सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

!! प्रेम जीवन के लिए संजीवनी है !!

अभी कल १४ फरवरी २०१२ वेलनटाइन  दिवस है अभी वेलनटाइन सप्ताह  चल रहा है, बाज़ार प्यार के तोहफों से लदा हुआ है, हर आदमी की जेब के हिसाब से तोहफे बिक रहे है। ऐसे में एक नया ट्रेण्ड शुरू हो गया है, ‘जितना मंहगा गिफ्ट उतना ज्यादा प्यार’। ये सब आजकल के युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है पूरे वेलनटाइन सप्ताह को कुछ इस तरह बनाया गया है कि लगभग हर दिन कुछ-न-कुछ गिफ्ट देना ही पड़ता है। क्या आज रिश्ते इन उपहारों के मोहताज़ हो गए है ? वेलनटाइन दिवस क्या है ? देखा जाए तो प्रेम का त्यौहार है ! क्या प्रेम ,सिर्फ प्रेमी -प्रेमिका में ही होता है ? प्रेम तो सभी रिश्ते में होता है प्रेम को अनुभव किया जा सकता है, इसे शब्दों से व्यक्त करना संभव नहीं है। प्रेम के बिना मानव जीवन का कोई अर्थ नहीं। एक दूसरे के प्रति विश्वास उत्पन्न करता है प्रेम। मानव हृदय में प्रेम का स्रोत है। संसार में आकर वह भौतिकता से जकड़ जाता है, जिससे तमाम विकृतियों और विकारों के साथ अनेक समस्याओं के जाल में फंस जाता है। तब एकमात्र उपाय प्रेम ही रह जाता है समस्याओं से निजात पाने का। प्रभु का स्वरूप है प्रेम, इसका संबंध हृदय से है।प्रेम और भक्ति में जब समर्पण की भावना जुड़ जाती है तब एक शक्ति बनती है। जीवन के लिए संजीवनी है प्रेम। भक्तों के जीवन का आधार है प्रेम। प्रेम की प्रकृति आत्मा को प्रभावित करती है। यह मानव प्रवृत्ति एवं मानवता की प्रथम आवश्यकता है। सच्चा प्रेम अंतस की वाणी समझने में समर्थ है। निराशा के क्षणों में आशा की किरण है प्रेम, यह हमारे विश्वास को बल प्रदान करता है। हमारे प्रियजन हमसे कितनी ही दूर क्यों न हों, प्रेम की अनुभूति हमें उनकी निकटता देती है। प्रत्येक प्राणी को प्रेम की भूख है, चाहे वह मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, सभी में प्रेम का प्रभाव समान होता है। आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में जहां मनुष्य जीवन की सभी व्यावहारिक वस्तुओं से संपन्न है वहां प्रेम से विपन्न है। यह मानव समाज के लिए विचार का विषय है। इन सबसे दूर रहकर हमें प्रेम पथ का विस्तार करना होगा। प्रेम परम आनंदमयी है। प्रेमी सर्वत्र आनंद का अनुभव करता है। सारा संसार आनंदस्वरूप है, सर्वत्र सौंदर्य और माधुर्य भरा हुआ है। दृश्य और दृष्टा, दोनों प्रेममय हैं। जिस भक्त के हृदय में परब्रह्म परमात्मा पूर्णरूपेण विराजमान हों, वहां फिर राग-द्वेष का स्थान नहीं रह जाता। प्रेम के परम व दिव्य स्वरूप दर्शन के लिए मन को विषयों से दूर रखना अपरिहार्य है। इसके आगे समस्त सांसारिकता बौनी प्रतीत होती है। अनन्य भक्ति और परम प्रेम ही वास्तव में अमृत स्वरूप है। प्रेम का प्रभाव हृदय को प्रभावित करता है, यदि हमारा वास्तविक प्रेम परमात्मा के प्रति हो गया तो जीवन सफल है।सदाचार और सद्गुण प्रेम भाव के पोषक हैं।मैं तो मेरे सभी पाठको और मित्रो से निवेदन करता हु की आप भी इस "वेलनटाइ दिवस "  को मनाये पर और इस दिवस को भारतीय संस्कार में रंग दे !  मत ले जाए इसे पश्चिमी सभ्यता की ओर इस दिवस को  "माता -पिता पूजन " के रूप में मनाये !

2 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा दुःख होता है जब हमारा कुछ भारतीय समाज कुछ गलत पाश्चात्य संस्कृति का अनुपालन आरम्भ कर देता है,,और अगर कोई कुछ समझाए तो उलटे सीधे तर्क देता ,जैसे हम अंग्रेजी क्यूं बोलते हैं,,उनका कैलेंडर क्यूं अपनाते हैं,,,,,कोई पूछे उनसे,,,इसमें क्या बुराई है,,,,
    ''वेलेंटाइन'' एक ईसाई संत थे,,और उनकी शहादत चौदह फरबरी को हुई,,ईसाई देश बस उसी दिन को याद करते हैं,,लेकिन व्यवसायिक लोगों ने इस दिन का रंग ढंग ही बदल डाला है,,ऊपर से हमारे कुछ पढ़े लिखे भाई बहन,,जिन्हें इस दिन का मकसद ही नहीं पता,,उन्होंने इस दिन को फूहड़ दिवस बना कर रख दिया है ,,शर्म आती है ऐसे लोगों पर,,अरे विदेश में क्या कोई आपके संतो के दिन मनाता है ..और सबसे ज्यादा शर्म तो तब आती है की हमारे कुछ भाई जो बच्चों को शिक्षा देते हैं विद्यालयों में आदर्शों की,,वो भी फेसबुक पर ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं,,,जय भारतवर्ष,,सनातन धर्म की जय हो.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमित जी आपने बहुत ही सत्य ब्याख्या किया है !

      हटाएं