गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

!!केजरीवाल जी द्ववारा बीजेपी अध्यक्ष गडकरी जी पर लागाये गए आरोप और उसकी सचाई पर एक नजर !!

-भाइयो, पिछले 15 दिनों से इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग एक बात बोल रहे थे की वे लोग विपक्ष के किसी बड़े नेता का भांडाफोड़ करेंगे | लेकिन लगता है भांडाफोड़ करते करते शायद उनकी खुद की पोल खुल गयी | IAC सदस्य अंजलि दमानिया की बहुप्रतीक्षिhttp://www.bhaskar.com/article/NAT-farmer-named-by-iac-missing-wife-living-in-fear-3940379-NOR.html?HT2=त इस भांडाफोड़ से किसीको क्या मिला शायद अरविन्द केजरीवाल ही ज्यादा अच्छे से बता सकते हैं |
भाइयों आईये पॉइंट बाय पॉइंट कल के घटनाक्रम के वारे में कुछ बात करते हैं |
अरविन्द केजरीवाल का कहना था अपने पद का दुरूपयोग करके नितिन गडकरी जी ने 100 एकर जमीन हथियाली है | अरे भाई काहेका पद का दुरूपयोग | आप जिस जमीन के बारे में बात कर रहे हो वो जमीन आखिर है कहा पहले ये तो जानलो | 1982 में तत्कालीन महारास्ट्र सरकार ने एक सिंचाई परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण किया | और उस अधिग्रहण का मुआबजा 1987 में किसानो को दे दिया गया | अरविन्द केजरीवाल का कहना है महारास्ट्र सरकार ने नितिन गडकरी को फायदा पहुचाने के लिए जानबूझ कर जरुरत से ज्यादा जमीन अधिग्रहण की है | जरा याद करो भाइयों भारतीय जनता पार्टी की प्रतिस्ठा 1980 को हुई थी और तब न बीजेपी देश का प्रमुख विपक्षी दल था और न तब नितिन गडकरी की कोई ऐसी हसियत थी की उनके लिए कोई पॉवर का मिसयूज करे | अपने सब से पहले पॉइंट में ही ये मार खा गए | ये जमीन 2005 को एक cheritable trust को मिला जिसके मुखिया नितिन गडकरी नहीं हैं | और आप लोगो को याद होगा 2009 को नितिन गडकरी बीजेपी के रास्ट्रीय अध्यक्ष बने न की 2005 में. तो ये कहना सरासर गलत हुआ की नितिन जी अपने ओहदे का फायदा लिया | आते हैं दुसरे पॉइंट पर वो ट्रस्ट ने जमीन हथियाई कैसे | वो ट्रस्ट ने सरकार को एक खुला ख़त लिखा था की जो 100 एकर जमीन खली पड़ी हुई है वो जमीन ट्रस्ट को दे दिया जाये तो वह उस पर खेती करेंगे | वो जमीन सरकार ने ट्रस्ट को मात्र 11 साल के लीज पे दी है | जिसमे खेती ही होती है | मतलब जिस मकसद से वो जमीन ली गयी थी उसी मकसद में ही उसका उपयोग हो रहा है | क्या अरविन्द केजरीवाल ये बात जानते हैं उस जमीन में गन्ने के पोधा उगाया जाता है जिसे विदर्भ के किसानो को आधे रेट में दिया जाता है | अगर कोई ट्रस्ट किसानो के हित में कोई कार्य करता है तो इसमें गुनाह क्या है | अगर सरकार से गरीब किसानो को हित में लिया हुआ कोई मदद गलत है तो जरा उन अंजनी दमानिया से ये सवाल पहले किया जाना चाहिए था वो भी तो खुद को एक किसान बताके सरकार से जमीन मांगे थे | इन्होने और एक आरोप ये लगाया की डैम का पूरा पानी नितिन जी के पॉवर प्लांट में ले लिया जाता है जबकि सच्चाई ये है की मात्र 0 .85 % पानी ही उनके प्लांट को दिया जाता है |
अरे भाई कुछ नहीं बस इनको अपना एक राजनितिक दल अभी खड़ा करना है तो इनको भी सबको दिखाना ही है न वो ही बेहतर हैं और बाकि सब चोर हैं | लेकिन वो एक बात और भूल जाते हैं जब ये जमीन हड़पने का आरोप दुसरे के ऊपर लगते हैं तब वो ये कैसे भूल जाते हैं की उन्हीके ही टीम के एक साथी प्रशांत भूसन और उनके पिता के ऊपर भी ऐसे ही कई सरे आरोप है | पहले वो प्रशांत भूसन का पर्दाफाश क्यूँ नहीं करते | ये जिस आरोप लगा रहे हैं नितिन गडकरी के ऊपर ये आरोप अगर लगाना ही था तो पहले ये लोग एनसीपी और अजित पॉवर के ऊपर आरोप लगाते | ये कहते हैं नितिन गडकरी बिज़नस मैन है | हाँ वो है एक बिज़नस मैन | क्या एक व्यापारी को राजनीति नहीं करनी चाहिए | ये कहते हैं नितिन जी एक बिल्डर है | लेकिन क्या इनको ये पता है नितिन जी घर बनाके गरीबों को नो प्रॉफिट नो लोस में घर देते हैं | मात्र 400 रुपैया पर squarfeet में. आज आप लोग जमीन और कंस्ट्रक्शन का हिसाब करके घर बनाके दिखा दीजिये तो आप कैसे बनायेंगे | अगर नितिन जी गरीबों की मदद करते हैं तो इसमें बुरे क्या है |

क्या आप लोग ये भूल गए की जब नितिन गडकरी जी महारास्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री थे तब कम समय में और कम लागत पर कई सरे ओवर ब्रिज बनाके दिखाए थे जो पुरे देस में एक मिसाल था | अगर आपको भ्रस्टाचार देखना था तो उनकी मंत्रित्व समय में वो कुछ किये थे क्या वो बताते | अरे भाई जब वो पद में रहकर कभी उसका दुरूपयोग नहीं कए तो पद के बिना क्या करेंगे |

आखिर में एक बात और कहना चाहूँगा अरविन्द केजरीवाल जी को | किसीके ऊपर कोई आरोप लगाने से पहले उस आरोप में कितना दम है वो पता कर लीजिये | नहीं तो कही ऐसा न हो की लोगो के आरोप लगाते लगाते आप हंसी के पात्र न बन जाये | आप जो हमेशा ये कहते हो हर नेता और हर पार्टी चोर है आपकी इस धरना को बदलिए | ईमानदार लोग हर पार्टी में होते हैं और कुछ बेईमान भी हर पार्टी में होते हैं | अगर आपको अभी भी लगता है की नितिन गडकरी जी ने कुछ गलत किया है तो आप सुप्रीम कोर्ट चले जाइये, महारास्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को चिठ्ठी लिखे | दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार है | उनके पास सीबीआई जैसी संस्था भी है जो उनको हमेसा मदद करती है | इनको भी बोलिए जो आरोप आप लगा रहे हो उसकी जांच करवालो | हम अभी विपक्ष में हैं सरकार में नहीं की हम जांच को प्रभावित कर सकते हैं | और एक बात याद रखियेगा आज देश में जितने भी भ्रस्टाचार उजागर हुआ है उसमे कहीं न कही बीजेपी का योगदान है | महारास्ट्र के सिंचाई घोटाला को किसी और ने नहीं बीजेपी के ही एक एम् एल ऐ ने उजागर किया | कोयला घोटाला का उजागर भी प्रकाश जावडेकर जी और मध्य प्रदेस के एक बीजेपी एम् पि ने किया | इसीलिए ये आरोप भी लगाना गलत ही है की बीजेपी भ्रस्टाचार के मामले में कुछ नहीं करती | जरा खुद के अन्दर झाकिये | कही ऐसा न हो की आपकी विस्वसनीयता ख़तम हो जाये और लोग वो आरोप को भी संजीदगी से लेना छोड़ दे जिस आरोप में कुछ दम हो कुछ सच्चाई हो | आपके इसी अदुरदर्सिता का नतीजा ही है की जो सुब्रमण्यम स्वामी हमेशा आपके साथ खड़े रहते हैं जो न्यूज़ चैनल वाले हमेशा आपको पहले जगह देते हैं किसीने भी आपकी बातों को उतना महत्वा नहीं दिया | सुब्रमण्यम स्वामी ने तो संजय निरुपम से ये भी पूछा की वो एंटी करप्शन की धरा नंबर तो बतादो जिससे नितिन गडकरी के अगेंस्ट में कोई मुकद्दमा चलाया जा सके |
वन्दे मातरम |
भारत माता की जय |

!! वाड्रा को दी सस्ती जमीन, बना विधायक !!


कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर अरविंद केजरीवाल के बाद अब इंडियन नैशनल लोकदल के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला ने हमला बोल दिया है। चौटाला के मुताबिक वाड्रा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए गुड़गांव से सटे मेवात इलाके की बेशकीमती जमीन से 2 साल में मोटा मुनाफा कमाया है। जमीन की रजिस्ट्री के मुताबिक वाड्रा ने 2009 में 28 एकड़ जमीन सिर्फ 71 लाख रुपये में खरीदी और 2011 में इसी जमीन को 2 करोड़ 15 लाख रुपये में बेच दिया। वाड्रा को जमीन बेचने वाले शख्स को विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का टिकट भी मिला।

न्यूज चैनल आईबीएन 7 के मुताबिक, दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, लेकिन 3 साल पहले सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस इलाके में काफी कम कीमत में 28 एकड़ जमीन खरीदी। वाड्रा ने यह जमीन 6 पार्टियों से करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ के भाव से खरीदी। दिलचस्प बात यह है कि 2009 में खुद राज्य सरकार ने इस इलाके में 16 लाख रुपये प्रति एकड़ स्टॉम्प ड्यूटी तय की हुई थी। लिहाजा वाड्रा ने जो जमीन करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ कीमत पर खरीदी उस पर 16 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से राज्य सरकार को स्टॉम्प ड्यूटी अदा किया। यानी जमीन की मूल कीमत से स्टॉम्प ड्यूटी 8 गुणा ज्यादा थी। अब वाड्रा का यह सौदा विपक्षी दल इंडियन नैशनल लोकदल के गले नहीं उतर रहा। इंडियन नैशनल लोकदल के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला ने वाड्रा द्वारा सस्ती दर में खरीदी गई जमीन की जांच करने की मांग की है।

विपक्ष का सवाल यह है कि सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से कम दाम में यह जमीन कैसे खरीदी और बेची गई। कहीं ऐसा तो नहीं की वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन को बाजार से कम दाम पर बेचा दिखाया गया। रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी कम्पनी मेसर्स रियल अर्थ एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के तौर पर मेवात के फिरोजपुर जिरका के शकरपुरी गांव के 6 लोगों से करीब 28 एकड़ जमीन खरीदी है। कागजात के मुताबिक वाड्रा ने रूबी तबस्सुम से 7 लाख में 2 एकड़, आनंद फुड इंडिया से करीब साढ़े आठ एकड़ जमीन 20 लाख रुपये में, मेमूना और सुभाष चंद्र से 2-2 एकड़ जमीन 7-7 लाख रुपये में और फिरदौस बेगम से सवा 11 एकड़ जमीन 24 लाख रुपये में खरीदी। यानी वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन 71 लाख रुपये में 2009 में खरीदी।

हरियाणा सरकार के कागजातों के मुताबिक 2 साल बाद यानी नवंबर 2011 में वाड्रा ने यही जमीन दिल्ली की साउथ एक्स इलाके की कंपनी हिंद इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को 7 लाख 68 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर 2,15,01,562 रुपये में बेची।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकश चौटाला के मुताबिक वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन में से 17 एकड़ जमीन कांग्रेस के नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अफताब अहमद के परिवार से खरीदी है। चौटाला का आरोप है कि इस जमीन की एवज में आफताब को नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की तरफ से टिकट दिया गया। यही नहीं विधायक के परिवार की बाकी बची जमीन को अर्बन डिवेलपमेंट प्लान में शामिल कर लिया गया। जिसकी वजह से उनकी जमीनों की कीमत कई गुणा बढ़ गईं। फिरोजपुर जिरका से चौटाला की पार्टी के विधायक नसीम अहमद के मुताबिक हुड्डा सरकार की छत्रछाया में वाड्रा और आफताब को फायदा पहुंचाया गया।http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16764066.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16807139.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16847905.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/senior-official-probing-vadra-dlf-land-deal-shunted-out/articleshow/16832209.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/chautala-accuses-rahul-gandhi-of-evading-stamp-duty/articleshow/16858418.cms

!! दिल मागे मोर !!


आज अगर हम चारो ओर देखें तो कोई भी अपनी जिंदगी से संतुष्ट दिखाई ही नहीं देगा. हमारे पास जो है वह कम ही मालूम पड़ता है. हर किसी को “और” चाहिए……… और चाहिए ...और चाहिए ...इसी धुन में लगा रहता है ... चाहे किसी प्राप्य को प्राप्त करने कि मेरी औकात नहीं होगी तो भी बस मैं उसके लिए छटपटाता रहूँगा, बस एक धुन सवार हो जाएगी कि बस कैसे भी हो मुझे यह हासिल करना है.
अरे भाई हासिल करना है, तक तो ठीक है पर यह लोभ इतना भयंकर हो जाता है कि फिर ना किसी मर्यादा कि परवाह……… जाये चाहे सारे कानून-कायदे भाड़ में. ...... और आज चारों तरफ देख लीजिये कि जो मर्यादाओं को तार - तार किये दें रहें है उन्ही की यश-गाथाएं गाई जाती है. हम सब इस लोभ के मोह में वशीभूत हुए वहशीपन कि हद तक गिर चुके है. किसी भी नैतिक प्रतिमान को तोड़ने में हमें कोई हिचक नहीं होती.
या फिर आप खड़े रहिये नैतिकता का झुनझुना लिए, कोई आपके पास फटकेगा ...
भी नहीं.
ना तो कर्म-अकर्म कि भावना रही ना उनके परिणामों कि चिंता. और चिंता होगी भी क्यों हमारे सारे सिद्धांतो को तो हम तृष्णा के पीछे भागते कभी के बिसरा चुके हैं. अहंकार आदि सभी तरीके के नशों को दूर करने वाले धर्म को ही अफीम कि गोली मानकर कामनाओं कि नदी में प्रवाहित कर चुकें है. !

यह लोभ जब तृष्णा को जन्म देता तब उसी के साथ साथ ही जीवन में ईष्र्या का भी प्रवेश हो जाता है. तृष्णा में राग की प्रचुरता होती है. द्वेष ईर्ष्या कि जड़ में दिखाई पड़ता है. आज कल जितना भी अनाचार, भ्रष्टाचार चारो तरफ देखने में मिल रहा है, वह इसी अदम्य तृष्णा या मानव मन में व्याप्त अतृप्त भूख का परिणाम है. पेट की भूख तो एक हद के बाद मिट जाती है, पर यह तृष्णा जितनी पूरी करो उतनी ही बढती जाती है.!

जब हम तृष्णाग्रस्त होतें तो हमारे मन पर ईष्र्या का आवरण पड़ जाता है. हमें “चाहिए” के अलावा कोई दूसरी चीज समझ में ही नहीं आती है. चाहिए भी येन-केन-प्रकारेण. जीवन के हर क्षेत्र में स्पर्धा ही स्पर्घा दिखाई देती है. यह स्पर्धा कब प्रतिस्पर्धा बनकर हमारे जीवन कि सुख शान्ति को लील जाती है हमें पता ही नहीं चलता है. और प्रतिस्पर्धा भी खुद के विकास कि नहीं दूसरे के अहित करने कि हो जाती है दूसरों के नुक्सान में ही हम अपना प्रगति पथ ढूंढने लगें है. खुद का विकास भूल कर आगे बढ़ने के लिए दूसरों के अहित कि सोच ही तो राक्षसी प्रवत्ति है. इस आसुरी सोच के मारे हम खुद को तुर्रम खाँ समझने लगते हैं. खुद को सर्वसमर्थ मान दूसरों के ललाट का लेखा बदलने का दु:साहस भी करने लगतें है. !

याहीं हम चूक कर बैठतें है जो क्षमता प्रकृति ने हमको दी, जो वातावरण जीने के लिए उसे मिला, उसे ठुकरा कर जीने का प्रयास कर लेना महत्वाकांक्षा और अहंकार का ही रूप है. किसी दूसरे के भाग्य में आमूलचूल परिवर्तन तो हम ला भी नहीं पाते उलटे हमारा खुद का विकास भी अवरुद्ध कर बैठते है. बस सारी उर्जा इसी में निकल जाती है. इसी अहंकार के मारे क्रोध उपजता है और कौन नहीं जानता कि क्रोध से हम अपना ही कितना नुक्सान कर बैठते है.

बाकि अब ज्यादा क्या लिखा जाए यह तो अपने खुद के समझने कि चीज है......