बुधवार, 14 मार्च 2012

!! भारत के आदिवासी विकाश की राह तकते हुए ...!!

भारत सरकार हर साल अपने बजट में प्रावधान करती है आदिवासी विकास की पर ये बजट आदिवासी क्षेत्र के विकास और शिक्षण-पोषण की योजनाएँ भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा साधन हैं. योजनाएँ  लाने (मलाई खाने) में एनजीओ और सरकारी विभाग रुचि रखते हैं लेकिन उन्हें ईमानदारी से लागू करने में उनकी कोई रुचि नहीं है. दुराग्रहपूर्ण दृष्टिकोण रखने वाले भारतीय मीडिया ने सभी आदिवासियों को नक्सली छवि में रंग दिया है जिसका टॉप नेतृत्व बेकसूर बना रहता है लेकिन साधारण कार्यकर्ता को पुलिस की बंदूकों के सामने खड़ा किया जाता है. इस व्यवस्था में इनका क्या भला हो सकता है! ज़मीनी सचाई यह है कि इन आदिवासियों को देश के मानव संसाधनों में न गिनने की प्रवृत्ति हमारे यहाँ है ! 

भारत का तथाकथित पढ़ा-लिखा (एक) वर्ग इनके बारे में बहुत कुछ कहता है लेकिन उसमें वास्तविकता के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है. पिछले दिनों एक साइट पर भारत की आदिवासी जातियों पर कुछ आलेख देखने को मिले जिनमें सुंदर शब्दों में बहुत कुछ कहा गया था. लेकिन इनकी परंपराएँ (घोटुल) दिखाने के नाम पर आदिवासी महिलाओं के ऐसे ब्लैक एंड व्हाइट चित्रों का प्रयोग किया गया जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं थे. लेखक की नीयत साफ़ झलक रही थी. भारत का ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति कपड़े पहनता है बशर्ते उसके पास हो. ज़ाहिर है विद्वान लेखक को भारत की छवि नहीं चाहिए थी बल्कि आलेख के लिए 'मसाला' चाहिए था.
कुछ साइट में लेखक ने इन आदिवासियों के पुराने, ब्लैक एंड व्हाइट, चित्रों का प्रयोग किया है. स्पष्टतः ये चित्र लेखक के नहीं थे. क्या भारत के ये मूलनिवासी लोग अपनी ग़रीबी की ऐसी फोटो खींचने की अनुमति आज देते हैं? नहीं. और क्यों दें? सामाजिक कार्यकर्ता जानते हैं कि 'बाहर' से यदि कोई आ जाए तो ये लोग पहले अपनी झोंपड़ियों में जाते हैं और जो भी बेहतर कपड़ा हो उसे पहन कर सामने आते हैं. काश लेखक ने इनकी समझदारी का सम्मान किया होता. इस बारे में मैंने उस साइट पर एक टिप्पणी लिखी थी जिसे हटा दिया गया. आपसे शेयर कर रहा हूँ कि जो मैंने लिखा था वह इसी पैरा में है. बाद में पता चला कि लेखक, जो स्वयं को आदिवासी मामलों का विशेषज्ञ बताता है, वास्तव में वहाँ लकड़ी का ठेकेदार है. यानि उन्हीं लोगों में से एक जिन्होंने आदिवासी क्षेत्रों को उजाड़ने के लिए कई हथकंडे अपनाए जिनमें ऐसे आलेख छपवाना भी शामिल था जो यहाँ के निवासियों को मानवता की सीमा से बाहर की चीज़ साबित कर सकें. क्या यही विकाश है भारत सरकार का ..?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें