शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

!!वेदों की उत्पत्ति !!

 
वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रंथ हैं, जिनमें ज्योतिष, संगीत, गणित, विज्ञान, धर्म, औषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान का भण्डार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। इनमें अनिष्ट से संबंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उन्हें प्राप्त करने के उपाय संगृहीत हैं। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में मेहनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्नरूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्ययन करके ही इनमें संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है............
सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है-‘ज्ञान’। वस्तुतः ज्ञान वह प्रकाश है जो मनुष्य-मन के अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट कर देता है। वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है, जो पौराणिक ज्ञान-विज्ञान का अथाह भंडार है। ‘वेद’ शब्द संस्कृत के विद् शब्द से निर्मित है अर्थात् इस एकमात्र शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है। प्राचीन भारतीय ऋषि जिन्हें मंत्रदृष्टा कहा गया है, उन्होंने मंत्रों के गूढ़ रहस्यों को जान कर, समझ कर, मनन कर, उनकी अनुभूति कर उस ज्ञान को जिन ग्रंथों में संकलित कर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया वे प्राचीन ग्रंथ ‘वेद’ कहलाए। यहाँ वेद का अर्थ उन्हीं प्राचीन ग्रंथों से है। इस जगत्, इस जीवन एवं परमपिता परमेश्वर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान वेद है।
विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने शब्दों में कहा है कि वेद क्या है ? आइए पढ़ें किसने क्या कहा है-
(1) मनु के अनुसार, ‘‘सभी धर्म वेद पर आधारित हैं।’’
(2) स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ‘‘वेद ईश्वरीय ज्ञान है।’’
(3) महर्षि दयानन्द के अनुसार, ‘‘समस्त ज्ञान विद्याओं का निचोड़ वेदों में निहित है।’’
(4) प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के अनुसार,
‘‘वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में, मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,
पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में, शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,
दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित, सत्यं शिवं सुन्दरं शोभित
कपिल, कणाद और जैमिनि की स्वानुभूति का अमर प्रकाशन
विशद-विवेचन, प्रत्यालोचन ब्रह्म, जगत्, माया का दर्शन।’’
अर्थात् वेद केवल ढकोसला मात्र नहीं है, इनमें वह पौराणिक ज्ञान समाहित है जिनके अध्ययन से धीरे-धीरे विकास हुआ और आज के आधुनिक युग की कई वस्तुओं का ज्ञान प्राचीन भारतीय ऋषियों ने पहले ही मनन कर प्राप्त कर लिया था। वेद परम शक्तिमान ईश्वर की वाणी है। अर्थात् वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेद श्रुति भी कहलाते हैं क्योंकि श्रुति का तात्पर्य है-सुनना। इसका अर्थ है कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने मनन एवं ध्यान कर अपनी तपस्या के बल पर ईश्वर के ज्ञान को ग्रहण किया, उसे आत्मसात् किया। जब उनके शिष्य उनसे शिक्षा ग्रहण करते तो वे उसी ज्ञान को उन्हें बाँटते।

यह ईश्वररीय ज्ञान मंत्रों के रूप में ऋषियों के साथ सभी को स्मरण होता गया, उन्हें कण्ठस्थ हो गया और धीरे-धीरे उन सभी से एक-दूसरे के पास पहुँचा। क्योंकि प्राचीन काल में आज की तरह स्कूल, कॉलेज नहीं थे। अपितु शिष्य, ऋषियों के आश्रय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे जो गुरु-शिष्य परम्परा कहलाती थी और ऋषि मंत्रों का उच्चारण कर शिष्यों को समझाते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि ऋषियों ने जो ईश्वरीय ज्ञान सुना वह वेद है, श्रुति है। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा गया।
वेद ज्ञान का अनन्त भण्डार है। ये ईश्वरीय ज्ञान है। ये कोई ऐतिहासिक पुस्तकें नहीं है कि कोई घटना घटी और पुस्तकवद्ध हो गई। अतः ईश्वर की अलौकिक वाणी जो ज्ञानरूप में वेदों में निहित है, उसे समझने के लिए वेद ही वे अलौकिक नेत्र हैं जिनकी सहायता से मनुष्य ईश्वर के अलौकिक ज्ञान को समझ सकता है। वेद ही वे ज्ञान ग्रंथ हैं जिनके समकक्ष विश्व का कोई भी ग्रंथ नहीं है।
अतः वेद ईश्वरीय ज्ञान है और उनका उद्भव भी ईश्वर द्वारा ही हुआ है।
वेदों की उत्पत्ति का पौराणिक आधार
ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना के समय देवों और मनुष्यों के साथ-साथ कुछ असुरों की भी रचना कर दी। इन असुरों में देवों के विपरीत आसुरी गुणों का समावेश था, इस कारण ये स्वभाव से अत्यंत क्रूर, अत्याचारी और अधर्मी हो गए। ब्रह्माजी ने देवगण के लिए स्वर्ग और मनुष्यों के लिए पृथ्वी की रचना की। लेकिन जब ब्रह्माजी को असुरों की आसुरी मानसिकता का ज्ञान हुआ तो उन्होंने असुरों को पाताल में निवास करने के लिए भेज दिया।

असुर स्वच्छंद आचरण करते थे। शीघ्र ही उन्होंने अपनी तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न कर वरदान में अनेक दिव्य शक्तियाँ प्राप्त कर लीं और पृथ्वी पर आकर ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगे। धीरे-धीरे ये अत्याचार बढ़ते गए। इससे असुरों की आसुरी शक्तियों में भी वृद्धि होती गई। देवों की शक्ति का आधार भक्ति, सात्त्विकता और धर्म था, लेकिन स्वर्ग के भोग-विलास में डूबकर वे इसे भूल गए, इस कारण उनकी शक्ति क्षीण होती गई। 
वेद मानव सभ्यता और संस्कृति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं I लिपिबद्ध होने के पूर्व, वेद श्रुति के माध्यम से असंख्य वर्षों से मानवता की धरोहर रहे हैं I वेद लिखित रूप में द्वापर युग में आये I इनमे सर्वव्यापक, सर्वप्रकाश्मान ईश्वर का ज्ञान परिलक्षित है जो कि मानव सभ्यता को सृष्टि के प्रारम्भ में दिया गया I वेदों में जीवन के हर क्षेत्र का ज्ञान उप्लब्ध है और वे हिन्दू (सनातन) संस्कृति के मौलिक आधारभूत ग्रन्थ हैं I वास्तविक्ता में वेद समस्त मानव जाति की धरोहर हैं न कि किसी एक संप्रदाय विशेष की I वेद अर्थात ज्ञान अथवा दृष्टि I क्योंकि ज्ञान का लोप होना सर्वथा असंभव है, यही कारण है कि युग युगांतर से वैदिक दर्शन शाश्वत है एवं आज भी सनातन संस्कृति वेदों को ही अपना आधार मानती है I संसार का कोई ऐसा ज्ञान नहीं जो वेदों की परिधि से बाहर हो I वेद हिन्दू संस्कृति के सामाजिक, न्यायिक, दार्शनिक, घरेलु एवं सांस्कृतिक पहलुओं को देदीप्यमान करते हैं I वेदों की महानता इस बात से साबित होती है कि आस्तिक विचारधारा को मानना अर्थात ईश्वर अथवा वेदों में विश्वास एवं नास्तिक विचारधारा को मानना अर्थात ईश्वर अथवा वेदों को नकारना I आज वेदों का ज्ञान सामान्य मनुष्य जाति की समझ से ओझल है और वेदों को सही मायने में समझने हेतु उच्च कोटि की मानसिकता एवं परिष्कृत निर्मल ह्रदय की आवश्यकता है I
वेदों के रचेयता कौन हैं?
वेद मनुष्य की रचना नहीं, वे अपौरुषेय हैं I वे ईश्वर प्रदत्त हैं और कालांतर से मानव जाति को सौंपें गए हैं I वेदों की ऋचाओं का अवलोकन ब्रह्म में स्थित ऋषियों (जो कि मंत्रद्रष्टा कहे जाते हैं) ने किया I सर्वप्रथम चार ऋषियों को वेदों का ज्ञान हुआ जो कि हर प्रकार से इस ज्ञान को समझने के उत्तम थे एवं दूसरों को समझाने की भी क्षमता रखते थे I अग्नि ने ऋग वेद, वायु ने यजुर वेद, आदित्य ने साम वेद एवं अंगिरा ने अथर्व वेद को प्राप्त किया I महर्षि वेद व्यास ने द्वापर युग में वेदों को लिपिबद्ध किया I
वेद: वर्गीकरण
वेद मूलतः चार हैं : ऋग , साम, यजुर एवं अथर्व I ऋग वेद समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान का भण्डार हैं I साम वेद संगीतमय भक्ति और चिंतन पर केन्द्रित हैं , यजुर वेद देव सम्मत मनुष्य के लिए निहित कर्म पर प्रकाश डालते हैं एवं अथर्व वेद तीनों वेदों में निहित ज्ञान का अनुप्रयोगात्मक परिचय देते हैंI
ऋग्वेद
ऋग्वेद दिव्य मन्त्रों की संहिता हैI इसमें १०१७ ऋचाएं अथवा सूक्त हैं जो कि १०६०० छंदों में पंक्तिबद्ध हैं I ये आठ "अष्टको" में विभाजित हैं एवं प्रत्येक अष्टक के क्रमानुसार आठ अध्याय एवं उप- अध्याय हैंI माना जाता है कि ऋग्वेद का ज्ञान मूलतः अत्रि, कन्व, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदाग्नि, गौतम एवं भरद्वाज ऋषियों को प्राप्त हुआI ऋग वेद की ऋचाएं एक सर्वशक्तिमान पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की उपासना अलग अलग विशेषणों से करती हैं I
साम वेद
साम वेद संगीतमय ऋचाओं का संग्रह हैं I विश्व का समस्त संगीत सामवेद की ऋचाओं से ही उत्पन्न हुआ है I ऋग वेद के मूल तत्व का सामवेद संगीतात्मक सार हैं, प्रतिपादन हैं I
यजुर वेद
यजुर वेद मानव सभ्यता के लिए नीयत कर्म एवं अनुष्ठानों का दैवी प्रतिपादन करते हैं I यह व्यावहारिक रूप से लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक कृत्यों के लिए बलि सूत्रों को अनुमोदित करते हैं I यजुर वेद का ज्ञान मद्यान्दीन, कान्व, तैत्तरीय, कथक, मैत्रायणी एवं कपिस्थ्ला ऋषियों को प्राप्त हुआ I

अथर्ववेद
अथर्व वेद ऋग वेद में निहित ज्ञान का व्यावहारिक कार्यान्वन प्रदान करता है ताकि मानव जाति उस परम ज्ञान से पूर्णतयः लाभान्वित हो सके I लोकप्रिय मत के विपरीत अथर्व वेद जादू और आकर्षण मन्त्रों एवं विद्या की पुस्तक नहीं है I
वेद: संरचना
प्रत्येक वेद चार भागों में विभाजित हैं, क्रमशः : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् I ऋचाओं एवं मन्त्रों के संग्रहण से संहिता, नीयत कर्मों और कर्तव्यों से ब्राह्मण , दार्शनिक पहलु से आरण्यक एवं ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषदों का निर्माण हुआ है I आरण्यक समस्त योग का आधार हैं I उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है एवं ये वैदिक शिक्षाओं का सार हैं I
वेद: समस्त ज्ञान के आधार
यद्यपि आज वेदों का पठन पाठन सामान्य जन समुदाय में प्रचलित नहीं है, तदापि वेद सनातन संस्कृति एवं विचारधारा का मूलभूत आधार हैं, धर्म के स्तम्भ हैं, इसमें कोई संदेह नहीं I आदि काल से वेद हमारा मार्गदर्शन एवं धार्मिक दिशा निर्देश करते आये हैं एवं भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा करते रहेंगे I वेद सदा सर्वदा व्यापक और सार्वभौमिक ज्ञान की प्रकाशिका बनकर मानव जाति के पथ प्रदर्शक रहेंगे I

4 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसके लिए किसी तरह की दलील की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हम उसे न समझ पाएँ या कुछ लोग हमें इससे दूर रखने का कुप्रयास करें। अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस दृष्टि के अन्तिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं। मानवतावादी सत्य गवेषी विद्वानों ने ऐसे अकाट्य प्रमाण पेश कर दिए, जिससे सत्य खुलकर सामने आ गया है।
    वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊँट की सवारी करनेवाले) महापुरुष के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे मुहम्मद (सल्ल.) ही है। वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित समस्त क्रियाकलाप हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आचरणों और व्यवहारों से आश्चर्यजनक साम्यता रखते हैं। पुराणों और उपनिषदों में कल्कि अवतार की चर्चा है, जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। कल्कि का व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएं अंतिम पैग़म्बर (सल्ल.) के जीवन-चरित्र को पूरी तरह निरूपित करती हैं। यही नहीं उपनिषदों में साफ़ तौर से हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम आया है और उन्हें अल्लाह का रसूल (संदेशवाहक) बताया गया है। पुराण और उपनिषदों में यह भी वर्णित है कि ईश्वर एक है। उसका कोई भागीदार नहीं है। बौद्धों और जैनियों और ईसाईयों के धर्मग्रन्थों में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं।
    पंडित वेद प्रकाश उपाध्याय का निर्णय
    पंडित वेद प्रकाश उपाध्याय ने लिखा है कि जो व्यक्ति इस्लाम स्वीकार न करे और मुहम्मद (सल्ल.) और उनके धर्म को न माने, वह हिन्दू भी नहीं है, इसलिए कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थों में कलकी अवतार और नराशंस के इस धरती पर आ जाने के बाद उनको और उनके दीन को मानने पर बल दिया गया है। इस प्रकार जो हिन्दू भी अपने धार्मिक ग्रन्थों में आस्था रखता है, अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्ल.) को माने बिना मरने के बाद के जीवन में नरक की आग,उसके सर्वकालिक प्रकोप का हक़दार होगा।

    इस विषय के बारे अन्य पुस्तकें जो हिन्दू विद्वानो द्वारा लिखी गई है उनको पढ़ने के लिए इस वेबसाइट पर जाइये ।ईश्वर से दुआ है कि वह आपको सच्ची राह दिखाने में आपका मार्गदर्शन करे। वह इस जगत की सच्चाई और जिंदगी का मकसद जानने के लिए आपके दिल और दिमाग को खोले। आमीन
    http://antimawtar.blogspot.in/

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    1. सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसके लिए किसी तरह की दलील की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हम उसे न समझ पाएँ या कुछ लोग इसे गलत तरीके से समझ लेते है| अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, पुराणों और उपनिषदों में इस दृष्टि के अन्तिम पैग़म्बर कलिक के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं और यह कब आएगा इसके लिए आपको कल्प समझने की जरुरत है जिसे यहाँ पर नहीं बताया जा सकता है क्योकी उसे समझने के लिए गणित का सामाग्री चाहिए, कुरान में पृथ्वी को चपटी कहा है जबकि यह गोल है इसका वर्णन कुरान में नहीं कहा गया है की अगर पृथ्वी चपटी है तो कैसे है, खगोल-शास्त्र का इतना गलत वर्णन किया गया है अब लोग इस बात को बहस का मुद्दा नहीं बनाते है क्योकी आज के आधुनिक दुनिया में सभी चीजे सामने है जिसे देख कर आप सत्य का अंदाजा लगा सकते है तब भी वह नहीं माने तो उसका कुछ नहीं हो सकता
      कुछ बाते जो पुराण में मलेच्छों के बारे में कही गयी है उसका वर्णन करते है यह बाते कुरान में कही नहीं मिलेगा

      कलियुग ने अपने पत्नी के साथ भगवान नारायण की पूजा दिव्य स्तुति के द्वारा करके नारायण भगवान को प्रसन्न कर लिया, जब भगवान नारायण प्रकट हुय तो कली ने भगवान से इस प्रकार प्रार्थना की- हे नाथ राजा वेदमान के पिता प्रद्योत ने मेरे प्रिय म्लेच्छों को नष्ट कर दिया है जिससे मेरा स्थान विनाश हो चुका है मुझ पर कृपा करे|
      इस पर भगवान बोले - हे कले! कई कारणों से अन्य युगों की अपेक्षा तुम श्रेष्ठ हो, मै तुम्हारी इच्छा को अनेक रूपों को धारण कर पूर्ण करूंगा, तुम निच्चिंत रहो, आदम नामक पुरुष और हौवा नाम की पत्नी के द्वारा म्लेच्छ वंश की वृद्धि होगी, यह कह कर श्री हरी अंतर्ध्यान हो गये| यह सुन कलियुग को अत्यंत आनंद हुआ उसने नीलांचल पर्वत पर आकर कुछ दिनों तक निवास किया (नीलांचल पर्वत उत्तरी अमेरिका में है)
      इधर राजा वेदमान को सुनन्द नामक पुत्र हुआ और बिना संतति के ही मृत्यु को प्राप्त हुआ इसके बाद फिर आर्यावर्त देश सभी प्रकार क्षीण हो गया और धीरे धीरे म्लेच्छों का बल बढ़ने लगा, तब नैमिषारण्य निवासी अठासी (88000) हजार ऋषि मुनि हिमालय पर चले गए और बद्री क्षेत्र में आकर भगवान विष्णु की कथा में संलग्न हो गए
      ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

      इधर भगवान विष्णु ने देवताओं के द्वारा प्रदान नगर के पूर्व भाग में चार कोस वाला एक रमणीय महावन का निर्माण किया जिसमे आदम पुरुष और उसकी पत्नी हव्यवति जो इन्द्रियों का दमन कर ध्यान परायण रहते थे
      एकदिन कलियुग पाप वृक्ष के निचे जाकर सर्प का रूप धारण कर हौवा के पास आया, उस धूर्त कली ने हौवा को धोखा देकर गूलर के पत्तों में लपेटकर दूषित वायु-युक्त फल उसे खिला दिया, जिससे विष्णु की आज्ञा भंग हो गयी

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    2. इसके बाद आदम और हौवा से अनेक पुत्र हुय जो म्लेच्छ कहलाये, आदम पत्नी के साथ स्वर्ग चला गया उसका श्वेत (गोर) नाम से विख्यात श्रेष्ठ पुत्र हुआ जिसकी आयु एक सौ बारह वर्ष की कही गयी है, इनका पुत्र अनुह हुआ जिसने अपने पिता से कुछ काम ही वर्ष तक शासन किया इनका पुत्र कीनाश था इसने अपने पितामह श्वेत के सामान राज्य किया इनका पुत्र महल्लल हुआ, इनका पुत्र मानगर इनका पुत्र विरद हुआ और अपने नाम से नगर बसाया इनका पुत्र विष्णु भक्ति परायण हनूक हुआ
      हनूक फलों का हवन कर उसने अध्यात्मतत्व का ज्ञान प्राप्त किया, म्लेच्छ धर्म परायण हनूक सशरीर स्वर्ग चला गया हनूक ने द्विज्जों के आचार-विचार पालन किया और देवपूजा भी की, फिर भी विद्द्वानों के द्वारा म्लेच्छ ही कहा गया|

      हनूक का पुत्र मतोच्छिल हुआ, इसका पुत्र लोमक हुआ लोमक को स्वर्ग प्राप्त हुआ इसका पुत्र न्यूह नाम के हुआ न्यूह के तीन पुत्र सीम, शम, और भाव हुआ

      न्यूह आत्मध्यान परायण तथा विष्णु भक्त था, न्यूह को एक दिन भगवान विष्णु स्वपन्न में दर्शन देकर उन्होंने न्यूह से कहा वत्स सुनो, आज से सातवें दिन प्रलय होगा! हे भक्त श्रेष्ठ तुम सभी लोगो के साथ नाव पर चढ़कर अपने जीवन की रक्षा करना, फिर तुम बहुत विख्यात व्यक्ति बन जाओगे
      भगवान की बात मानकर न्यूह ने एक सुद्रढ नौका का निर्माण किया जो तीन सौ हाथ लम्बी, पचास हाथ चौड़ी, और तीस हाथ ऊंची थी इस नौका पर सभी जीवों से समन्वित थी न्यूह विष्णु के ध्यान में तत्पर होता हुआ वह अपने वंशजों के साथ नाव पर चढ़ गया इसी बीच इंद्र देव ने चालीस दिनों तक लगातार मेधों से मूसलाधार वृष्टी कराई, चारो सागर मिल गयी, पृथ्वी डूब गयी पर हिमालय पर्वत का बदरी क्षेत्र पानी से ऊपर ही रहा वह नहीं डूब पाया
      88000 हजार ब्रहावादी मुनिगण वही सुरक्षित रहे, इधर न्यूह भी अपनी नौका के साथ यही आकर बच गए, उस समय संसार के शेष प्राणी विनष्ट हो गए उस समय मुनियों ने विष्णु माया की स्तुती की
      महाकाली को नमस्कार है, माता देवकी को नमस्कार है, विष्णुपत्नी महालक्ष्मी को, राधादेवी को और रेवती, पुष्पवती, तथा स्वर्णवती को नमस्कार है, कामाक्षी माया और माता को नस्कार है हे माताओं महावायु के प्रभाव से मेधों के भयंकर शव्द से एवं उग्र जल की धाराओं से दारुण भय उतपन्न हो गया है हे भैरवी! तुम इस भय से हम किकरों की रक्षा करो देवी ने प्रसन्न होकर जल की बृद्धि को तुरंत शांत कर दिया
      धीरे-धीरे यह जल कम होता रहा एक वर्ष के उपरांत हिमालय की प्रांतवर्ती शीषिणा नाम की भूमि जल के हट जानेपर स्थल के रूप में दिखने लगी, तब न्यूह अपने वंशजों के साथ उस भूमि पर आकर निवास करने लगा

      “बोलो भगवान विष्णु की जय, समस्त माया-रचिता की जय, सभी की उतपत्ति और पालनकर्ता की जय”

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    3. न्यूह हिमालय के बद्री क्षेत्र में शीषिणा नाम की भूमि पर रह कर विष्णु की भक्ति में लीं रहने लगा इससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर न्यूह के वंशजों की वृद्धि की
      न्यूह ने वेद-वाक्य और संस्कृत से अलग एक म्लेच्छ भाषा का विस्तार किया और कलियुग की बृद्धि के लिय ब्राह्ही भाषा को अपशव्द वाली भाषा बनाया और अपने तीनों पुत्रों का नाम बदलकर सीम, शम और भाव से सिम, हाम तथा याकूत रख दिया
      याकूत के सात पुत्र हुय जुम्र, माजूज, मादी, यूनान, तुवलोम, सक, तथा तीरास इन्ही के नाम पर अलग अलग देश प्रसिद्ध हुय
      जुम्र के दस पुत्र हुय उनके नामों से भी देश प्रसिद्द हुय
      यूनान की अलग अलग संताने इलीश, तरलीश, कित्ती और हूदा- इन चार नामों से प्रसिद्द हुआ और इनके नाम पर ही अलग अलग देश वसे
      न्यूह के द्वितीय पुत्र हाम जो पहले शम नाम था के चार पुत्र कहे गए है कुश, मिश्र, कूज, कनआँ इनके नाम पर भी देश प्रसिद्द है
      कुश के छ: पुत्र हुय -सवा, हबील, सर्वत, उरगम, सवतीका और महाबली निमरूह
      इनके भी कलां, सीना, रोरक, अक्कद, याशुन, और रसनादेशक आदि संताने हुई
      न्यूह के ज्येष्ठ पुत्र सिम के अर्कानसद, अर्कानसद से सिंहल, सिंहल से इब्र, इब्र से फजल, फजल से रऊ, रऊ से जूज, जूज से नहुर, नहुर से ताहर
      ताहर के तीन पुत्र अविराम, नाहुर और हारन हुय
      सिम ने पांच सौ वर्ष राज्य किया (500)
      अर्कासंद चार सौ चौतीस वर्ष राज्य किया (434)
      सिहंल ने चार सौ साठ वर्ष राज्य किया (460)
      इब्र ने चार सौ साठ वर्ष राज्य किया (460)
      फजन ने दौ सौ चालीस वर्ष राज्य किया (240)
      रऊ ने दौ सौ सैतीस वर्ष राज्य किया (237)
      जूज ने दौ सौ सैतीस वर्ष राज्य किया (237)
      नहुर ने एक सौ साठ वर्ष राज्य किया, (160) नहुर ने अनेक शत्रुओं का विनाश भी किया
      ताहर ने एक सौ साठ वर्ष राज्य किया (160)
      इस प्रकार सक्षेप में म्लेच्छ वंशों का वर्णन किया है, सरस्वती के श्राप से म्लेच्छ राजा भाषा भाषी हो गय और आचार में अधम सिद्ध हुय, कलियुग के दो हजार वर्ष बीत जाने पर म्लेच्छ वंश की अधिक बृद्धि हुई और विश्व के अधिकाँश भूमि म्लेच्छमयी हो गयी तथा भाती भाती के मत चल पड़े, इसी में मूसा नाम के व्यक्ति म्लेच्छों का आचार्य बना और अपना मत सारे संसार में फैलाया

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