शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

! मोहम्मद हाशमी मियां द्वारा इस्लाम एवं शांति का संदेश !


"यह बात बिल्कुल सत्य है कि भारत का कोई भी मुसलमान बाबर की संतान नहीं है। न हम बाबर और अकबर की संतान हैं और न शाहजहां, हुमायूं की। हम संतान हैं, ख्वाजा गरीब नवाज की, फकीरों की, दरवेशों की और सूफी संतों की। उन्होंने हमें आगे बढ़ाया और हमारी आत्मा की शुद्धि की।" यह कहना है प्रसिद्ध इस्लामिक विचारक गाजी-ए-मिल्लत हजरत सैयद शाह मोहम्मद हाशमी मियां का। वे गत दिनों रायपुर (छ.ग.) के शहीद स्मारक भवन में छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद सलीम अशफर् की ओर से आयोजित अल्पसंख्यक विकास सम्मेलन एवं स्वागत समारोह को संबोधित कर रहे थे। मोहम्मद हाशमी मियां अब तक अमरीका, इंग्लैंड, कनाडा, बंगलादेश, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर इस्लाम एवं शांति का संदेश पहुंचा चुके हैं । सम्मेलन में लगभग एक घंटे तक चले उद्बोधन में उन्होंने आध्यात्मिकता, आतंकवाद, समरसता, हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द आदि अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।
मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि अगर किसी को बाबर की संतान देखने का शौक हो तो वे काबुल जाएं, शायद कुछ बची हुई बाबर की संतानें वहां मिल जाएं। उन्होंने कहा कि भारत में अनेक लोग आए, जहीर-उद-दीन बाबर भी उनमें से एक था। यहां ख्वाजा गरीब नवाज हजरत मोइनुद्दीन चिश्ती भी आए। लेकिन दोनों के आने का उद्देश्य अलग-अलग था। बाबर यहां जमीन के लिए आया, सत्ताधारी बनने के लिए आया, दिल्ली पर कब्जा करने के लिए आया। कुल मिलाकर वह यहां अपना राज्य स्थापित करने के लिए आया। एक शब्द में कहा जाए तो बाबर यहां जमीन के लिए आया। उन्होंने कहा कि बेशक भारत की धरती पर मुसलमान बाहर से आया, वह जमीन के लिए भी आया, लेकिन यह भी सच है कि बाहर से आने वाले मुसलमान दीन (अध्यात्म) के लिए भी भारत आए। जो दीन के लिए यहां आए, वो दीन का प्रतिनिधित्व करेंगे और जो जमीन के लिए आए वो जमीन का। तो जहीर-उद-दीन बाबर जमीन का बच्चा है और ख्वाजा मोइनुद्दीन दीन का बादशाह है। इसलिए हमारी पहचान बाबर नहीं, ख्वाजा गरीब नवाज हैं, उनकी आध्यात्मिक शक्ति और विचारधारा है।
आतंकवाद पर बोलते हुए मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि आतंकवाद 70 वर्ष से दुनिया के मानचित्र पर दिखाई दे रहा है। 70 साल पहले दुनिया में आतंकवाद नहीं था, स्वतंत्रता संग्राम था। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हिन्दू, इस्लाम, यहूदी, बौद्ध आदि मत-पंथ 70 वर्ष से हैं? इन 70 वर्ष में फैले आतंकवाद के जनक केवल दो ही देश हैं। पहला इजराइल और दूसरा सऊदी अरब। इजराइल बना तो गैर मुस्लिमों में आतंकवाद फैला और सऊदी अरब बना तो आतंकवाद मुस्लिमों में फैल रहा है। आज इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सऊदी अरब के उदय से पहले दुनिया में आतंकवाद नहीं था। सऊदी अरब बना तो 350 मस्जिदें तोड़ दी गर्इं। 60 हजार से अधिक मजारों को निशाना बनाया गया। यहां तक कि मक्का मदीना में पैगम्बर मोहम्मद की बीबी, बेटी, दामाद, पिता आदि की मजार पर बुलडोजर चला दिया गया। उन्होंने कहा कि इसी देश के कुछ लोगों के धन द्वारा ही पूरे विश्व में वहाबी आंदोलन चलाया जा रहा है। हमें यह समझना चाहिए कि इन लोगों के धन के बल पर जो आंदोलन चलेगा उसका भविष्य कितना खतरनाक होगा। यही आतंकवाद की जड़ है।
सऊदी अरब द्वारा भारत के मुसलमानों को बहकाए जाने के संदर्भ में बोलते हुए मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि सऊदी अरब ने भारत के मुसलमानों की मजहब के प्रति आस्था को देखकर उनकी तबलीगी जमात बना दी। जो नमाज करते हैं उनसे कहा नमाजी बन जाओ, अजान सीख लो। जो कुछ पढ़े-लिखे हैं, उनके लिए जमात-ए-इस्लामी बना दी। जिनके मन में राजनीतिक इच्छा है, उनके लिए जमीत-उल-अलमा-ए-हिन्द बना दी। उनका हर क्षेत्र में कोई न कोई व्यक्ति है। वे सुन्नी समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर अपने कैम्पों में ले जाते हैं और देखते हैं कि कौन-कौन लड़ाकू हैं। उन्हें वे हिजबुल मुजाहिद्दीन, अलकायदा आदि संगठनों में भेज देते हैं। इस तरह जो इन संगठनों में चला जाता है, वह आतंकवादी बन जाता है। परन्तु इनके सम्पर्क में आया हर मुसलमान इन संगठनों में नहीं जाता। उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि क्यों न उस गंदे तालाब को ही घेर लिया जाए, जहां से आतंकवाद की "सप्लाई" है। उन्होंने कहा कि इजराइल हो या सऊदी अरब दोनों अमरीका के हाथ हैं। अपने लड़ाकों के जरिए ही अमरीका ने रूस को हटाया। अब उसे भारत खटक रहा है। उन्होंने कहा कि भारत गरीबों का देश है, लेकिन भारत अमीरों से डरेगा नहीं। अमरीका को पता होना चाहिए कि अमरीका में अमीरों को बचाने के लिए कोई अमीर नवाज नहीं है, लेकिन भारत में गरीबों को बचाने के लिए गरीब नवाज है। भारत की पवित्र धरती पर उनके अपवित्र कदम आ तो सकते हैं, लेकिन ठहर नहीं सकते।
किसी मत-पंथ विशेष को आतंकवाद से जोड़ने के संबंध में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवाद का न तो कोई धर्म होता है और न मजहब, इसलिए आतंकवाद को अगर "हिन्दू आतंकवाद" कहा गया तो मुट्ठीभर आतंकवादी 80 करोड़ हिन्दुओं में गुम हो जाएंगे, मुस्लिम आतंकवाद कहा तो 20 करोड़ में और हिन्दुस्तानी आतंकवाद कहा तो 100 करोड़ में। इसलिए आतंकवादियों को अलग करो, उन्हें चिह्नित करो और इस बात की जांच करो कि आखिर क्या बात है कि जो आतंकवादी दिल्ली, मुम्बई, छत्तीसगढ़, आजमगढ़ आदि में पकड़े जाते हैं, वे अधिकतर एक ही मजहब विशेष के क्यों होते हैं। सरकार को वोट की राजनीति बंद कर उस मजहब का नाम बताना चाहिए। क्योंकि देश की एकता और अखण्डता सर्वोपरि है।
गोहत्या के संबंध में मुसलमानों से अपील करते हुए मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि खुदा (भगवान) ने सब के सब फल, सब्जियां खाने के लिए जायज ठहराए हैं, लेकिन सब जानवर नहीं। यानी स्वास्थ्य के लिए जो ठीक है, वह सब जायज है। उन्होंने कहा कि जब हमारे हिन्दू भाइयों को गोहत्या से दुख होता है तो हम अपने पड़ोसी के लिए अपना खाना क्यों नहीं बदल सकते। वह खाना खाओ जो तुम्हारा स्वास्थ बढ़ाए, साथ ही पड़ोसी धर्म को भी मजबूती दे।
अयोध्या मंदिर मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं, मंदिर-मस्जिद का मसला गर्माने लगता है। पता नहीं किन रास्तों से गुजरकर यह इतना जटिल हो गया, किन राजनीति के बखेड़ों में फंसकर यह सुलझने वाला मसला भी उलझने लगा। मस्जिद के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इस्लाम का मस्जिद के बारे में बड़ा व्यापक दृष्टिकोण है। पूरी दुनिया एक मस्जिद है। यह इसलिए कहा गया कि नमाज छोड़ी न जा सके। मस्जिद किसी ढांचे का नाम नहीं है। मस्जिद सजदा (पूजा-पाठ) की जगह है और सजदा की जगह धरती है। इसलिए धरती ही मस्जिद की जगह है। किसी भी मस्जिद को तब तक मस्जिद नहीं कहा जा सकता, जब तक कि उस जमीन का मालिक उसे मस्जिद बनाने के लिए दान न कर दे। कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जो सुलझ न सके। मन की सफाई के साथ बैठेंगे तो हर समस्या का समाधान हो सकता है।
मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि हिन्दू और मुसलमान में जो क्रोध, घृणा और अंधविश्वास है। उसका कारण अशिक्षा के अंधकार में रहना है। ज्ञान हासिल करना हर मुसलमान-पुरुष और स्त्री का काम है। वो (ईश्वर) तो कहता है कि सबको ज्ञान सिखाओ, वहीं फतवा दिया जा रहा है कि औरतों को घर से मत निकलने दो। लेकिन जिनका सारा उलूम बंद है, उनको कोई बात समझ ही नहीं आती। बहुत ऊंचे स्वर में उन्होंने कहा कि कोई भी बड़े से बड़ा मुफ्ती-मौलाना, कुरान और हदीस का जानकार, दारूल इफ्ता का जानकार, अगर समय की आवश्यकताओं को नहीं समझता तो वह जाहिल है और जाहिल व्यक्ति को कोई भी बात कहने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर हम अच्छे बन जाएंगे तो हमारा क्या बिगड़ जाएगा। हम खुद अच्छे बनें, अपने परिवार को अच्छा बनाएं। साथ ही अपने पड़ोसी और देश को भी अच्छा बनाएं।
      मोहम्मद हाशमी मियां ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्तियां इस बात को ढूंढने में लगी हैं कि सृष्टि में क्या-क्या हमारे लिए है। पहले लोग साधारण और सरल जीवन गुजारते थे। जो जमीन पर मिलता था उसी में ढूंढ लिया कि इसमें मेरे लिए क्या है, लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ा तो जिज्ञासा भी बढ़ गई कि जमीन के अंदर मेरे लिए क्या-क्या है। वरना पहले जितना तालाब में पानी होता था, उतनी ही जनसंख्या होती थी। मीठी नदी में जितना जल होता था, वो हमारे इस्तेमाल से अधिक होता था। हम जनसंख्या तो बढ़ाते गए लेकिन इस बात का ध्यान नहीं दिया कि जरूरत पूरी हो जाए तो संतोष हो जाना चाहिए। हमारी इच्छाएं बढ़ती गर्इं, आकांक्षाएं बढ़ती गर्इं और हम यह पता लगाने लगे कि जमीन के नीचे क्या-क्या हमारे लिए है । ये वनस्पति, पहाड़, जंगल, फूल, गंगा, यमुना, पशु-पक्षी आदि हमारे लिए हैं । इस पर पूरी किताब लिखते चले जाओ, लेकिन इस बात पर कोई सोचने के लिए तैयार नहीं है कि तुम किसके लिए हो।