मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

!! वर्तमान को जियो !!

"जो हो गया सो गया," अब चिंता करना व्यर्थ है।’ जो गुजर चुका, उसे तो लौटाया नहीं जा सकता, लेकिन हम अपने वर्तमान को अपने हिसाब से जीकर अपने भविष्य को अवश्य संवार सकते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जिन लोगों को वर्तमान को जीने का सलीका नहीं आता, उनका भविष्य निश्चय ही अन्धकारमय है। वहीं जिन लोगों ने वर्तमान को सम्पूर्णता से जीना सीख लिया है, वे इस बात की आशा अवश्य कर सकते हैं कि उनका भविष्य सुन्दर और सुखद ही होगा।
मित्रों, सब कुछ भूलकर अपने वर्तमान को जियो। वर्तमान ही सत्य है। एक क्षण बाद क्या होने वाला है, कुछ नहीं कहा जा सकता। यद्यपि वर्तमान को पूर्णता से जीने के बाद इस बात की उम्मीद एवं आशा अवश्य की जा सकती है कि हमारा आने वाला कल भी सुन्दर और सुखद होगा। अतः वर्तमान को सम्पूर्णता से जियें। आज से और इसी क्षण से अपने वर्तमान में रस लेना शुरू करें। वर्तमान को पूर्णता और सम्पूर्णता से जीने के लिये अपने दैनिक जीवन में कुछ परिवर्तन लाने होंगे:
  • सबसे महत्वपूर्ण है, खुद के प्रति, अपनों के प्रति और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रति सकारात्मक विचार और सोच रखें।
  • आशावादी बनें। निराशाओं को त्यागें। दुनिया अच्छी है और उम्मीद करें कि और अधिक अच्छी बन सकती है।
  • दूसरों की बातों को सुनें। दूसरों के अनुभवों से सीखें। जरूरी नहीं कि आप स्वयं ही हर बात को सिद्ध करें। लोगों ने जिन बातों को अपने अनुभव से बार-बार सिद्ध किया है, उनमें आस्था पैदा करें।
  • चीजों या परिस्थितियों को कोसना छोडें और उन्हें जैसी हैं, वैसी ही स्वीकारना शुरू करें। अस्वीकार, नकारात्मकता और स्वीकार, सकारात्मकता है।
  • निराशा- असमय मृत्यु और आशा- जीवन की वीणा है।
  • निराशा और नकारात्मकता दोनों ही चिन्ता, तनाव, क्लेश और बीमारियों की जननी हैं, जबकि आशा और सकारात्मकता जीवन में आनन्द, प्रगति, सुख, समृद्धि और शान्ति का द्वार खोलती हैं, जिससे जीवन जीने का असली मकसद पूरा होता है।
अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किसका चुनाव करते हैं? निराशा के सन्नाटे का या आशा की वीणा की झंकार का? चुनाव हमारे अपने हाथ में है।

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