस्था ऐसा मामला है जो लखनऊ को देखना चाहिए और जहाँ तक दिखता है वहाँ तक लोग देखते ही हैं लेकिन पता नहीं, शायद नाम में ही दोष है क्योंकि लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास जिस रस्ते पर है उसे कालिदास रोड कहा जाता है और दुनिया शादी से पहले वाले कालिदास को अधिक जानती है।

बीच में कोई जियाउल हक़ का भी मामला हुआ रहा जिसमें जितनी बदनामी उस मरहूम के परिवार को उठानी पड़ी वैसा ड्रामा खुदा किसी के साथ न करवाए, हाँ इस चक्कर में हिन्दू ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले राजा भईया को न जाने क्यों फँसा लिया गया था और उनको इस्तीफा देना पड़ गया था लेकिन सीएम साहब के बचपन के चचा और काफी जहीन मनिस्टर आजम खान ने भईया को मना लिया और उनकी मंत्रिमंडल में वापसी हो गई। इसी के साथ जिन ठाकुर वोटों के बिखरने का खतरा था वो फिर साईकिल पर आगये।

हाँ जैसा की राहुल जी ने बताया की बीजेपी वाले दंगे कराते हैं और फिर आईएसआई वाले आ जाते हैं, वैसा भी किसी मुजफ्फरनगर में हुआ लेकिन दंगे कहाँ हो रहे थे, चचा जी लोगों ने बताया कि वहाँ कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी, केवल मामूली बात थी जिसका सियासत के चलते कुछ लोगों ने बतंगड़ बना दिया।सच ही तो है, जब फौज आई तो बाहर के लोगों को पता चला की वहाँ कुछ हो रहा है। फौज भेजने में भी लगता है की केंद्र सरकार की कोई चाल रही होगी वरना कोई भी काबिल सरकार आतताईयों पर काबू करना चाहे तो कर सकती है लेकिन समाजवाद को बदनाम करने के लिए फौज भेज दी गई। कई महीने बाद भी लोग वहाँ की हालत पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं, जबकि सरकार, जिसकी जिम्मेदारी है की अमन चैन कायम रहे और सब सुकून से रहें,बहुत पहले ही कह चुकी है की वहाँ आल इज वेल है और राहत शिविरों में जो थे वो बच्चे और बूढ़े सब भाजपा-काँग्रेस के एजेंट थे, जाहिर है की दोनों बड़ी पार्टियाँ नहीं चाहतीं की कोई समाजवादी प्रधानमंत्री बने इसलिए ऐसी साजिशें चल रही होंगी, सियासत में हम कुछ भी कह नहीं सकते, बोलिए जय समाजवाद। और अगर गड़बड़ हो रही होती तो मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री जी वहाँ न जाकर विदेश स्टडी टूर पर जाते? जबकि उनसे जहीन कोई है नहीं, कौम के लिए जितना वो सोचते हैं वहाँ तक किसी की सोच जा ही नहीं सकती। हाँ बीच-बीच में जनाब बुखारी और तौकीर रजा साहब जैसे लोग भी सोचते हैं लेकिन उन लोगों की सोच खांटी समाजवादी आजम खान साहब से छोटी ही पड़ जाती है।

इन सबके बीच मायावती के दौर में समाजवाद के गढ़ सैफई में जो घनघोर लापरवाही बरती गई उसको ठीक करने की भी जिम्मेदारी भी आगई, आखिर काँग्रेस के नेता पटेल जी के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री जी बेचैन हो सकते हैं तो समाजवाद के पुरोधा मुलायम सिंह जी के जन्म स्थान की चिंता समाजवादी सरकार नहीं करेगी तो कौन करेगा? लोग कह रहे हैं की लगभग सवा सात हजार की आबादी वाले गाँव के लिए इस सरकार ने 300 करोड़ से ऊपर की योजनायें दी हैं, क्या गलत है साहब? आखिर नव समाजवाद का तीर्थ स्थल है सैफई। लोग सोचते थे की अमर सिंह के जाने के बाद अब गाँव के सालाना जलसे में बंबई के नचनिये नहीं आयेंगे, अरे भाई अमर सिंह लाते थे क्या? बसंती को गब्बर से क्या मतलब, जहाँ पइसा मिलेगा वहाँ नाचेगी, चाहे दुबई हो या सैफई। बड़े बड़े सितारे बड्डे पार्टी से लेकर न्यू ईयर के जलसे में नाचते हैं की नहीं? आखिर उनका पेशा है, जहाँ नोट मिलेगी वहाँ लोट जायेंगे। साहब इस बार तो जबरदस्त जलसा हुआ, जनवरी के महीने में इतनी गर्मी चढ़ी की लोग पसीना-पसीना हो गए और तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सरकार का वहाँ रहना बताता है की समाजवादी सरकार गाँव-गिराँव की हितैषी है और अभी भी इसमें धरती पुत्र की आभा बची हुई है क्योंकि ये लोग अपने तीर्थों को भूले नहीं हैं। अब आप लोग बदनामी कितना भी कर लीजिये लेकिन हार्ड कोर ने जब मंच से चुटकी ली की सीएम साहेब बहुत सेक्सी हैं और उन्हें एक्टिंग की भी सीखनी चाहिए तो आप मान लीजिये की प्रदेश धन्य हो गया ऐसा सीएम पाकर, हार्ड कोर को जो न जानते हों वो लोग गूगल करें क्योंकि उनको तो अब सैफई का बच्चा बच्चा भी पहचान चुका है।

‘बीइंग ह्यूमन’ वाले सलमान ने जब ‘पांडेय जी सीटी बजावें’ पर अपने ही अंदाज में जोरदार नृत्य किया तो अखबार वाले न जाने क्यों आईजी, पांडे जी की फोटो छापते हैं जिनको की दिखाया गया है की वो सीएम के चरणों में बैठे हैं जबकी सबको पता है की पाण्डेय जी प्रदेश के बहुत काबिल अफसर हैं। अरे जब मुख्यमंत्री जी बैठे हैं और अगल बगल जगह खाली नहीं है तो कोई बात करनी हो तो अफसर खुद सीएम को उठाकर तो बैठेंगे नहीं, नाहक ही समाजवाद से जलने वाले लोग एक काबिल अफसर और सीएम की जोड़ी को बदनाम कर रहे हैं। ‘राम चाहे लीला, लीला चाहे राम’ से झूमते लोगों का आनंद उस समय चरम पर पहुँच गया जब मुलायम सिंह जी की छोटी बहु खुद मंच पर पहुँच गईं और साजिद के साथ ‘नेता जी को दिल्ली पहुंचाना है’ गाने लगीं। ये नया समाजवादी गाना इसी मंच पर लांच किया गया, इस गाने के दौरान खुद सीएम साहब और उनके भाई प्रतीक भी मंच पर पहुँच गए। आप लोगों को भी नाहक आलोचना करने की जगह समाजवाद की जय बोलनी चाहिए और साम्प्रदायिकता के नाश का संकल्प लेना चाहिए। जिस गाने के साथ महान समाजवादी महोत्सव का समापन हुआ उसे एक बार तो सुर में गाकर देखिये और ऑंखें बंद करके सोचिएगा — नेता जी को दिल्ली पहुँचाना है।


शनिवार, 11 जनवरी 2014

काश मोदी जी ने भी जनता अदालत का ढिढोरा पिटा होता

काश मोदी जी ने भी जनता अदालत का ढिढोरा पिटा होता ... 

अरे मीडिया के बावलों ... पिछले सात सालो से गुजरात के मुख्यमंत्री ने एक सिस्टम बनाया है जिसे "स्वागत" State Wide Attention on Grievances by Application of Technology कहते है ..

लोगो की शिकायत सुनने और उसको दूर करने के विश्व के अपने तरह के अनूठे इस सिस्टम को यूनाईटेड नेशन का बेस्ट पब्लीक सर्विस एवार्ड मिल चूका है .. और इस सिस्टम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए अब तक केरल, यूपी तो दूर विश्व के बीस देशो के प्रतिनिधि आ चुके है |

इसमें कोई भी पोस्ट से "स्वागत सेल" मुख्यमंत्री कार्यालय लिखकर या http://swagat.gujarat.gov.in/ पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है | तुरंत ही एक शिकायत नम्बर मिलता है और उस नम्बर को आप इस साईट पर डालकर अपनी शिकायत का स्टेट्स भी जान सकते है |

मुख्यमंत्री कार्यालय में इसके लिए अस्सी लोगो का स्टाफ है जो शिकायतों पर त्वरित कारवाही करता है और कुछ केसों में नरेद्र मोदी से विडिओ कान्फ्रेंस से बात भी करवाया जाता है .. हर महीने के चौथे गुरुवार को मोदी जी पुरे १० घंटे तक विडिओ कान्फ्रेंस से हर जिले के जिलाधिकारी से इन शिकायतों के बारे में जानकारी लेते है .. और हर शिकायत करता चौथे गुरुवार को जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में हाजिर होकर सीधे मुख्यमंत्री से बात कर सकता है |

अब तक स्वागत सेल में कुल 2,80,754 शिकायते आई है जिसमे से 90.44% शिकायते दूर की जा सकती है ... सिर्फ जमीन के झगड़े वाले केस जो अदालत के विचाराधीन है उनको ही दूर नही किया जा सका है क्योकि उनपर अदालत को निर्णय लेना है ...

मीडिया वालो ... गुजरात में आकर किसी नाली को दिखाकर कहते हो की क्या ये है विकास .. कभी इन सब बातो को भी तो दिखाओ ... क्या करोगो मीडिया वालो ..दोष तुम्हारा नही है ..तुम्हारी प्रकृति का है क्योकि कौए और कुत्ते और सूअर हमेशा गंदगी में ही मुंह मारते है |अरे मीडिया के बावलों ... पिछले सात सालो से गुजरात के मुख्यमंत्री ने एक सिस्टम बनाया है जिसे "स्वागत" State Wide Attention on Grievances by Application of Technology कहते है ..
लोगो की शिकायत सुनने और उसको दूर करने के विश्व के अपने तरह के अनूठे इस सिस्टम को यूनाईटेड नेशन का बेस्ट पब्लीक सर्विस एवार्ड मिल चूका है .. और इस सिस्टम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए अब तक केरल, यूपी तो दूर विश्व के बीस देशो के प्रतिनिधि आ चुके है |

इसमें कोई भी पोस्ट से "स्वागत सेल" मुख्यमंत्री कार्यालय लिखकर या http://swagat.gujarat.gov.in/ पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है | तुरंत ही एक शिकायत नम्बर मिलता है और उस नम्बर को आप इस साईट पर डालकर अपनी शिकायत का स्टेट्स भी जान सकते है |

मुख्यमंत्री कार्यालय में इसके लिए अस्सी लोगो का स्टाफ है जो शिकायतों पर त्वरित कारवाही करता है और कुछ केसों में नरेद्र मोदी से विडिओ कान्फ्रेंस से बात भी करवाया जाता है .. हर महीने के चौथे गुरुवार को मोदी जी पुरे १० घंटे तक विडिओ कान्फ्रेंस से हर जिले के जिलाधिकारी से इन शिकायतों के बारे में जानकारी लेते है .. और हर शिकायत करता चौथे गुरुवार को जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में हाजिर होकर सीधे मुख्यमंत्री से बात कर सकता है |

अब तक स्वागत सेल में कुल 2,80,754 शिकायते आई है जिसमे से 90.44% शिकायते दूर की जा सकती है ... सिर्फ जमीन के झगड़े वाले केस जो अदालत के विचाराधीन है उनको ही दूर नही किया जा सका है क्योकि उनपर अदालत को निर्णय लेना है ...

मीडिया वालो ... गुजरात में आकर किसी नाली को दिखाकर कहते हो की क्या ये है विकास .. कभी इन सब बातो को भी तो दिखाओ ... क्या करोगो मीडिया वालो ..दोष तुम्हारा नही है ..तुम्हारी प्रकृति का है क्योकि कौए और कुत्ते और सूअर हमेशा गंदगी में ही मुंह मारते है |
By --JItendra Pratap singh ji