सोमवार, 19 मार्च 2012

!! जाति ब्यवस्था सभी धर्मो में है !!

ऐसा माना जाता है कि जाति व्यवस्था केबल हिन्दुओँ मेँ पायी जाती है ।जबकि भेदभाब,छुआछुत .जाति ,संप्रदाय हर प्रमुख धर्मोँ मेँ मिलता है ।

#क्रिश्चन मेँ बहुत सारे छोटे बडे चर्च होते हैँ जहाँ छोटे चर्च मेँ जाने बालौँ को बडे चर्च मेँ जाने कि मनाहि होती है और सबकी पुजा पद्धति मान्यताओँ मेँ अंतर पाया जाता है ।
http://en.m.wikipedia.org/wiki/List_of_Christian_denominations

... #मुस्लिमोँ मेँ जाति व्यबस्था जो प्रमुखतः अशरफ ,अजलफ ,अरजल जातिओँ मेँ बंटा है जिसकी अनेक उपजातियां हैँ।
http://m.facebook.com/note.php?note_id=347461641965768&refid=22&_rdr#356847261027206
http://en.m.wikipedia.org/w/index.php?title=List_of_Muslim_Other_Backward_Classes_communities&mobileaction=view_normal_site

# सिखोँ मेँ जाति व्यबस्था
हिन्दुओँ कि तरह 4 वर्णोँ मेँ बंटा हुआ है ।
http://www.sikhcastes.faithweb.com/whats_new.html

#बौद्धोँ कि जाति व्यबस्था जो प्रमुखतः 3 प्रमुख संप्रदायोँ महायान ,हीनयान और वज्रयान मेँ बंटा हुआ है जिसका सैँकडोँ स्कुल है जो अलग अलग पुजा पद्धतिओँ और मान्याताओँ को मानता है ।
http://m.facebook.com/note.php?note_id=333913793320553&refid=21

!!जिम्मेदार और जवाबदेह होने का गुण ब्यक्ति को बिशेष बनाता है !!

ज्यादा तर देखने को मिलता है की हम अपने कर्तब्य के प्रति लापरवाह हो जाते है और अपने कार्यो को इमानदारी पूर्वक  नहीं करते है परिणाम स्वरुप हम प्रगति नहीं कर पाते और अवनति की और जाने लगते है तो उस समय पर हम अपनी किस्मत को कोसते है और पत्नी ,बच्चो के ऊपर अपना गुस्सा निकलते है माँ -बाप को उअलाहना देते है आपने हमें इस लायक नहीं बनाया ,या फिर कार्यस्थल में अपने सहकर्मियों को दोषी ठहराते की मेरा समर्थन नहीं किया आदि आदि कई बहाने ढूढ़ते है और अपनी नाकामी को छिपाने का अनर्थक प्रयास करते है यदि हम अपने  जीवन मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता हमें सुख, संतोष और शांति की राह पर ले जाती है। प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ जिम्मेदारी, जवाबदेही का भाव जुड़ता है।

मनुष्य को जिम्मेदार और जवाबदेह होना चाहिए। जवाबदेही के बिना जिम्मेदारी लेने से मनुष्य का अस्तित्व कमजोर हो जाता है। कमजोरियों से निराशा पैदा होती है। निराशा को खत्म करने के लिए हमें अपनी शक्तियों को जागृत करना होगा। प्रतिबद्धता से पैदा होने वाली ऊर्जा जीवन की समस्याओं को सुलझाने का फामरूला है। प्रतिबद्धता का अर्थ अपने- आपको किसी एक लक्ष्य और बिंदु पर केंद्रित करना है। एक बिंदु पर केंद्रित होने से कौशल और दक्षता का संचार होता है।

प्रतिबद्धता के संदर्भ में हम प्रकृति और प्राणियों से प्रेरणा ले सकते हैं। शिकार पर अचूक निशाना साधने के लिए जाना जाने वाला पक्षी बाज अपने बच्चों को जन्म लेने के साथ चुनौतियों से जूझना सिखाता है। मादा बाज अंडे देने से पहले किसी ऊंची चोटी पर घोंसला बनाती है। घोंसले में तिनकों के साथ कांटे भी गुंथे रहते हैं।

अंडों से बाहर निकलते ही बच्चों के कोमल शरीर में कांटे चुभते हैं। मादा बच्चों को घोंसले से बाहर फेंक देती है। बच्चे जैसे ही जमीन पर गिरने लगते हैं, नर उन्हे पकड़कर घोंसले में रख देता है। इस बीच मादा घोंसले से घास की परत हटा देती है।

जाहिर है,बच्चों के शरीर में कांटे और अधिक तीव्रता से चुभेंगे। इसके बाद नर बाज बच्चों को घोंसले से नीचे फेंकता है और मादा उन्हे पकड़कर लाती है। यह क्रिया उस समय तक चलती है जब तक बच्चे नीचे गिरने के खतरे को भांपकर उड़ना शुरू नहीं करते हैं। धीरे-धीरे वे अपने पंखों की अहमियत समझकर उड़ने की दक्षता हासिल कर लेते हैं। बाज कभी मुर्दा शिकार नहीं खाता है। वह तूफान के बीच तेज हवा को काटता हुआ उड़ता है। वह मुश्किलों से सीधा टकराता है।

ईश्वर और प्रकृति हमसे आशा करते हैं कि हम अपनी ताकत, क्षमता को पहचानें औ्रर जीवन के अनंत आकाश में उड़ने का कौशल विकसित करें। बाज सरीखी प्रतिबद्धता और दक्षता जीवन के हर क्षेत्र में आजमाई जा सकती है। परिवार, कारोबार, नौकरी, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में प्रतिबद्धता के जरिए सफलता, पूर्णता के नए क्षितिज पर पहुंचना संभव है।

!! बौध्द धर्म क्या कायर बनाता है ?

बुद्धिज्म के बारे में हमें ज्यादा जानकारी नहीं है. अभी बस केवल लगभग इतना ही पता है कि-सिद्दार्थ का क्षत्रीय राजा के घर जन्म हुआ. उन्होंने पत्नी, संतान, राजसी सुख आदि का आनंद उठाया. फिर दूसरों की पीड़ा से दुखी होकर सारे सुखों का त्याग कर दिया. ब्रक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या की, जिससे ज्ञान प्राप्त हों गया. उनसे प्रेरित हुए लोगों ने नया धर्म चालू कर दिया. उसके कुछ सालों के बाद मौर्य सम्राट अशोक द्वारा युद्ध में खूनखराबे को देख कर द्रवित होने के बाद बुद्धिज्म को अपना लिया गया.
उसके बाद से लेकर आज तक, लगभग दो हजार साल तक, जब इस्लामी हम्लाबरों ने भारत पर आक्रमण किया, उसके बिरोध में बौद्धों के खड़े होने का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है. ऐसे ही अंग्रेजों के साम्राज्य के बिरोध में भी, बौद्धों की कहीं कोई भूमिका कहीं दिखाई नहीं देती. कोई भी कौम इतनी कायर कैसे हों सकती है कि - जब देश में इत...ना संघर्ष चल रहा हों तो वो केवल तमाशा ही देखती रहे.
आज जितना अग्रेसिव होकर बौद्ध, बहुसंख्यक हिंदुओं से लड़ते हैं उसको देखकर तो लगता है कि - अल्पसंख्यक मुगलों और अंग्रेजों को तो ये अकेले ही भागने पर मजबूर कर देते. फेसबुक पर बौद्धों की बातों से लगता है कि- भारत के इतिहास के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी बौद्धों के पास ही है. कृपया मुगलों और अंग्रेजों के साथ बौद्धों के संघर्ष के इतिहास की जानकारी देने की कृपा करें. जिससे हम जैसे अज्ञानी भी महान बौद्धों की महानता से परिचित हों सकें. धन्यवाद ........
आजादी के उस संघर्ष में राजाओं (प्रथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप, रानी दुर्गावती, शिवाजी, रणजीत सिंह, आदि ) , संतों (गुरु हरगोविन्द सिंह, गुरु गोविन्द सिंह, आदि ) , व्यापारियों ( भामा शाह, जमाना लाल बजाज, रविन्द्र नाथ टैगोर आदि ), वनवासी ( कोल, भील, आदि), ब्राह्मण ( मंगल पांडे, चन्द्र शेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल, आदि ), दलित (विरसा मुंडा, झलकारी बाई आदि ), मुसलमान (असफाक उल्ला खां, मौलाना आजाद, आदि ), किसान (भगत सिंह,आदि ) , खानाबदोस बंजारे, नागा साधूओं से लेकर चोर- डाकू तक लगभग हर वर्ग से लोग शामिल हुए.
मगर ऐसा कोई प्रसंग सुनने में नहीं आता कि - कहीं किसी संघर्ष में बौद्ध भी शामिल रहे हों लेकिन जब देश आजाद हों गया तो आप बौद्ध लोग उनको ही गालियाँ देने लगे. इसके अलाबा चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान, वर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, माल्दीव् आदि में भी लतियाए जाने पर उनका मुकाबला करने के बजाये शरण देने वाले हिंदुओं को ही कोसने में लगे रहते हैं.........BY नवीन वर्मा जी द्वारा लिखित ....