सोमवार, 24 दिसंबर 2012

|| इन्सान एक चेहरे अनेक ||

आज हर आदमी एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए घूम रहा है  सायद मैं भी उन्ही लोगो में सामिल हु ..जिससे जीवन के इस खेल में उसके अंदर छिपा असली आदमी कभी भीउजागर हो ही नही पाता ! या यूं कहे कि वह जिंदगी भर एक अच्छा नाट्यकर्मी जरूर बना रहता है! खुद को अनछुआ ही इस दुनिया से रूखसतकर जाता है ! आदमी अपने जीवन को एक ड्राईंग रूम की ही तरह अपने उसूलों से सजाए रहता है! बाकी का असली जीवन को देखने का समयही नहीं मिल पाता!इस नकलीपन से आज हर कोई आदमी को समझने में भारी भूल कर बैठता है!इसीलिए इस दुनिया में आए दिन हमें ऐसेकिस्से देखने को मिलते है कि देवता सा दिखने वाला फलां आदमी शैतान, वहशी निकला ! अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि नकली सिक्के असलीसिक्कों को चलन से बाहर कर देते है
!आज भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है, असली चरित्रवान आदमी घर में दुबका बैठा है और नकली चरित्र का आदमी धड़ल्ले से चलरहा है! यहां मुझे एक छोटी सी कहानी याद आ रही है! एक सूफी फकीर गुरजियत के बड़े चर्चे थे! चर्चे इस बात के वह किसी को भी अपनाशिष्य बनाने के पहले महिना भर पहले शराब में डुबाए रखते थे! जब कुछ लोगों ने इसका कारण उनसे जानना चाहा तो उनका कहना था आजआदमी बाहर से कुछ अंदर से कुछ और होता है ! आदमी होश में तो बड़ा बनावटी हो सकता है लेकिन शराब के नशे में उसमें छिपा असलीआदमी बाहर आ जाता है! आखिर जिसे मैं अपना शिष्य बनाने जा रहा हूं उसके अंदर छिपा असली आदमी कौन है, कैसा है, पहले में जान तोलू, पहचान तो लू कि वह शिष्य बनने लायक भी है या नहीं ! हो सकता है दुनिया वालों को उनका शिष्य बनाने का यह तरीका उचित न लगे,लेकिन है तो सत्य.....
यूं तो नकली, दिखावटी चरित्र का आदमी हर जगह हर क्षेत्र में मौजूद है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा भरमार राजनीति के माध्यम सेसमाजसेवा जैसे पवित्र कार्य में अधिक है जो चिंता का विषय है.....


नोट -- यह ब्लॉग मेरे परम आदरणीय  फेसबुक मित्र श्री............पांडे जी और श्री ,श्री  .............मिश्रा जी को सादर  समर्पित है .....

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