गुरुवार, 10 जनवरी 2013

|| चक्रम जासूस जैसे रँगे सियार है FB में ||

आज हम सभी सोसल नेटवर्किंग के माध्यम से समाज में कुछ बदलाव लाने के लिए प्रयासरत है पर इस FB में बहुत से बहुरुपये है ..जिनका खुद का तो कोई नाम पता नहीं है और ओ दुसरो को सलाह देते घुमते  है ,प्रमाण पत्र वितिरित करते घूम रहे है ..उन्ही में से है एक चक्रम जासूस (किसी सियार ,गीदड़ ,धूर्त ,डरपोक ,नपुंसक  आदि आदि ........)
 आज  प्रकृति ने हम इंसानों को अलग तरह से विकसित किया है... सिर्फ हमें यानी इंसानों को ही नहीं, हर जीव-जंतु और प्रकृति में मौजूद हर चीज को एक अलग शख्सियत मिली है...इसलिए जो हम हैं, उससे अलग या किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु जैसा हो पाना मुमकिन नहीं है.. पर एक चीज है ओढ़ना.. जब हमारा कोई मतलब होता है, तो हम वह चेहरा ओढ़ लेते हैं... वही रूप धर लेते हैं, जिसकी किसी खास वक्त में जरूरत होती है.. जैसे किसी बीहड़ जंगल में हिंसक पशुओं के हमले से बचने के लिए कोई शेर की तरह का चेहरा-मोहरा बना ले.. जाहिर है, शेर की खाल ओढ़ने से हम शेर नहीं हो जाते, पर इससे शायद हम शेर या दूसरे हिंसक जीव को चकमा दे पाएँ...जैसा की ये महाशय चक्रम जासूस चकमा देने की नाकाम कोशिश कर रहे है फिर भी दूसरे की खाल ओढ़ने की इस क्रिया में नकारात्मक भाव है....रंगा सियार या भगवा वस्त्रधारी डाकू अंतत: कपटी ही माना जाता है...जैसे ये है चक्रम जासूस ये कोई मेरे नजदीकी है जो आज इस रूप में दिखाई दे रहे है ..क्योकि मैंने इन्हें आज तक कभी भी अपमानित नहीं किया फिर मेरे पीछे क्यों पड़े है ..मतलब साफ़ साफ़ है ये मेरे साथ बदले की भावना से कराय कर रहे है ..ये कोई कायर डरपोक है जो इस तरह से अपने आप को "जासूस " कहते है ........हा हा हा हा अह .......जबकि हकीकत ये है की ये तो एक चूहे के बराबर भी दिल नहीं रखते है ..जासूस के नाम पर कलंक है ! मैं इनके दुःख को समझता हु क्योकि दूसरे के दुख हम तब तक अनुभव नहीं कर सकते, जब तक खुद वैसा होकर नहीं देखते...दूसरे का जूता कहाँ काट रहा है, इसे जानने के लिए दूसरे के जूते में पाँव डाल कर देखना ही होता है... शेर को दूसरे जानवर प्यार से नहीं देखते, यह शेर की खाल ओढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है.....मुझे ओअत है की इन्हें दुःख कहा से हुआ है और क्यों हुआ है ये कौन है मैं ये भी जनता हु .दुनियाभर में धूर्त और चालाक व्यक्ति के संदर्भ में जिस इकलौते पशु को सर्वाधिक प्रतीक माना गया है वह है सियार..! चक्रम जासूस जैसे .... सियार शब्द का मूल संस्कृत का शृगाल: या शृकाल: है.. इसका अर्थ है उचक्का, धूर्त, ठग, डरपोक और दुष्ट प्रकृति का...सियार बहुत तेज भाग भी सकता है इसी लिए शृगाल: के पीछे कुछ विद्वानों को संस्कृत की ‘सृ’ धातु भी नजर आती है जिसका मतलब ही है बहुत तेज भागना या चलना.... .इसका अगला पड़ाव बनी अंग्रेजी जहां एक नए रूप जैकाल बन कर यह सामने आया..खास बात यह कि सभी भाषाओं में इसकी शोहरत चालाक-धूर्त प्राणी की है...जो इस तरह से रूप बदल -बदल कर आते है चक्रम जासूस जैसे हम लोगो के बीच में ...इस तरह के रंगे सियार ...स्वभाव से डरपोक ,कायर ,बुजदिल ,ओआ जाने क्या के है .बहुत से नाम है इनके .

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