शुक्रवार, 17 मई 2013

!! चमचो ,चाटुकारों और चापलूसों से सावधान !!

मैं आपको एक कहानी सुनता हु " चापलूस मंडली " की ...यह कहानी खासकर उन लोगो के लिए है जो अपनी निजी जिंदगी में चापलुशो से घिरे रहते है ,यहाँ तक की सोसल नेट्वर्किं साइटों में भी चपलुश मंडली सक्रीय है .ये " चापलूस मंडली " आपका जैकारा लगाएगी  आपके के नाम पर जैकारा लगाएगी .." जय  हो राजा साहब की ,जय हो पंडित जी की "  आदि कई प्रकार से सब्दो का प्रयोग करेगे आपको खुस करने के लिए ! चापलूस, चाटुकार या चमचे ऐसे प्राणी होते हैं जिनके लिए हिन्दी में एक लोकोक्ति बड़ा सटीक है – ‘जिहि की खाई, तिहि की गाई" (हलाकि सोसल नेट्वर्किंग साइटों में कोई किसी का दिया हुआ नहीं खाता है ,पर स्वार्थ यहाँ भी है )
और हमारा मानव स्वभाव है, जैसा मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘We despise no source that can pay us a pleasing attention.’ अर्थात्‌ हम ऐसे किसी स्रोत से घृणा नहीं करते जो हम पर सुखद ध्यान दे सकता है। लोग समझते हैं वह तो हमारी सेवा कर रहा है, और उसे अपने आस-पास रखे रहते हैं। 


      पर अगर महात्मा गांधी के शब्दों में कहा जाए तो – ‘ख़ुशामद और शुद्ध सेवा में उतना अन्तर है जो झूठ और सच में है।’
     लौहपुरुष सरदार पटेल ने कहा था, ‘इस दुनिया में सत्ता के पीछे लगा हुआ सबसे बड़ा रोग कोई हो सकता है, तो वह ख़ुशामद है।’
    
एक कहानी कहीं पढी थी। प्रसंगवश उसे कहता चलूं। 

 
 जंगल में एक शेर रहता था। उसके चार सेवक थे चील, भेडिया, लोमडी और चीता। चील दूर-दूर तक उडकर समाचार लाती। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। लोमडी शेर की सैक्रेटरी थी। भेडिया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था। इस काम में चारों माहिर थे। इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें चापलूस मंडली कहकर पुकारते थे। शेर शिकार करता। जितना खा सकता वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड जाया करता था। उससे मजे में चारों का पेट भर जाता। एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी 'भाईयो! सडक के किनारे एक ऊंट बैठा हैं।'
              
                 भेडिया चौंका 'ऊंट! किसी काफिले से बिछुड गया होगा।'
चीते ने जीभ चटकाई 'हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उडा सकते हैं।' लोमडी ने घोषणा की 'यह मेरा काम रहा।' लोमडी शेर राजा के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली 'महाराज, दूत ने खबर दी हैं कि एक ऊंट सडक किनारे बैठा हैं। मैंने सुना हैं कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता हैं। बिल्कुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?'


      शेर लोमडी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमज़ोर-सा ऊंट सडक किनारे निढाल बैठा था। उसकी आंखें पीली पड चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा 'क्यों भाई तुम्हारी यह हालात कैसे हुई?'
ऊंट कराहता हुआ बोला 'जंगल के राजा! आपको नहीं पता इंसान कितना निर्दयी होता हैं। मैं एक ऊंटों के काफिले में एक व्यापार माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड गया। माल ढोने लायक़ नहीं रहा तो उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।'
      
                  ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। अचानक उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की जोरदार इच्छा हुई। शेर ने कहा 'ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा। मैं तुम्हें अभय देता हूं। तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।'
चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए। भेडिया फुसफुसाया 'ठीक हैं। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे। फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई हैं।'
          इस प्रकार ऊंट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आराम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर राजा के प्रति वह ऊंट बहुत कॄतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊंट का निस्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगडा होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी। वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता।

एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं।
शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता ? कई दिन न शेर ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं ? लोमडी बोली 'हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊंट हैं और हम भूखे मर रहे हैं।'
चीते ने ठंडी सांस भरी 'क्या करें ? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा हैं। देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड कितना बडा हो गया हैं। चर्बी ही चर्बी भरी हैं इसमें।' भेडिए के मुंह से लार टपकने लगी 'ऊंट को मरवाने का यही मौक़ा हैं दिमाग लडाकर कोई तरकीब सोचो।'


लोमडी ने धूर्त स्वर में सूचना दी 'तरकीब तो मैंने सोच रखी हैं। हमें एक नाटक करना पडेगा।'
सब लोमडी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोली 'महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।'
लोमडी ने उसे धक्का दिया 'चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह जाएगा। महाराज, आप मुझे खाइए।' भेडिया बीच में कूदा 'तेरे शरीर में बालों के सिवा हैं ही क्या? महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएंगे।' अब चीता बोला 'नहीं! भेडिए का मांस खाने लायक़ नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।'
    चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊंट को तो कहना ही पडा 'नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ हैं। मेरे रहते आप भूखों मरें, यह नहीं होगा।' चापलूस मंडली तो यहीं चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले 'यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट खुद ही कह रहा है। चीता बोला 'महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार दें ?  चीता व भेडिया एक साथ ऊंट पर टूट पडे और ऊंट मारा गया।    (कहानी गूगल से साभार   )



       हमें सभ्यता, शिष्टाचार और ख़ुशामद में फ़र्क़ करने की आदत डालनी चाहिए। सरदार पटेल ने कहा था, ‘जिन्हें ख़ुशामद प्रिय होती है, उन्हें सच्ची बात मीठी भाषा में कही जाय तो भी कड़वी लगती है।’
!! चमचो ,चाटुकारों और चापलूसों से सावधान !!
जिन्हें ख़ुशामद पसंद है ऐसे लोगों के लिए तो यही कहा जा सकता है कि
बार पचै माछी पचै पाथर हू पचि जाय  
जाहि ख़ुशामद पचि गई ताते कछु न बसाय  

 जार्ज चैपमैन की बायरन्स कांस्पिरेसी में कही बात ध्यान में रखें कि ‘Flatterers look like friends as wolves like dogs.’ अर्थात्‌ जैसे भेड़िये,  कुत्तों जैसे लगते हैं, वैसे ही चापलूस लोग मित्रों जैसे लगते हैं
चापलूसी न सिर्फ़ दिखावटी मित्रता के समान है बल्कि अत्यंत निकृष्ट प्रकार का शत्रु है । इस तरह के सत्रु आपके उअप्र तब वार करते है जब ये आपके पास से आपके विस्वश्नीय मित्रो को दूर करके कमजोर  कर देते है 
            अतः दोस्तों आप अपने निजी जीवन में चाटुकारों और चापलुशो   से सावधान रहे  

नोट-- ये सब लिखने की प्रेरणा मुझे एक " महान चाटुकार " से मिली है
मैं उस चाटुकार का दिल से आभारी हु

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