सोमवार, 19 दिसंबर 2011

!! सृष्टि एवम जीव की उत्पति एवं ईश्वर !!

इस ब्रह्मांड में जीवन कब ,  और कैसे  प्रारम्भ  हुआ?अनंतकाल से यह  प्रश्न सदा अनुतरित रहा है तथा सम्भवता भविष्य में भी इसका उत्तर कोई नही दे सकेगा/ सब कुछ अनुमान पर आधारित है तथा आने वाले समय में अनुमान ही लगाये जाते रहेंगे /कोई अंदाजा भी लगाये तो क्या लगाये /प्रश्न लाखों,करोड़ों बल्कि अरबों वर्षों का है/वैज्ञानिक,दार्शनिक,विचारिक,बड़े बड़े योगी तपस्वी तथा तत्वज्ञानी चिरकाल से इस गुत्थी    को सुलझाने में लगे है,परन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए अपुति रहस्य और भी गहरा होगया है/ऐसा  दृष्टिगोचर  होता है की मानव जो इस विशाल  ब्रह्मांड का एक छोटा सा अंशमात्र है,कभी भी उस अपरम्पार ईश्वर की अपार महिमा को नहीं जान सकेगा/

“आदमी मर कर बता सकता नहीं मरने का हाल, जीते जी वह ज़िन्दगी का राज़ पा सकता नही”

वैज्ञानिकों ने बड़ी बड़ी खोजें की,छानबीन की,उड़ाने भरी,चंद्रमा और मंगल ग्रह तक हो आये/विशाल पहाड़ों को चीर कर रख दिया,अबाध रूप से बहने वाली विशाल नदिओं को बांध दिया,अणु   परमाणु के टुकड़े टुकड़े कर अमोघ शक्ति तथा सारे  विश्व को कई बार नष्ट करने की शक्ति प्राप्त कर ली/ चिकित्सा शेत्र में चमत्कारिक उपलब्धियां प्राप्त कर ली किन्तु फिर भी मानव यही कहते सुना  गया है की उसका अनुभव विशाल सागर के एक कतरे के समान है/वह अनुभव करता है की अभी उसने कुछ भी नहीं जाना/

ब्रह्मांड का जानना तो दूर उसका अनुमान लगाना भी  मानुषी शक्ति से परे की बात है/ अभीतक की वैज्ञानिक खोजों से प्राप्त तथ्यों के अनुसार यह सृष्टि आज से अरबों वर्ष पूर्व आस्तिव में आयी,हालांकि यह भी प्रामाणिक तथ्य नहीं है/सर्वप्रथम यह आग के जलते हुए लावे के तेजी से घूमते हुए एक विशाल गोले के रूप में थी/तदन्तर लावे के फटने,टूटने तथा विभिन्न भागों के रूप में ठंडा होने पर सितारों तथा अन्य ग्रहों का प्रादुभार्व हुआ/पूर्ववत यह पिंड घुमते रहे तथा अपने मूल के चारों और चक्कर लगाने लगे/पृथ्वी  पर अत्यधिक उष्णता के कारण वर्षा हुई/प्रथम  हरियाली   उत्पन्न  हुई फिर क्रमशाः धीरे धीरे अन्य जीव जंतु आस्तित्व   में आये/आरम्भ में एक कोष वाले अमीबा इत्यादि की उत्पति हुई तथा पश्चात में बहुकोशीय जीव प्रगट हुए/निरंतर विकास और परिवर्तन के फलस्वरूप जीव अंत में मानुषी आकृति को प्राप्त हुए/ संषेप  एवं सरल शब्दों में जीव के उत्पति एवं अन्य ग्रहों के निर्माण की यह अनुमानित कथा है/

विज्ञान के अनुसार हमारे तारापुंज या आकाशगंगा में एक अरब सितारेहै/सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी सहित ११ ग्रह कर रहे हैं तथा वह हमारी पृथ्वी से लाखों गुना बड़ा है/हालांकि वह भी केवल एक मध्यमवर्ग का सितारा माना जाता  है/हमारी  आकाशगंगा  की लम्बाई प्रकाश के एक लाख वर्ष और  चौडाई  दस हजार वर्ष है/प्रकाश एक सेकंड में १८६००० मील की दूरी तक पहुँच जाता है/इस गति से लगातार प्रकाश जितनी दूर पहुँच जाये,उसे प्रकाश का एक वर्ष मानते है/इससे हमारी आकाशगंगा की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है/यही ही  नहीं  वैज्ञानिकों के कथानुसार ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा समान करोड़ों आकाशगंगाएं और भी हैं/बुद्धि भ्रमित हो जाती है,सब कुछ अनुमान से परे प्रतीत होता है,कोई अंदाजा भी लगाये तो क्या?  बड़े बड़े क्रांतदर्शी,योगिओं,तपस्विओं,ऋषि मुनिओं एवं विचारिकों ने भी आंतरिक योगसाधना एवं तप द्वारा सत्य तथा ज्ञान की चरमसीमा तक पहुचनेका प्रयास किया/भगवान को   ढूंडत॓ ढूंडत॓ उन्हें भी ’नेति नेति ‘कह कर संतोष करना पड़ा है/ तर्क की परिधि से बाहर निकल कर उन्हें भी अपनी आत्मा के अनुभव के आधार पर श्रद्धा की ही शरण में जाना पड़ा है/ईश्वर

को पारब्रह्म,  अपरम्पार ,अगोचर,सर्व अन्तर्यामी,असीम,अनादि,अजन्मा  इत्यादि नामों से पुकारना इसी दृष्टिकोण का पोषक है/

ज्ञान हमें बताता है कि सृष्टि के अनेक व्यक्त पदार्थों में एक ही अव्यक्त मौलिक सत्ता है तथा विज्ञान हमें दर्शाता है कि किस प्रकार उस अव्यक्त सत्ता से सृष्टि की उत्पति हुई है/विज्ञान और ज्ञान की अंतिम सीमायें अन्ततःएक निर्विकल्प श्रद्धा पर परिणित हो जाती हैं तथा मानव ईश्वर के  सम्मुख  नतमस्तक   हो जाता है/मनुष्य ने ईश्वर के असंख्य रूप देखे हैं तथा उसे हजारों नामों से पुकारा है/लेकिन ईश्वर किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं/ईश्वर  उस सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता का प्रतीक है,जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सृष्टि की है,जो जगत का पालनपोषण करती है तथा जो इसे नित्य नए रूप देती है/हम ईश्वर को अन्यान्य नामों तथा रूपों में स्मरण करते है,केवल इस लिए कि निराकार की अपेक्षा साकार की पूजा हमें सहज व् सरल प्रतीत होती है/आधुनिक प्रगतिवादी,विकासवादी अथवा निरीश्वरवादी ईश्वर का नाम लेने से घबराए तो और बात है,परन्तु वह भी किसी असीम शक्ति द्वारा जगत के संचालन की बात करते हैं/वह भी उस शक्ति को ढूंड निकालने   में असमर्थ है जितना कि कोई और साधारण मनुष्य/उन्होंने केवल प्राकृतिक नियमों को नए नए नाम दे रखे हैं,जिनके सहारे यह संसार स्वयं चल रहा है/उनकी अपेक्षा तो कर्मफल  पर आश्रित ईश्वरवाद कहीं अधिक न्यायोचित और हृदयग्राही है/ सृष्टि की रचना के विषय में शास्त्रों ने “यथापूर्वमकल्पयत”के आगे कुछ नहीं कहा/अर्थात  हम सर्वव्यापक भगवान् को अनुभव करते हुए भी उसे कोई विशेष रूप देने में असमर्थ हैं/सृष्टि के आदि और अंत को कोई भी नहीं जान सका/इसलिए हमारे लिए यही उचित व स्वीकार्य है कि हम ज्ञ॓य में    विश्वास  तथा अज्ञ॓य में श्रद्धा के पथ को अपनाये /वर्तमान स्तिथि के अनुसार सरल सत्य यही है कि यह परिवर्तनशील संसार सदा है और सदा रहेगा/इस  सारी लीला के पीछे  ईश्वरीय  हाथ है तथा यह ज्ञान और तर्क के परे की बात है,यह अनुभव पर आधारित है और इसकी साक्षी केवल आत्मा ही दे सकती है/

बहुधा पूछनेवाले यह प्रश्न करते है कि भगवान्  कहाँ है?उनसे पूछिए कि भगवान् कहाँ नहीं?क्या सृष्टिकर्ता के बिना इतनी सर्वांग सुंदर सृष्टि होना सम्भव है?यदि तथ्यों को तर्क की तुला पर तोला जाये तो ईश्वरीय सत्ता के सर्वव्यापक होने पर कुछ संदेह नहीं रह जाता/वैज्ञानिकों ने कुछ प्रमाणों के आधार पर बड़े बड़े   सिद्धांत   स्थापित किये है/  उदाहरण के रूप में ,जब न्यूटन ने देखा की प्रत्येक वस्तु ,वृक्षों  के फल ,पते इत्यादि पृथ्वी की और खिचे चले आते हैं न कि आकाश की   और तो वह इस निश्चय पर पहुंचे कि पृथ्वी में     गुरुत्वाक॑षण  शक्ति है/इसी प्रकार हम वायु को नहीं देख सकते,विद्युत् को नहीं पकड़ सकते,परन्तु उसके  आस्तित्व से इनकार भी नहीं कर सकते/रेडियो,मोबाइल,टेलीविज़न एवं अन्य बेतार यंत्रों की तरंगों को किसी ने चलते नहीं देखा,परन्तु एक पल में  चारों दिशाओं   में फेल जाती हैं/उस असीम  प्रभु  की सत्ता वायु,विद्युत् एवं तरंगों से कहीं अधिक सूक्ष्म है/इसके बिना   यह संसार चल ही नहीं सकता /भगवान् की बनाई  प्रत्येक वस्तु,जड़ और चेतन में अनुपम व्यवस्था है,इसमें नियमितता है,उपयोगिता एवं आकर्षण है/सूर्य,चन्द्रमा एवं तारों की आभा से लेकर जल,थल,पृथ्वी और आकाश,सब स्थानों पर ज्योतिर्मय भगवान् ही दृष्टिगोचर होते है/कलकल करती स्वच्छ नदियाँ,गगनचुम्बी पर्वत,हरियाली,घने बन,विशाल रेगिस्तान,अथाह सागर,विभिन्न प्रकार के जीव जंतु सब उस परमपिता परमात्मा की कला के सुंदर कृतिया  है/बीज में निहित शक्ति,जिस से  वृक्ष ,फल और पुष्प उत्पन्न होते है,मनुष्य को चकित कर देते हैं/ बीज के तमाम गुणों का उपज में उपस्थित होना एक चमत्कार से कम नहीं/और तो और मनुष्य देह की बनावट शरीर में नस नाड़िया॓ का जाल,ह्रदय    , अथवा रक्त की गति,विस्मित करने वाले चमत्कार है/हमारे  मस्तिष्क  में करोड़ों कोष हैं,इसके विभिन्न भागों में ताल मेल द्वारा हमारी शारीरिक गति नियंत्रित होती है/विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोज भी   चिंतनशक्ति   के इस छोटे से ईश्वरीय यंत्र ही की उपज है/यह विचारणीय    है कि यह  मस्तिष्क किसकी देन  है? फिर भी यदि कोई नेत्रहीन व्यक्ति सूर्य की प्रभा को न देख सके तो यह उसकी अपनी न्यूनता ,सूर्य के आस्तित्व पर किसी को संदेह नहीं हो सकता/

हम अपने दैनिक व्यक्तिगत जीवन में कई बार जीवन की छोटी मोटी समस्याओं में उलझ जाते है,छोटे छोटे प्रश्नों का हल करने के लिए घंटों पारिवारिक मित्रों से सलाह ,विचार विमर्श करते है,

मानसिक परिश्रम करते है,परन्तु जहाँ परमात्मा के आस्तित्व का प्रश्न आता है,हम अपनी सामयिक मानसिक स्थिति के अनुसार जो मुहं में आता है कह देते हैं/चलते चलाते किसी भी उपासना स्थल के पास से गुजरते हुए सर झुका कर,हाथ जोड़ कर ही, भगवान् की पूजा को ही पर्याप्त समझ लेते है/आखिर उस सर्वान्तर्यामी को समझने या पानेके लिए इतने ही प्रयास क्या काफी है?क्योंकी हमारी पूजा,आराधना सतही होती है,बिना किसी गंभीरता के होती है /  कामचलाऊ ,औपचारिक ज्यादा होती है,इसलिए   अपेक्षित फल कभी भी प्राप्त नहीं होता/हम भगवान् की इस सतही,झूटी,आडम्बर से भरी पूजा से कुछ भी प्राप्त नहीं  कर पाते/  हमारे यह पूजा पाठ स्वार्थ से प्रेरित होते है,कुछ भौतिक,सांसारिक सुख प्राप्त करने इच्छा ही इसके मूल में होती है/भगवान् को पाना या उसके आस्तित्व को अनुभव करना  कोई इतना सहज या सरल नहीं/ इसके  लिए मन  की अपूर्व एकाग्रता तथा पूर्ण श्रद्धा की आवश्यकता होती है/

आजकल का मनुष्य चाहता है  कि जिस प्रकार बिजली का बटन दबाते ही विद्युत् प्रकाश हो जाता है,उसी प्रकार से अलादीन के चिराग  अथवा  जादुई छड़ी घुमाने मात्र से  ईश्वर उनके सामने प्रगट हो जाये और जो कुछ उसे कहा जाये वह कर दिखाए/ईश्वर क्या हुआ एक आज्ञाकारी,निपुण सेवक हुआ जो अपने मानवीय स्वामी के संकेतों पर दिन रात नाचता रहे  /इस से बढ  कर हमारी अल्पज्ञता क्या हो सकती है/सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामी भगवान् संसार के हर कोने में विराजमान है/वह सदा हमारे अंग संग रहते हैं/उनकी निकटता तो हमारे श्वासों से भी अधिक है/हमारे  चक्षु मार्मिक हो तो हम उसे देख सके/जो ज्ञानी भगवान् से सच्ची लगन और लौ लगा के  बैठे हैं,उन्हें कण कण में भगवान् ही दृष्टिगोचर होते हैं/

हमारे परमात्मा को मानने या न मानने से भगवान् को कोई अंतर पड़ने से रहा/ईश्वर को हम स्मरण करते है तो अपने लिए/उसे  विस्मरण कर के तो मनुष्य स्वयम अधोगति को प्राप्त होता है/परमात्मा से प्रेम,समीपत्व का आभास ,मनुष्य को   प्रत्येक पाप से बचाता है एवं उसकी रक्षा  करता है/उचित और अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा एवं शक्ति देता है/२४ घंटों के दिन रात में कम से कम १२ घंटे केवल ईश्वर ही हमारे साथ होता है/यदि ऐसे समय कभी हम कोई गलत बात सोचते है तो हमारी आत्मा की आवाज़ हमें निश्चित चेतावनी देगी/

जिस प्राणी को ईश्वर का भय ना हो तथा अपनी आत्मा को पापों के परदे से ढक रखा तो उसे फिर किस का डर? भगवान् से विमुख होकर मनुष्य कोंन सा पापकर्म नहीं कर रहा/  ऐसा भी नहीं है  कि उसे पापों का दंड नहीं मिलेगा/दंड तो उसे अवश्य मिलेगा,इसके लिए ईश्वर के  अटल नियम  हैं/परन्तु यदि मनुष्य स्वच्छ ,निर्मल और सच्चे   मन से  ईश्वर की ईश्वरीय सर्वव्यापकता को माने तो वह पापमार्ग पर चलेगा ही नही/वर्तमान युग की व्यापक नास्तिकता एवं भौतिकवाद की अंधाधुंध नकल ही वास्तव में हमारे अधोपतन का मूल कारण है/

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