सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

!!भगवान शिव जी की पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में क्यों ?

अगले  सप्ताह सोमवार २० फरवरी २०१२ को महाशिवरात्रि है । पूरे देश में श्रद्धालु शिव लिंग पर दूध, जल बेलपत्र, भंग आदि चढ़ायेगे ! शिव की पूजा भारत में शिव लिंग के रूप में भी की जाती है। प्राचीन काल में अन्य धर्मों में भी इस आकार वाले प्रतीकों की पूजा के कुछ प्रमाण मिलते हैं।

शिव को लिंगाकार मानने के पीछे क्या रहस्य है? इस आकार की पूजा शिव रूप मान कर क्यों करते हैं? बहुत सारे लोग जैसे प्रदीप नाग्देवो (फेसबुक ) जैसे अज्ञानी ब्यक्ति अज्ञान के कारण या 'लिंग' के सीमित अर्थ की जानकारी के कारण इसके बारे में अश्लील कल्पना करते हैं। वास्तव में 'लिंग' शब्द के कई अर्थ हैं। एक तो व्याकरण में 'लिंग' शब्द का प्रयोग 'स्त्री वर्ग' या 'पुरुष वर्ग' के विभाजन के लिए होता है। संसार में सभी जीव या तो पुर्लिंग हैं
या स्त्रीलिंग या नपुंसक लिंग।

शिव पिता भी हैं और माता भी हैं। मनुष्य की समझ में कोई ऐसा शरीर नहीं हो सकता। इसलिए शिव स्त्रीलिंग-पुर्लिंग से भिन्न तथा अशरीरी यानी केवल एक ज्योति बिंदु हैं। लेकिन हम उस ज्योति को देखें कैसे? बिना प्रतीक के पूजें कैसे? तो उसके प्रतीक के रूप में ज्योतिर्लिंग की कल्पना की गई। कई लोग कहते हैं कि 'लिंग' शब्द में 'लि' का अर्थ है अव्यक्त वस्तु और 'गम' का अर्थ है उसे जतलाने वाले चिन्ह। शिव अव्यक्त ज्योति बिंदु हैं और लिंग उनका अव्यक्त चिन्ह है। इसके अतिरिक्त 'लिंग' शब्द का 'लक्षण' के अर्थ में भी प्रयोग होता है। न्याय दर्शन में कहा गया है कि कामना और प्रयत्न 'आत्मा' के
लिंग अर्थात लक्षण या चिन्ह हैं। इसी प्रकार वैशेषिक दर्शन में कहा गया है कि 'पीछे, पहले, एक साथ, देर से और झटपट आदि व्यवहार 'काल के लिंग' अर्थात लक्षण या चिन्ह हैं। ब्रह्म सूत्र में भी 'लिंग' शब्द इसी अर्थ में प्रयोग हुआ है। स्पष्ट है कि 'शिव लिंग' अथवा 'ज्योतिर्लिंग का भावार्थ यह है कि परमात्मा ज्योतिस्वरूप है और 'शिवलिंग' उसका स्थूल चिन्ह है। भारत के विभिन्न स्थानों पर बारह ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, जैसे वाराणसी में काशी विश्वनाथ, उज्जैन में महाकालेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन आदि। शिव तो ब्रह्म तत्व में निवास करते हैं, जैसे कि हम मनुष्य आकाश (ब्रह्मांड) में निवास करते हैं।जैसे आकाश की कोई प्रतिमा नहीं बनाई जा सकती, परंतु मनुष्यों की बनाई जा सकती है, वैसे ही ब्रह्मा तत्व की कोई मूर्ति नहीं बनाई जा सकती, लेकिन ज्योतिर्लिंग की प्रतिमा बनाई जाती है। शिव अरूप नहीं हैं, बल्कि वे तो अत्यंत सुंदर और मोहिनी ज्योतिर्लिंगरूप वाले हैं।पुराणों में शिव के रूप को अंगुष्ठाकार और दीपक की लौ के समान कहा गया है। इस बारे में 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' के सूत्र की ऐसी व्याख्या मिलती है कि जैसे पिण्ड में आत्मा सर्वव्यापक नहीं है बल्कि भृकुटि में निवास करती है, वैसे ही शिव भी तीनों लोकों में व्याप्त नहीं हैं बल्कि ब्रह्मलोक में निवास करते हैं। उन्हें यत्र-तत्र-सर्वत्र मानना और अरूप अर्थात दिव्य एवं अविनाशी रूप से रहित मानना भूल करना है। शिव कल्याणकारी पिता हैं। पिता कभी घर में अथवा बच्चों में व्याप्त नहीं होता। शिव को सर्वव्यापक मानना, अरूप मानना अथवा आत्मा को शिव मानना तो परमात्मा को न मानने अथवा परमात्मा को पिता न मानने जैसा है। उनके सच्चे रूप को जान कर मनुष्य शक्ति और शांति एक साथ प्राप्त कर सकता है। शिव के सच्चे स्वरूप को जान कर हमें उनकी सप्रेम स्मृति में रहना चाहिए। परम पिता शिव की स्नेहमय स्मृति से ही मनुष्य शिव लोक पहुंचता है। यही अमरनाथ, सोमनाथ अथवा रामेश्वरम की सच्ची यात्रा है। मन, वचन और कर्म से पवित्र बनने तथा ज्योतिस्वरूप परमात्मा के पिता रूप की स्मृति में रहने से मनुष्य सदा-शिव का अनुभव कर लेता है और आनंदित होता है। और शिव लिंग पूजा का यही महत्व है समझे मित्र प्रदीप नाग्देवो जी ...पर मुझे पता है की आप इन सभी बातो को फिर भी नहीं मानेगे ,,,,पर आपको धन्यवाद देता हु की आपके ही कारन मुझे यह सब लिखना पडा और ज्ञान को परिमार्जित किया !!

!! प्रेम जीवन के लिए संजीवनी है !!

अभी कल १४ फरवरी २०१२ वेलनटाइन  दिवस है अभी वेलनटाइन सप्ताह  चल रहा है, बाज़ार प्यार के तोहफों से लदा हुआ है, हर आदमी की जेब के हिसाब से तोहफे बिक रहे है। ऐसे में एक नया ट्रेण्ड शुरू हो गया है, ‘जितना मंहगा गिफ्ट उतना ज्यादा प्यार’। ये सब आजकल के युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है पूरे वेलनटाइन सप्ताह को कुछ इस तरह बनाया गया है कि लगभग हर दिन कुछ-न-कुछ गिफ्ट देना ही पड़ता है। क्या आज रिश्ते इन उपहारों के मोहताज़ हो गए है ? वेलनटाइन दिवस क्या है ? देखा जाए तो प्रेम का त्यौहार है ! क्या प्रेम ,सिर्फ प्रेमी -प्रेमिका में ही होता है ? प्रेम तो सभी रिश्ते में होता है प्रेम को अनुभव किया जा सकता है, इसे शब्दों से व्यक्त करना संभव नहीं है। प्रेम के बिना मानव जीवन का कोई अर्थ नहीं। एक दूसरे के प्रति विश्वास उत्पन्न करता है प्रेम। मानव हृदय में प्रेम का स्रोत है। संसार में आकर वह भौतिकता से जकड़ जाता है, जिससे तमाम विकृतियों और विकारों के साथ अनेक समस्याओं के जाल में फंस जाता है। तब एकमात्र उपाय प्रेम ही रह जाता है समस्याओं से निजात पाने का। प्रभु का स्वरूप है प्रेम, इसका संबंध हृदय से है।प्रेम और भक्ति में जब समर्पण की भावना जुड़ जाती है तब एक शक्ति बनती है। जीवन के लिए संजीवनी है प्रेम। भक्तों के जीवन का आधार है प्रेम। प्रेम की प्रकृति आत्मा को प्रभावित करती है। यह मानव प्रवृत्ति एवं मानवता की प्रथम आवश्यकता है। सच्चा प्रेम अंतस की वाणी समझने में समर्थ है। निराशा के क्षणों में आशा की किरण है प्रेम, यह हमारे विश्वास को बल प्रदान करता है। हमारे प्रियजन हमसे कितनी ही दूर क्यों न हों, प्रेम की अनुभूति हमें उनकी निकटता देती है। प्रत्येक प्राणी को प्रेम की भूख है, चाहे वह मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, सभी में प्रेम का प्रभाव समान होता है। आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में जहां मनुष्य जीवन की सभी व्यावहारिक वस्तुओं से संपन्न है वहां प्रेम से विपन्न है। यह मानव समाज के लिए विचार का विषय है। इन सबसे दूर रहकर हमें प्रेम पथ का विस्तार करना होगा। प्रेम परम आनंदमयी है। प्रेमी सर्वत्र आनंद का अनुभव करता है। सारा संसार आनंदस्वरूप है, सर्वत्र सौंदर्य और माधुर्य भरा हुआ है। दृश्य और दृष्टा, दोनों प्रेममय हैं। जिस भक्त के हृदय में परब्रह्म परमात्मा पूर्णरूपेण विराजमान हों, वहां फिर राग-द्वेष का स्थान नहीं रह जाता। प्रेम के परम व दिव्य स्वरूप दर्शन के लिए मन को विषयों से दूर रखना अपरिहार्य है। इसके आगे समस्त सांसारिकता बौनी प्रतीत होती है। अनन्य भक्ति और परम प्रेम ही वास्तव में अमृत स्वरूप है। प्रेम का प्रभाव हृदय को प्रभावित करता है, यदि हमारा वास्तविक प्रेम परमात्मा के प्रति हो गया तो जीवन सफल है।सदाचार और सद्गुण प्रेम भाव के पोषक हैं।मैं तो मेरे सभी पाठको और मित्रो से निवेदन करता हु की आप भी इस "वेलनटाइ दिवस "  को मनाये पर और इस दिवस को भारतीय संस्कार में रंग दे !  मत ले जाए इसे पश्चिमी सभ्यता की ओर इस दिवस को  "माता -पिता पूजन " के रूप में मनाये !