शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

।। वीर बलिदानियों को भूल गई सरकार ।।

 कुछ घंटे पहले हमने अपनी आजादी की 67 वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई। इस मौके पर देश ने अपने महान सपूतों और वीरांगनाओं को याद किया। लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत पर अंग्रेजों के कब्जे से कई शताब्दियों पहले ही विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत (तब अपना देश कई रियासतों में बंटा हुआ था) की जमीन को नापाक करने की कोशिश की थी ? सबसे पहले 1001 ईसवी में मध्य पूर्व एशियाई लुटेरे महमूद गजनवी ने भारत के बड़े हिस्से में लूटमार की शुरुआत की थी। उसने जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन भी कराए। गजनवी को भारत में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा था। गजनवी ने ही सोमनाथ मंदिर को 'अपवित्र' किया था। गजनवी ने 17 बार भारत पर हमला किया था। गजनवी के जाने के करीब डेढ़ सौ साल बाद अफगानिस्तान के " घोर " के रहने वाले आक्रांता मोहम्मद गोरी ने हिंदुस्तान पर नजर टेढ़ी की थी। उसने भी इस्लाम के विस्तार के नाम पर भारत के पश्चिम उत्तर में अत्याचार और लूटमार की थी। लेकिन भारत के एक वीर सपूत ने उसके दांत खट्टे कर दिए थे और पहली जंग में उसे बुरी तरह हरा दिया था। 
पृथ्वी राज चौहान समाधि (मजार)
        

            अफगानिस्तान के घोर के रहने वाले शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी को तब के हिंदुस्तान पर हमले की पहली कोशिश में कामयाबी मिली थी। तब उसने मुल्तान के मुस्लिम शासक को हराकर मुल्तान पर कब्जा कर लिया था। लेकिन जब उसने गुजरात की ओर रुख किया तो उसे हार का सामना करना पड़ा। गुजरात के कायदरा में भीमदेव सोलंकी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन गोरी ने यहीं हार नहीं मानी। उसने करीब 23 साल बाद 1191 खैबर दर्रे को पार करते हुए भारत की ओर रुख किया था। उसने भठिंडा के किले पर कब्जा कर लिया। तब भठिंडा पृथ्वी राज चौहान की रियासत का हिस्सा था। गोरी ने बठिंडा के किले को काजी जियाउद्दीन को सौंपकर वापस जाने का फैसला किया था। लेकिन तभी उसे सूचना मिली की पृथ्वी राज चौहान की सेना किले को दोबारा हासिल करने के लिए आ रही है। दोनों के बीच तराइन (आज के हरियाणा के थानेसर से 14 मील दूर) के मैदान में जंग हुई। जंग में गोरी को बुरी तरह से मात खानी पड़ी। गोरी को गिरफ्तार कर लिया गया। गोरी ने माफी मांगते हुए आज़ाद किए जाने की मांग की। पृथ्वी राज के सलाहकार गोरी को छोड़ने के खिलाफ थे। लेकिन पृथ्वी ने दया दिखाते हुए गोरी को छोड़ दिया। मोहम्मद गोरी पर दया दिखाना पृथ्वी राज पर भारी पड़ा। उसने एक साल बाद 1192 ईसवी में करीब 1 लाख 20 हजार दासों (मामलूक) की फौज खड़ी कर पृथ्वी राज के राज्य पर फिर हमला किया। तराइन के मैदान में हुई दूसरी लड़ाई में पृथ्वी राज को हार का मुंह देखना पड़ा। गोरी पृथ्वी राज को गिरफ्तार कर अपने साथ अफगानिस्तान के गजनी इलाके में ले गया। लौटने से पहले मोहम्मद गोरी ने दिल्ली के तख्त पर कुतुबउद्दीन एबक को बैठा दिया और उसे सुल्तान घोषित कर दिया। पृथ्वी राज की हार भारत के मुख्य हिस्से पर इस्लामिक शासन की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है। कई मायनों में यह ऐतिहासिक घटना थी। मोहम्मद गोरी के बारे में इतिहासकार कहते हैं कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के झेलम जिले में एक विद्रोह को कुचलने के दौरान उसकी हत्या कर दी गई थी। लेकिन पृथ्वी राज के दरबारी कवि चंद्र बरदाई के काव्य पृथ्वी राज रासो के मुताबिक पृथ्वी राज ने मोहम्मद गोरी की हत्या कर अपनी हार का बदला ले लिया था। इसी हार का बदला लेने के लिए पृथ्वी राज की समाधि को पैरों से ठोकर मारकर  गोरी की हत्या का बदला ले रहे हैं । अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी इलाके में आज भी पृथ्वी राज की समाधि मौजूद है। गोरी की मजार के गजनी शहर में हैं । 'आर्म्स एंड आर्मर: ट्रेडिशनल वेपंस ऑफ इंडिया' नाम की किताब लिखने वाले ई जयवंत पॉल के मुताबिक अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी इलाके में मौजूद पृथ्वी राज की समाधि आज बहुत ही बुरी हालत में है। गोरी की मौत के 900 साल बाद भी अफगानिस्तानी और पाकिस्तानी उसे अपना 'हीरो' मानते हैं ।  ये लोग गोरी की मौत का बदला लेने के लिए अपना गुस्सा पृथ्वी राज की समाधि पर निकालते हैं । पॉल की किताब के मुताबिक पृथ्वी राज की मजार के ऊपर एक लंबी मोटी रस्सी लटकी हुई है। कंधे की ऊंचाई पर इस रस्सी में गांठ लगी हुई है। स्थानीय लोग रस्सी की गांठ को एक हाथ में पकड़कर मजार के बीचोबीच अपने पैर से ठोकर मारते हैं और पृथ्वी राज चौहान का अपमान करते है  ।

        जबकि हम आज  भी इन सुवरो के नाम को बड़े सम्मान  के साथ लेते है इन्हें महान  बनाते है , इनके  नाम पर रोड का नाम रखते है
। इन सुवरो  के नाम पर कुछ कालोनिया  बसाते है 

        खैर हमारी सरकार जब १९४७ के और १८५७ के स्वतंत्रता सेनानियों को भूल गई है देश के वीर शीद सिपाहियों को उचित सम्मान नहीं मिलता तो सरकार पृथ्वी राज चौहान और महाराणा प्रताप ,  शिवाजी  जैसे को क्या याद करेगी इस सरकार को तो ओ लोग ज्यादा याद आते है जो इन्हें सत्ता की सीढ़ी तक पहुचाते है
 
पृथ्वी राज चौहान समाधि (मजार) से मिटटी उठाते राणा शेर सिंह

    एक भारतीय शेर शमशेर सिंह राणा ने 2005 में यह दावा कर सनसनी फैला दी थी कि उसने अफगानिस्तान में मौजूद पृथ्वी राज चौहान  की समाधि से मिट्टी लेकर लौटा है । राणा के मुताबिक उसने ऐसा कर भारत का सम्मान वापस लौटाया है । 

        मैं इस ब्लॉग के माध्यम से सभी साथियों  से अपील करते है की भारत सरकार  पृथ्वी राज चौहान की मजार को खोद कर सम्मान के साथ भारत  लाये  और पृथ्वी राज चौहान का समाधि  स्थल बनाए