गुरुवार, 12 जनवरी 2012

!!श्री स्वामी विवेकानन्द जी के जन्म दिन पर बिशेष !!

श्री स्वामी विवेकानन्द(12 जनवरी 1863-04 जुलाई 1902) जी को उनके जन्मदिवस पर श्रद्धापूर्ण नमन........
उनके दो कथन.......
1."उठो जागी और लक्ष्य मिलने तक रुको मत"
2."तुम ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं कर सकते जब तक तुम स्वयं में स्वयं ही विश्वास नहीं करते" हम सभी बहुत खुश है भारतीय लोगो  की विदेशो में उनकी तूती बोलती है आज विदेशी लोग भारतीय ज्ञान ,योग ,दर्शन ,सभी से प्रभावित है लेकिन मै बात कर रहा हु जब की, तब भारत को साधू सन्यासियों ,अंध विश्वासियो ,राजा महाराजाओ और सपेरो का देश समझा जाता था ,क्योकि भारतीयों ने अपने वेदों और उपनिषदों संदेशो को भुला दिया था ,भारतीय गरीबी और अंध विश्वासी हो गए थे जिससे पश्चिमी देशो में भारतीयों को अशभ्य समझा जाता था , लेकिन सौ वर्ष पहले हुई एक धर्म सभा ने ये सब बदल दिया था ,तब दुनिया जान गई थी भारत के दर्शन को ,पहचाना भारतीय दर्शन को , जिसमे "वसुदैव कुटुम्बकम " का सिद्धांत देकर दुनिया को एक परिवार की तरह बताया गया है |
एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने इस भारत भूमि जो की गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई थी ,यहाँ के युवाओ को बताया की "हम कौन है "|साथ ही कैसे अध्यात्म और विज्ञानं साथ रहकर दुनिया को चला सकते है ये विचार वेदों और उपनिषदों के माध्यम से दुनिया के सामने आये |मै बात कर रहा हु स्वामी विवेकानंद जी की, उनका आज जन्म दिन है जो की युवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है |स्वामी विवेकानंद जी ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने आधुनिकता का ढोल पीटने वाली पश्चिम की भौतिकवादी जनता के सामने भारत का अध्यात्मिक और पुरातन आदर्श प्रस्तुत करके भारत के वास्तविक स्वरूप को अंकित करके उनको चकित कर दिया | आज स्वामी जी हमारे बीच न होते हुए भी है क्योकि वेदों ,गीता और स्वामी जी के ही शब्दों में "आत्मा अमर है "और हा रविन्द्र नाथ टैगोर जी के ये शब्द भी मुझे याद है जो मैंने कही पर पढ़े थे कि "आप भारत को जानना चाहते है तो विवेकानंद का अध्यन कीजिये |उनमे सभी कुछ सकारात्मक है ,नकारात्मक कुछ भी नहीं "|स्वामी जी को वैसे तो लगभग सभी जानते है लेकिन अब मै स्वामी जी का परिचय दे रहा हू|
स्वामी विवेकानंदजी का जन्म १२ जनवरी १८६३ को कलकत्ता में हुआ था |बचपन से ही नरेन्द्र(बचपन का नाम ) में आध्यात्मिक पिपासा थी। पिता की मृत्यु के पश्चात्त परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं पर पड़ा।अपने शिक्षा काल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे। किन्तु हर्बर्ट स्पेंसर (HERBERT SPENCER) के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। शुरू में वो काफी तर्क वितर्क करते थे लोगो से और थोड़े नास्तिक जैसे थे |युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वंद्व से गुज़रना पड़ा। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु रामकृष्ण से हुई , जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया।पाँच वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने अमेरिका के विभिन्न नगरों, लंदन और पेरिस में व्यापक व्याख्यान दिए। उन्होंने जर्मनी, रूस और पूर्वी यूरोप की भी यात्राएं कीं। हर जगह उन्होंने वेदांत के संदेश का प्रचार किया।4 जुलाई 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।
आज स्वामी विवेकानंद जी कही गई बहुत सी बाते है बाते है जिन्होंने अपने वेदों और उपनिषदों के संदेशो को लोगो तक पहुचाया उन्हें व्यवहारिक रूप से अपनाने के लिए प्रेरित किया जैसे मै एक यहाँ पर ऐसे ही सन्देश के बारे में बात करूँगा "भूखे को राम नाम लेने का मत कहो उनको रोटी दो ,क्योकि भूखे को नाम लेने का कहना पाप है और रोटी देना पुण्य " |उनकी कही गई ये बात उन लाखो गरीबो और भूखे लोगो के लिए थी जिनको धर्म के रक्षक के रूप में परिभाषित करने वाले लोग कथाओ और सम्मेलनों में भगवन का नाम जपने के लिए कहते है गरीब लोगो को ,उसके बजाय इन्हें दरिद्रनारायण (वनवासी ,गरीब ) की दाल -रोटी की व्यवस्था करवाना चाहिए |
स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों में " बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता जिससे तुम्हारे हृदय उछल पडते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ, जो कभी कम्पित न हो। दृढता के साथ लगे रहो, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानन्द......."
. . जय भारत वर्ष . .जय आर्यावर्त . --

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